मिना की रवानागी

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

 

  • सूरज निकलने के बाद मक्का-ए-मुकर्रमा से मिना को चलें अगर सूरज निकलने से पहले ही चले गये जब भी जाइज़ है मगर बाद में बेहतर है और ज़वाल के बाद भी जा सकते हैं मगर ज़ुहर की नमाज़ मिना में ही पढ़ें, क्योंकि मिना में ठहरने के दरमियान ज़ुहर, असर, मग़रिब, इशा और फ़ज्र, पाँच नमाज़ें पढ़ना मुस्तहब है।
  • हो सके तो पैदल जाएं क्योंकि जब तक मक्का-ए-मौअज़्ज़मा से वापस आएंगे तो हर क़दम पर सात करोड़ (70,000,000) नेकियाँ लिखी जायेंगी।
  • रास्ते भर लब्बैक व दुआ व दुरूद व सना की कसरत करें।
  • जब मिना नज़र आये यह दुआ पढ़ें। दुआ याद न हो तो देख कर पढ़ें या फिर दुरूद शरीफ़ पढ़ें।

اَللَّھُمَّ ھٰذِیْ مِنِّ فَامْنُنْ عَلَیَّ بِمَا مَنَنْتَ بِھِ عَلٰی اَوْلِیَآئِکَ 

(ऐ अल्लाह यह मिना है पस तू मुझ पर वह अहसान फ़रमा जो तूने अपने दोस्तों पर अहसान फ़रमाया)

  • यहाँ रात को ठहरें और ज़ुहर से नौ (9) की सुबह तक की पाँचों नमाज़ें यहीं मस्जिदे ख़ैफ़ में पढ़ें।
  • नौ (9) ज़िल्लहिज्जा की यह रात जिसे अरफ़ा की रात भी कहते हैं बहुत ही मुबारक है इसे सो कर बर्बाद न करें और ज़िक्र व इबादत में गुजारें यह रात सोने के लिए नहीं है सोने के लिए तो बहुत रातें पड़ी हैं।
  • नबी-ए-करीमگ ने फ़रमाया कि जो शख़्स अरफ़ा की रात में एक हज़ार बार यह दुआ पढ़े तो जो कुछ अल्लाह तआला से माँगेगा पायेगा                                                      

(बेहक़ी व तिबरानी)

 ؕ سُبْحَانَ الَّذِیْ فِی السَّماءِ عَرْشُہٗ ؕ سُبْحَانَ الَّذِیْ فِی الْاَرْضِ مَوْطِئُہٗ

 ؕسُبْحَانَ الَّذِیْ فِی الْبَحْرِسَبِیْلُہٗ ؕ سُبْحَانَ الَّذِیْ فِی النَّارِ سُلْطَانُہٗ

  ؕ      سُبْحَانَ الَّذِیْ فِی الْجَنَّۃِ رَحْمَتُہٗ ؕ سُبْحَانَ الَّذِیْ فِی الْقَبْرِقَضَاءُہٗ

 ؕسُبْحَانَ الَّذِیْ فِی الْھَوَآءِ رُوْحُہُ ؕ سُبْحَانَ الَّذِیْ رَفَعَ السَّمَآءَ

 سُبْحَانَ الَّذِیْ وَضَعَ الْاَرْضَ ؕ  سُبْحَانَ الَّذِیْ لَآ مَلْجَأَ مِنْہُ اِلَّا اِلَیْھِؕ

(पाक है वह जिसका अर्श बुलन्दी पर है, पाक है वह जिसकी हुकूमत ज़मीन में है,

पाक है वह कि दरिया में उसका रास्ता है, पाक है वह कि आग में उसकी सल्तनत है,

पाक है वह कि जन्नत में उसकी रहमत है, पाक है वह कि क़ब्र में उसका हुक्म है,

पाक है वह कि हवा में जो रूहें हैं उसकी मिल्क हैं,  पाक है वह जिसने आसमान को बुलन्द किया,

पाक है वह जिसने ज़मीन को पस्त किया, पाक है वह कि उसके अज़ाब से निजात की कोई जगह नहीं मगर उसी की तरफ़।)

  • सुबह मुस्तहब वक़्त में यानि जब ख़ूब उजाला हो जाए फ़ज्र की नमाज़ पढ़ें इसके बाद लब्बैक व ज़िक्र व दुरूद शरीफ़ में मशग़ूल रहें यहाँ तक कि सूरज मस्जिदे ख़ैफ़ शरीफ़ के सामने सुबेर की पहाड़ी पर चमके तो नाश्ते वग़ैरा से निपट कर अराफ़ात को रवाना हो जाएं। सूरज निकलने से पहले अराफ़ात को जाना सुन्नत के ख़िलाफ़ है।

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