4. एहराम

4. एहराम

जो कोई भी मक्का-ए-मुकर्रमा जाए, चाहे किसी भी मक़सद से उसे मीक़ात पर से गुज़रने से पहले एहराम बाँधना ज़रूरी है। एहराम एक हालत का नाम है जिसमें कुछ हलाल चीज़ें हराम हो जाती हैं और इस हालत में दाख़िल होने के लिये नीयत करके “तलबियह” कहा जाता है और दो बिना सिली चादरों  से बदन को ढका जाता है (औरतों के लिये एहराम में सिले हुए कपड़े पहनना जाइज़ है)।

एहराम कब बांधें?

भारत या पाकिस्तान से जाने वालों के लिए मीक़ात (जहाँ से एहराम बाँधने का हुक्म है) “यलम लम” पहाड़ के बराबर से शुरू होता है जो जद्दा से पहले है लिहाज़ा जद्दा में उतर कर एहराम नही बाँध सकते इसलिये यह ज़रूरी है कि अपने एयरपोर्ट से रवाना होने से पहले ही एहराम बाँध लेना चाहिये। अगर बिना एहराम के जद्दा पहुँच गये तो “दम” (क़ुरबानी) देना वाजिब होगा लेकिन अगर मीक़ात पर वापस जाकर एहराम बाँध लें तो दम साक़ित यानि ख़त्म हो जाएगा या किसी वजह से बिना उमरा पूरा किए किसी ने एहराम खोल दिया तब भी दम वाजिब आ जाता है लेकिन  अगर मीक़ात पर वापस जाकर दोबारा एहराम बाँध लें तो दम साक़ित यानि ख़त्म हो जाएगा।