بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
- जब एहराम का इरादा करें मिस्वाक करें और वुज़ू करें बेहतर है कि ख़ूब अच्छी तरह नहायें।
- हैज़ व निफ़ास वाली औरतें और बच्चे भी नहायें और पाकी के साथ एहराम बाँधें।
- पानी नुकसान करे तो उसकी जगह तयम्मुम नहीं कर सकते, अगर एहराम की नमाज़ के लिए तयम्मुम करें तो हो सकता है।
- मर्द चाहें तो सिर मुंडवा लें क्योंकि एहराम में बालों की देखभाल से निजात मिलेगी वरना कंघा करें ख़ुशबुदार तेल डालें।
- ग़ुस्ल से पहले नाख़ून कतरें, ख़त बनवायें और सब ग़ैर ज़रूरी बाल साफ़ कर लें।
- मर्द सिले हुए कपड़े और मोज़े उतार दें।
- एक चादर नई या धुली हुई ओढ़ लें और एक दूसरी चादर की तहबन्द बाँध लें। ये कपड़े सफ़ेद और नये हों तो बेहतर हैं। और अगर एक ही कपड़ा पहना जिससे सारा सत्र छुप गया तब भी जाइज़ है।
- बाज़ लोग यह करते हैं कि उसी वक़्त से चादर दाहिनी बग़ल के नीचे करके दोनों पल्लू बायें कंधे पर डाल देते हैं यह ख़िलाफ़े सुन्नत है बल्कि सुन्नत यह है कि इस तरह चादर ओढ़ना तवाफ़ के वक़्त है और तवाफ़ के अलावा बाक़ी वक़्तों में आदत के मुवाफ़िक़ चादर ओढ़ी जायें यानि दोनों कंधे, पीठ और सीना सब छुपा रहे।
- वक़्त अगर मकरूह न हो तो दो रकआत एहराम की नीयत से पढ़ें पहली में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह काफ़िरून और दूसरी में सूरह इख़्लास पढ़ें।
- एहराम बिना नमाज़ के बाँधना जाइज़ है लेकिन मकरूह है लेकिन अगर नमाज़ के लिये वक़्त मकरूह है तो बिना नमाज़ एहराम मकरूह नहीं।
- हजे तमत्तौ के लिये पहले उमरा करते हैं लिहाज़ा पहले सिर्फ़ उमरे की नीयत करें ।
उमरे की नीयत
اَللَّھُمَّ اِنِّیۡ اُرِیۡدُ الۡعُمۡرَۃَ فَیَسِّرۡھَا لِیۡ وَتَقَبَّلُھَا مِنِّیۡ
نَوَیۡتُ الۡعُمۡرَۃَ وَاَحۡرَمۡتُ بِھَا مُخۡلِصًا لِّلّٰہِ تَعَالٰی
(ऐ अल्लाह! मैं उमरा का इरादा करता हूँ इसे तू मेरे लिए आसान कर और इसे क़ुबूल फ़रमा ले
मैंने उमरा की नीयत की और ख़ास अल्लाह के लिए मैंने इसका एहराम बाँधा।)
हज-ए-अफ़राद की नीयत (इसमें सिर्फ़ हज की नीयत से एहराम बाँधा जाता है)
اَللَّھُمَّ اِنِّیۡ اُرِیۡدُ الۡحَجَّ فَیَسِّرۡھُ لِیۡ وَتَقَبَّلۡھُ مِنِّیۡ
نَوَیۡتُ الۡحَجَّ وَاَحۡرَمۡتُ بِہٖ مُخۡلِصًا لِّلّٰہِ تَعَالٰی
(ऐ अल्लाह! मैं हज का इरादा करता हूँ इसे तू मेरे लिए आसान कर और क़ुबूल फ़रमा ले
मैंने हज की नीयत की और ख़ास अल्लाह के लिए मैंने इसका एहराम बाँधा।)
हज-ए-क़िरान की नीयत (इसमें उमरे और हज का एहराम एक साथ बाँधा जाता है)
اَللَّھُمَّ اِنِّیۡ اُرِیۡدُ الۡعُمۡرَۃَ وَ الۡحَجَّ فَیَسِّرۡھُمَا لِیۡ وَتَقَبَّلۡ ھُمَا مِنِّیۡ
نَوَیۡتُ الۡعُمۡرَۃَ وَ الۡحَجَّ وَاَحۡرَمۡتُ بِہِمَا مُخۡلِصًا لِّلّٰہِ تَعَالٰی
(ऐ अल्लाह मैं उमरा और हज का इरादा करता हूँ तू इन दोनों को मेरे लिए आसान कर और क़ुबूल फ़रमाले
मैंने उमरा और हज की नीयत की और ख़ास अल्लाह के लिए मैंने इनका एहराम बाँधा।)
इस नीयत के बाद तलबियह आवाज़ के साथ तीन बार कहें,
तलबियह यह है-
ؕلَبَّيْكَ اَللَّهُمَّ لَبَّيْكَ ؕ لَبَّيْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ لَبَّيْكَ
ؕ اِنَّ الْحَمْدَ وَالنِّعْمَةَ لَكَ وَالْمُلْكَ ؕ لَا شَرِيكَ لَكَ
(मैं हाज़िर हूँ । ऐ अल्लाह! मैं हाज़िर हूँ । मैं हाज़िर हूँ तेरा कोई भी शरीक नहीं मैं हाज़िर हूँ ।
बेशक तमाम तारीफ़ें और नेमतें तेरे लिये हैं और मुल्क भी तेरा ही है । तेरा कोई शरीक नहीं है।)
- और फिर दुरूद शरीफ़ पढ़े इसके बाद दुआ माँगे। यह दुआ माँग सकते हैं-
اَللَّھُمَّ اِنِّیۡ اَسۡأَ لُکَ رِضَکَ وَالۡجَنَّتَ
وَ اَعُوۡذُبِکَ مِنۡ غَضَبِکَ وَلنَّارِ
(ऐ अल्लाह! मैं तेरी रज़ा और जन्नत का तुझसे सवाल करता हूँ
और तेरे ग़ज़ब व जहन्नम से तेरी पनाह माँगता हूँ।)