بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
रमी जमार का मतलब है कंकरियों का फेंकना। मिना पहुँच कर सबसे पहला काम यही किया जाता है। रमी जमार वाजिब है इसके छोड़ने पर दम लाज़िम होगा। कंकरियाँ मारना हज़रत इब्राहीमے की यादगार है। यहाँ पर तीन बड़े-बड़े सुतून (Pillars) बने हुए हैं जिनके आस-पास पाँच मंज़िला पुल बना है जिसकी हर मंज़िल से हाजी रमी कर सकते हैं जिन्हें जमरात या शैतान कहते हैं यह तीनों सुतून (Pillars) उन-उन जगहों पर हैं जहाँ पर शैतान हज़रत इब्राहीमے को बहकाने की ग़र्ज़ से सामने आया था जब वह क़ुरबानी के लिए हज़रत इस्माईलے को ले जा रहे थे और आपके कंकरियां मारने से वह ज़मीन में धंस गया था। इन तीनों जगहों को जमरा-ए-अक़बा (बड़ा शैतान), जमर-ए-वुस्ता (दरमियानिशैतान) और जमरा-ए- ऊला (छोटा शैतान) कहते हैं।
रमी के लिया बनाया गया पाँच मंज़िला पुल
- दस (10) ज़िलहिज्जा को सिर्फ़ जमरा-ए-अक़बा यानि बड़े शैतान की रमी करनी है छोटे और बीच के शैतानों को कंकरियाँ नहीं मारनी हैं।
- जब मिना पहुँचें सब से पहले जमरा-ए-अक़बा को जाएं जो मक्का-ए-मौअज़्ज़मा की तरफ़ से पहला जमरा है।
- जमरा से कम से कम पाँच हाथ पीछे इस तरह खड़े हों कि मिना दाहिने हाथ पर हो और काबा बायें हाथ पर।
- जमरा की तरफ़ मुँह करके सात कंकरियाँ अलग-अलग दाहिने हाथ से चुटकी (यानि अंगूठे और शहादत की ऊंगली से) पकड़ कर फेंकें।
- कंकरियाँ मारते वक़्त हाथ इतने ऊपर तक उठाएं कि बग़ल की रंगत ज़ाहिर हो।
- हर एक कंकरी पर यह पढ़ें और फिर मारें-
ؕبِسْـمِ اللّٰهِ اَللّٰہُ اَکۡبَرُ ؕ رَغْمًا لِّلشَّیْطَانِ رِضًا لِّلرَّحْمٰنِ
اَللَّھُمَّ اجْعَلْھُ حَجًّا مَّبْرُوْرًاوَّسَعْیًا مَّشْکُوْرًوَّ ذَنْبًا مَّغْفُوْرًاؕ
(अल्लाह के नाम से शुरू करता हूँ,अल्लाह सबसे बड़ा है,
(यह कंकरी) शैतान को ज़लील करने के लिए और अल्लाह की रज़ा के लिए मारता हूँ,
ऐ अल्लाह! इसको हज्जे मबरूर कर और सई मशकूर कर और गुनाह बख़्श दे)
- बेहतर यह है कि कंकरियाँ जमरा तक पहुँचें वरना तीन हाथ के फ़ासले तक गिरें इससे ज़्यादा दूरी पर गिरीं तो वह कंकरी गिनती में नहीं आयेगी।
- पहली कंकरी से लब्बैक कहना छोड़ दें।
- जब सात कंकरियाँ पूरी हो जायें वहाँ पर न ठहरें फ़ौरन ज़िक्र व दुआ करते हुए लौट जाएं।
रमी यानि शैतान को कंकरियाँ मारने का मन्ज़र