بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
हज के दूसरे दिन नौ (9) ज़िलहिज्जा के अफ़आल यह हैः-
- मिना से मैदान-ए-अराफ़ात की रवानगी।
- अराफ़ात में ज़ुहर और अस्र की नमाज़ अदा करना और वुक़ूफ़-ए-अराफ़ात।
- मुज़दलफ़ा की रवानगी।
- मुज़दलफ़ा में मग़रिब और इशा की नमाज़ मिलाकर पढ़ना।
अराफ़ात की रवानगी
अराफ़ात में नौ (9) ज़िलहिज्जा को ज़वाल के बाद से दस (10) की सुबह तक किसी वक़्त भी हाज़िर होना ज़रूरी है चाहे कुछ मिनटों के लिए ही क्यों न हो। यह हज का ख़ास फ़र्ज़ है, अगर यह छूट गया तो हज अदा नहीं हुआ और कोई क़ुरबानी वग़ैरा का कफ़्फ़ारा भी इसका बदला नहीं।
अराफ़ात एक बहुत ही बड़ा मैदान है जो लगभग बीस (20) किलोमीटर में फैला हुआ है और यह ही वह मुबारक जगह है जहाँ पर दस (10) सन हिजरी को नबी-ए-करीमگ के आख़िरी हज के मौक़े पर दीन-ए-इस्लाम मुकम्मल हुआ और यह आयत-ए-करीमा नाज़िल हुई
اَلْیَوْمَ اَکْمَلْتُ لَکُمْ دِیۡنَکُمْ وَاَتْمَمْتُ عَلَیۡکُمْ نِعْمَتِیۡ
ؕوَرَضِیۡتُ لَکُمُ الۡاِسْلٰمَ دِیۡنًا
(आज मैने तुम्हारा दीन कामिल कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी
और तुम्हारे लिए इस्लाम को दीन पसन्द किया)
(सुरह अलमाइदाह, आयत-5)
- जब अराफ़ात को चलें दिल को ग़ैर के ख़्याल से पाक करने की कोशिश करें कि आज वह दिन है कि कुछ का हज क़ुबूल करेंगे और कुछ को उनके सदक़े में बख़्श देंगे महरूम वह जो आज महरूम रहा।
- वसवसे आयें तो उनकी तरफ़ ध्यान ही न करो यह समझ लो कि कोई और वुजूद है जो ऐसे ख़्यालात ला रहा है और मुझे तो सिर्फ़ अपने रब से काम है, इस तरह इन्शाल्लाह तआला वह वसवसा टल जायेगा।
- अगर अरफ़ा की रात मक्का में गुज़ारी और नौ को फ़ज्र पढ़ कर मिना होता हुआ अराफ़ात में पहुँचा तो हज हो जायेगा मगर बुरा किया कि सुन्नत को तर्क किया।
- इसी तरह अगर रात को मिना में रहा मगर सुबहे़ सादिक़ होने से पहले या नमाजे़ फ़ज्र से पहले या आफ़ताब निकलने से पहले अराफ़ात को चला गया तो बुरा किया।
- रास्ते में ज़िक्र व दुरूद जारी रखें बिना ज़रूरत कुछ बात न करें तलबियाह यानि लब्बैक…. ज़्यादा से ज़्यादा करते चलें।
- जब निगाह जबल-ए-रहमत पर पड़े तो ज़िक्र, दुरूद व दुआ में और ज़्यादती कर दें के यहाँ भी दआएं क़ुबूल होती हैं।
- अराफ़ात में जहाँ जगह मिले वहाँ ठहरें लेकिन जबल-ए-रहमत के पास ठहरना अफ़ज़ल है।
- आज के भीड़ में लाखों आदमी, हज़ारों ख़ेमे होते हैं अपने ख़ेमे से जाकर वापसी में उसका मिलना मुश्किल होता है इसलिए पहचान का निशान उस पर लगा दें कि दूर से नज़र आये।
- औरतें साथ हों तो उनके बुरक़े पर भी कोई कपड़ा ख़ास पहचान के लिए लगा दें कि दूर से देख कर पहचान सकें और दिल में बेचैनी न रहे।
- दोपहर तक ज़्यादा वक़्त अल्लाह के हुज़ूर आजिज़ी के साथ रोते हुए और ख़ालिस नीयत से ताक़त भर सदक़ा, ख़ैरात, ज़िक्र, लब्बैक, दुरूद, दुआ, इस्तग़फ़ार और कलमा-ए-तौहीद में मशग़ूल रहें।
- हदीस में है नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं सब में बेहतर वह चीज़ जो आज के दिन मैंने और मुझसे पहले अम्बिया ने कही यह है। (तिरमिज़ी)
لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحْدَهُ لا شَرِيْكَ لَهْ ؕ لَهُ الْمُلْكُ وَ لَهُ الْحَمْدُ يُحْىٖ وَ يُمِيْتُ
وَ هُوَحَىُّ لَّا يَمُوْتُ بِيَدِهِ الْخَيْرُ ؕ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَئٍ قَدِیۡرٌؕ
- दोपहर से पहले खाने पीने और दूसरे ज़रूरी कामों से फ़ारिग़ हो जाएं ताकि दिल किसी तरफ़ लगा न रहे आज के दिन जैसे हाजी को रोज़ा मकरूह है इसी तरह पेट भर खाना भी सही नहीं क्योंकि इससे ग़फ़लत व सुस्ती आयेगी।
- दोपहर से पहले ग़ुस्ल करें यह सुन्नत-ए-मुअक्कदा है और न हो सके तो सिर्फ़ वुज़ू करें।