हज का एहराम

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

हज का एहराम बाँधना (हज-ए-तमत्तौ करने वाले के लिए)

  • वो हाजी जो बाहर से आए हैं और हज-ए-तमत्तौ कर रहे हैं यानि उन्होंने उमरा करने के बाद एहराम खोल दिया था वो एहराम बाँध लें।
  • एहराम के बारे में ज़रूरी बातें और मसाइल जो पहले बयान किये जा चुके हैं मसलन ग़ुस्ल करना ख़ुशबू लगाना उनका यहाँ भी लिहाज़ रखे और नहा धोकर मस्जिद-ए-हराम शरीफ़ में आये।
  • हज का एहराम मस्जिद-ए-हराम में बाँधना मुस्तहब है। हरम शरीफ़ की हद में किसी भी जगह से एहराम बाँधा जा सकता है।
  • फिर दो रकअत नमाज़ एहराम की नीयत से पढ़ें।
  • उसके बाद हज की नीयत करें-

اَللَّھُمَّ  اِنِّیۡ اُرِیۡدُ الۡحَجَّ  فَیَسِّرۡھُ لِیۡ وَتَقَبَّلۡھُ مِنِّیۡ

  • और तीन (3) ऊँची आवाज़ से तलबियाह यानि लब्बैक…. कह कर दुआ माँगें।
  • अब हज का एहराम बँध गया और सारी पाबंदियाँ जो उमरा के एहराम के वक़्त थीं फिर वापस आ गईं।
  • एक नफ़्ल तवाफ़ रमल व इज़्तिबा के साथ कर लें।
  • उसके बाद तवाफ़ की नमाज़ ब-दस्तूर अदा करें।
  • आज ही तवाफ़-ए-ज़ियारत की सई भी कर लें हालांकि अफ़ज़ल यह है कि जब मिना से तवाफ़-ए-ज़ियारत के लिए आयें तब इस की सई करें लेकिन हाजियों की आसानी के लिए पहले भी जाइज़ है।
  • हज-ए-क़िरान या हज-ए-अफ़राद करने वाले हाजी जो पहले से ही एहराम में हैं और तवाफ़-ए-क़ुदूम में तवाफ़-ए-ज़ियारत की सई कर चुके हैं, उन्हें दोबारा से एहराम बाँधने या तवाफ़-ए-ज़ियारत की सई करने की ज़रूरत नहीं।
  • औरतें अगर नापाकी की हालत में हों तो ग़ुस्ल या सिर्फ़ वुज़ू करके अपने ठहरने की जगह पर ही हज की नीयत से एहराम बाँध लें और तवाफ़-ए-ज़ियारत की सई मिना से वापस आकर तवाफ़-ए-ज़ियारत के साथ ही करें।  

 

 

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