तौहीद (अल्लाह तआला के बारे में अक़ीदा)

तौहीद (अल्लाह तआला के बारे में अक़ीदा)

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

मुसलमान होने के नाते हमें सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि अल्लाह तआला के बारे में हमारा अक़ीदा क्या होना चाहिए । मुसलमान वह है जो अल्लाह तआला को माने उसकी इबादत करे, उसके हुक्म को माने और उसके मुताबिक़ अपनी ज़िन्दगी को ढाले। इस सोच या अक़ीदे को तौहीद कहते हैं। यह तसव्वुर एक बुनियादी हैसियत रखता है और जब तक तौहीद का अक़ीदा इंसान की रग-रग में अच्छी तरह बस नहीं जाता उसका ईमान कामिल (पक्का) नहीं होता। तौहीद का मतलब है कि

  • अल्लाह एक है, उसका कोई शरीक नही, न ज़ात में, न सिफ़ात (ख़ूबियों) में, न कामों में, न हुक्म देने में और न उसके नामों में।
  • वाजिबुलवुजूद है यानि उसका मौजूद होना ज़रूरी है और उसका न होना मुहाल (Impossible) है।
  • वह क़दीम है यानि हमेशा से है और वह ही बाक़ी है यानि हमेशा रहने वाला है।उसके लिये फ़ना मुहाल (Impossible) है। यह भी कह सकते हैं कि वह अज़ली है और अबदी है।
  • सिर्फ़ वह ही उस लायक़ है कि उसकी इबादत की जाये ।
  • वह किसी का मोहताज नहीं और तमाम जहान उसके मोहताज हैं।
  • उसकी ज़ात को अक़्ल से समझना नामुमकिन है क्योंकि उसकी ज़ात का कोई भी इहाता नहीं कर सकता यानि अपनी समझ के घेरे में नहीं ले सकता।
  • उसकी सिफ़ात उसकी ज़ात से अलग नहीं हो सकतीं ।
  • जिस तरह उसकी ज़ात हमेशा से है और हमेशा रहने वाली है उसी तरह उसकी सिफ़ात हमेशा से हैं और हमेशा रहने वाली हैं।
  • उसकी सिफ़ात न तो मख़लूक़ हैं और न ही बदलती हैं।
  • उसकी ज़ात और सिफ़ात के अलावा सभी चीज़ें हादिस हैं यानि पहले नहीं थीं बाद में अल्लाह तआला ने पैदा फ़रमाईं।
  • जो उसकी सिफ़ात को मख़लूक़ माने वो गुमराह व बद दीन है।
  • जो आलम की किसी भी चीज़ को यह माने कि वो हमेशा से है वह काफ़िर है।
  • वह न किसी का बाप, न बेटा और न उसकी कोई बीवी है उसके लिये बाप, बेटा या बीवी वग़ैरा मानने वाला काफ़िर है।
  • वह हर मुमकिन पर क़ादिर है, जो चीज़ नामुमकिन हो अल्लाह उससे पाक है जैसे दूसरा ख़ुदा मुहाल (Impossible) है, वैसे ही उसकी फ़ना भी मुहाल (Impossible) है।  
  • वह हर ऐब और नक़्स(कमी) से पाक है। झूठ, दग़ा, ज़ुल्म, बेईमानी, जहालत, बेहयाई वग़ैरा ऐब हैं और यह सब उसके लिए मुहाल हैं।
  • वह ज़िंदा है और सबकी ज़िंदगी उसके इख़्तियार (क़ब्ज़े) में है। वह जब चाहे, जिसे चाहे जिलाये (यानि ज़िंदगी दे) और जब चाहे, जिसे चाहे मौत दे।
  • हयात, क़ुदरत, सुनना, बोलना, देखना, चाहना और इल्म वग़ैरा उसकी ज़ाती सिफ़ात हैं लेकिन उसका सुनना कानो से नहीं, बोलना ज़ुबान से नही और देखना आँखो से नहीं, यह सब जिस्म हैं और अल्लाह जिस्म से पाक है।
  • वह हर धीमी से धीमी आवाज़ सुनता है और हर उस छोटी से छोटी चीज़ को भी देखता है जो माइक्रोस्कोप से भी नज़र न आए।
  • उसकी और सिफ़ात की तरह, उसका कलाम भी क़दीम यानि हमेशा से है हादिस या मख़लूक़ नहीं।
  • क़ुरआन पाक जो कलामे इलाही है अगर कोई उसे मख़लूक़ माने तो इमाम आज़म अबू हनीफ़ा रह. और दूसरे इमामों ने उसे काफ़िर क़रार दिया है।
  • उसको आलम की हर चीज़ का पूरा-पूरा इल्म है यहाँ तक कि दिल में आने वाले ख़्यालों का भी।
  • उसके इल्म की कोई हद नहीं।
  • हर ज़ाहिर (दिखने वाली) और छिपी हुई चीज़ उसे मालूम है।
  • ज़ाती इल्म सिर्फ अल्लाह के लिए ही ख़ास है अगर कोई किसी और के इल्म को ज़ाती माने यानि अल्लाह के बग़ैर दिये माने तो वह काफ़िर है।
  • हर चीज़ उसी की बनाई हुई है।
  • वह ही सबको रोज़ी देता है।
  • हर बुराई भलाई उसने अपने इल्म से मुक़द्दर कर दी यानि जैसा होने वाला था और जैसा कोई करने वाला था उसने अपने इल्म से लिख दिया। इसका मतलब यह नहीं कि जैसा उसने लिखा वैसा हमें करना पड़ा। उसके लिखने ने हमें मजबूर नहीं किया कि हम ऐसा करें बल्कि जो हम करने वाले थे उसने वह ही लिखा।
  • अल्लाह सिम्त (दिशा), मकान, ज़माने वग़ैरा से पाक है।
  • वह जो चाहे जैसा चाहे करे किसी को उस पर क़ाबू नहीं और न ही उसके मक़सद से उसे कोई रोक सकता है।
  • उसे न तो नींद आती है और न ही ऊँघ।
  • वह सारे जहानों का देखने वाला है। हमारा कोई भी काम उससे छिपा नहीं है।
  • सारे जहान वालों का वह ही पालने वाला है।
  • माँ-बाप से ज़्यादा मेहरबान और टूटे दिलों का सहारा है। सारी बड़ाईयाँ उसी के लिए हैं।
  • गुनाहों का माफ़ करने वाला और तौबा क़ुबूल करने वाला है।
  • ज़ालिम और गुनाहगारों पर क़हर और ग़ज़ब करने वाला है।
  • वह जिसे चाहे इज़्ज़त दे और जिसे चाहे ज़िल्लत दे।
  • वह जिसे चाहे मरदूद कर दे यानि अपनी रहमत से निकाल दे और जिसको चाहे अपनी रहमत से अपने पास कर ले
  • वह जिसे चाहे दे और जिससे चाहे छीन ले।
  • वह जो करता है वह ही अदल और इंसाफ़ है और वह ज़ुल्म से पाक है।
  • उसके चाहे बग़ैर कुछ भी नहीं हो सकता।
  • उसके हर काम में कोई राज़ या मसलेहत है, चाहे वह हमें मालूम हो या नहीं।
  • उसने दुनिया की हर चीज़ को कुछ सिफ़त (ख़ासियत) दी है जैसे आग जलाती है, पानी प्यास बुझाता है, आँख देखती है, कान सुनते हैं वग़ैरा – वग़ैरा लेकिन अगर वह चाहे तो न आग जलाए, न पानी प्यास बुझाए जैसे इब्राहीम ے को जब भड़कती आग में डाला गया तो वह उनको कुछ भी नुक़सान न पहुँचा सकी।

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