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मदीना-ए-तय्यिबा की हाज़री
हाज़िरी में ख़ालिस ज़्यारते अक़दस की नीयत करो यहाँ तक कि इमाम इब्ने हुमाम फ़रमाते हैं इस बार मस्जिदे नबवी शरीफ़ की नीयत भी शरीक न करे। हज अगर फ़र्ज़ है तो हज करके मदीना तय्यिबा हाज़िर हो, हाँ अगर मदीना तय्यिबा रास्ते में हो तो बग़ैर ज़्यारत हज को जाना सख़्त महरूमी व क़सावते क़ल्बी (संगदिली) है और इस हाज़िरी को हज के क़ुबूल होने और दीनी व दुनयवी भलाई के लिए ज़रीआ व वसीला क़रार दे और नफ़्ल हज हो तो इख़्तयार है कि पहले हज से पाक साफ़ होकर महबूब के दरबार में हाज़िर हो या सरकार में पहले हाज़िरी देकर हज की मक़बूलियत व नूरानियत के लिए वसीला करे ग़रज़ जो चाहे पहले इख़्तयार करे उसे इख़्तयार है मगर नीयते ख़ैर ज़रूरी है