नमाज़-ए-तरावीह

नमाज़-ए-तरावीह

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

तरावीह मर्द व औरत सब के लिए सुन्नत-ए-मौअक्कदा है इसका छोड़ना जाइज़ नहीं। ख़ुद हुज़ूरگ ने भी तरावीह पढ़ी और उसे बहुत पसंद फ़रमाया। सही मुस्लिम में अबू हुरैराک से मरवी इरशाद फ़रमाते हैं जो रमज़ान में क़ियाम करे ईमान की वजह से और सवाब तलब करने के लिए उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जायेंगे यानि सग़ीरा (छोटे-छोटे गुनाह)

फिर हुज़ूरگ ने इस अन्देशे से कि उम्मत पर फ़र्ज़ न हो जाये तर्क फ़रमाई ।  फिर फ़ारूक़े आज़मک रमज़ान में एक रात मस्जिद में तशरीफ़ ले गये और लोगों को अलग-अलग नमाज़ पढ़ते पाया। फ़रमाया मैं मुनासिब जानता हूँ कि इन सबको एक इमाम के साथ जमा कर दूँ तो बेहतर हो। सब को एक इमाम उबई इब्ने कअबک के साथ इकट्ठा कर दिया फिर दूसरे दिन तशरीफ़ ले गये तो देखा कि लोग अपने इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ते हैं तो फ़रमाया यह अच्छी बिदअत है।

तरावीह के ज़रूरी मसाइल

  • ज़्यादातर उलमा-ए-किराम के नज़दीक तरावीह की बीस रकअतें हैं और यही अहादीस से साबित है।
  • इसका वक़्त इशा के फ़र्ज़ों के बाद से तुलू-ए-फ़ज्र तक है।
  • तरावीह वित्र से पहले भी हो सकती है और बाद में भी।
  • अगर किसी शख़्स की तरावीह की कुछ रकअतें बाक़ी रह गईं और इमाम ने वित्र पढ़ना शुरू कर दिया तो इमाम के साथ वित्र पढ़ लें फिर बाक़ी अदा कर लें जबकि फ़र्ज़ जमाअत से पढ़े हों यह अफ़ज़ल है,अगर तरावीह पूरी करके वित्र तन्हा पढ़े तो भी जाइज़ है।
  • तरावीह के लिये पहले इशा की नमाज़ पढ़ना ज़रूरी हैं|
  • अगर भूल से इशा की नमाज़ बिना तहारत पढ़ ली और तरावीह व वित्र तहारत के साथ तो इशा व तरावीह फिर पढ़ें वित्र हो गये।
  • मुस्तहब यह है कि तिहाई रात तक देर करें, आधी रात के बाद पढ़ें तब भी कराहत नहीं।
  • तरावीह की क़ज़ा नहीं यानि अगर छूट गईं और वक़्त ख़त्म हो गया तो नहीं पढ़ सकते।
  • तरावीह की बीस रकअतें दस सलाम से पढ़ें यानि हर दो रकअत पर सलाम फेरें और अगर किसी ने बीसों रकअतें पढ़कर आख़िर में सलाम फेरा तो अगर हर दो रकअत पर क़ादा करता रहा (यानि तशह्हुद पढ़ता रहा) तो हो जायेगी मगर कराहत के साथ और अगर क़ादा न किया था तो सिर्फ़ दो रकअत तरावीह हुईं ।
  • एहतियात यह है कि जब दो रकअत पर सलाम फेरें तो हर दो रकअत पर अलग-अलग नीयत करें और अगर एक साथ बीसों रकआत की नीयत कर ली तो भी जाइज़ है।
  • तरावीह में एक बार क़ुरआन पाक ख़त्म करना सुन्नत-ए-मौअक्कदा है।
  • अगर क़ुरआन पाक पहले ख़त्म हो गया तो तरावीह आख़िर रमज़ान तक बराबर पढ़ते रहें क्योंकि यह सुन्नत-ए-मौअक्कदा है।
  • क़िरात और अरकान की अदायगी में जल्दी करना मकरूह है, तरतील ( यानि ठहर-ठहर कर) बेहतर है। इसी तरह अऊ़ज़ुबिल्लाहिबिस्मिल्लाह को भी इत्मिनान से पढ़ें और तस्बीह वग़ैरा का छोड़ देना भी मकरूह है।
  • हर चार रकआत पर इतनी देर तक बैठना मुस्तहब है जितनी देर में चार रकअतें पढ़ें। बीसों रकअतें पढ़ने के बाद अगर भारी हो तो न बैठें।
  • तरावीह में हर चार रकआत एक “तरवीहा” है। इस तरह बीस रकआत में पाँच तरवीहा हुईं ।
  • हर चार रकअत के दरमियान जब बैठें चाहे ख़ामोश रहें या कलिमा, दुरूद शरीफ़ पढ़ते रहें, तिलावत करें या चार रकअतें तन्हा नफ़्ल पढ़ें जमाअत से मकरूह है।
  • हर चार रकअत तरावीह के बाद बैठ कर नीचे दी हुई तस्बीह पढ़ें।

ؕسُبۡحَانَ ذِی  الۡمُلۡکِ وَالۡمَلَکُوۡتِ 

 سُبۡحَانَ ذِی الۡعِزَّۃِ وَالۡعَظَمَۃِ وَالۡھَیۡبَۃِ

ؕ وَالۡقُدۡرَۃِ وَالۡکِبۡرِیَآءِ وَالۡجَبَرُوۡتِ

ؕسُبۡحَانَ الۡمَلِکِ الۡحَیِّ الَّذِیۡ لَا یَنَامُ وَلَایَمُوۡتُ

ؕ سُبُّوۡحٌ قُدُّوۡسٌ رَبُّنَا وَ رَبُّ الۡمَلٰٓئِکَۃِ وَرُّوۡحِ 

ؕاَللَّھُمَّ اَجِرۡنَا مِنَ النَّارِ  یَا مُجِیۡرُ یَا مُجِیۡرُ یَا مُجِیۡرُ

  • तरावीह में जमाअत सुन्नत-ए-किफ़ाया है कि अगर मस्जिद के सब लोग छोड़ देंगे तो सब गुनाहगार होंगे और अगर किसी एक ने घर में तन्हा पढ़ ली तो गुनाहगार नहीं। बिला उज़्र जमाअत छोड़ने की भी इजाज़त नहीं।
  • तरावीह मस्जिद में बा-जमाअत पढ़ना अफ़ज़ल है अगर घर में जमाअत से पढ़ी तो जमाअत के छोड़ने का गुनाह नहीं, मगर मस्जिद में पढ़ने जैसा सवाब नहीं मिलेगा।
  • अगर आलिम हाफ़िज़ भी हो तो अफ़ज़ल यह है कि ख़ुद पढ़ें दूसरे की इक़्तिदा न करें और अगर इमाम ग़लत पढ़ता हो तो मुहल्ले की मस्जिद छोड़ कर दूसरी मस्जिद में जाने में हर्ज नहीं। यूँ ही अगर दूसरी जगह का इमाम ख़ुश आवाज़ हो या हल्की क़िरात पढ़ता हो या मुहल्ले की मस्जिद में ख़त्म नहीं होगा तो दूसरी मस्जिद में जाना जाइज़ है।
  • अच्छी आवाज़ से पढ़ने वाले को इमाम बनाना ज़रूरी नहीं बल्कि सही क़ुरआन पढ़ने वाले को इमाम बनायें।
  • नाबालिग़ के पीछे बालिग़ों की तरावीह नहीं होगी ।
  • रमज़ान शरीफ़ में वित्र जमाअत के साथ पढ़ना अफ़ज़ल है चाहे उसी इमाम के पीछे जिसके पीछे इशा व तरावीह पढ़ी या दूसरे के पीछे।
  • यह जाइज़ है कि एक शख़्स इशा व वित्र पढ़ाए दूसरा तरावीह ।
  • अगर इशा जमाअत से पढ़ी और तरावीह अकेले तो वित्र जमाअत से पढ़ सकता है। अगर इशा बिना जमाअत पढ़ी तो वित्र अकेले पढ़ें।
  • तरावीह बैठ कर पढ़ना मकरूह है बल्कि कुछ के नज़दीक तो हुई नहीं।
  • मुक़तदी को यह जाइज़ नहीं कि बैठा रहे और जब इमाम रुकू करने को हो तो खड़ा हो जाए कि यह मुनाफ़िक़ों से मुशाबहत है यानि मुनाफ़िक़ों का तरीक़ा है। अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है:- “मुनाफ़िक़ जब नमाज़ को खड़े होते हैं तो थके जी से”।
  • तरावीह में अक्सर देखा जाता है कि इमाम के क़िरात करते वक़्त कुछ लोग बातें कर रहे होते हैं, कुछ चाय-पानी में लग जाते हैं और जब इमाम रुकू में जाते हैं तो दौड़ कर जमाअत में शामिल हो जाते हैं यह नाजाइज़ है, क्योंकि क़ुरआन पाक सुनना फ़र्ज़ है।
  • दो रकअत पर बैठना भूल गया और खड़ा हो गया तो जब तक तीसरी का सजदा नहीं किया बैठ जाए और सजदा कर लिया हो तो चार पूरी करे मगर दो रकअत ही मानी जायेंगी।
  • इमाम से ग़लती हुई कोई सूरत या आयत छूट गई तो मुस्तहब यह है कि उसे पहले पढ़कर फिर आगे पढ़ें।
  • अगर किसी वजह से नमाज़े तरावीह फ़ासिद हो जायें तो जितना क़ुरआन मजीद इन रकअतों में पढ़ा है उसे दोबारा पढ़ें ताकि ख़त्म में नुक़सान न रहे।
  • तीन रकआत पढ़ कर सलाम फेरा अगर दूसरी पर बैठा नहीं था तो न हुई इनके बदले की दो रकआत फिर पढ़ें।
  • वित्र पढ़ने के बाद लोगों को याद आया कि दो रकअतें रह गयीं तो जमाअत से पढ़ लें और आज याद आया कि कल दो रकअतें रह गईं थीं तो जमाअत से पढ़ना मकरूह है।
  • सलाम फेरने के बाद कोई कहता है दो हुईं कोई कहता है तीन, तो इमाम के इल्म में जो हो उसका ऐतबार है और इमाम को किसी बात का यक़ीन न हो तो जिसको सच्चा जानता हो उसके क़ौल का ऐतबार करें, अगर इसमें जिन लोगों को शक हो तो दो रकअत तन्हा-तन्हा पढ़ें।
  • अगर किसी वजह से ख़त्म न हो तो सूरतों की तरावीह पढ़ें।

फ़ायदा:- हमारे इमामे आज़म ؒ  रमज़ान शरीफ़ में इकसठ (61) क़ुरआन पाक ख़त्म किया करते थे। तीस दिन में और तीस रात में और एक तरावीह में और पैंतालीस (45) साल इशा के वुज़ू से नमाज़े फ़ज्र पढ़ी है।

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3 COMMENTS

    • Tamam Aaqil Baaligh Musalmaanon ke liye Sunnat e Muakkadah hai, chahe mard ho ya aurat.
      Mardon ke liye taraaweeh ki jamaa’at sunnat e muakkadah ala alkifayah hai.

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