بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
- आख़िर दिन यानि बारहवीं या तेरहवीं को जब मिना से रुख़्सत होकर मक्का-ए-मौअज़्ज़मा को चलें तो वादी-ए-मुहस्सब में जो कि जन्नतुल मुअल्ला के क़रीब है सवारी से उतर कर या बिना उतरे कुछ देर ठहर कर दुआ करें और बेहतर यह है कि इशा तक नमाज़ें यहीं पढ़ें और एक नींद लेकर मक्का-ए-मौअज़्ज़मा में दाख़िल हों।
- तेरह के बाद जब तक मक्का में ठहरें अपने और अपने पीर, उस्ताद, माँ, बाप ख़ुसूसन हुज़ूर पुरनूर सय्यदे आलमگ और उनके असहाब व अहलेबैत व बुज़ुर्गाने दीन की तरफ़ से जितने हो सकें उमरे करते रहें।
- तनईम जो को कि मक्का-ए-मौअज़्ज़मा से उत्तर की तरफ़ यानि मदीना तय्यबा की तरफ़ तीन मील फ़ासले पर है जाकर, वहाँ से उमरा का एहराम जिस तरह ऊपर बयान हुआ बाँध कर आएं और तवाफ़ व सई तरीक़े के मुताबिक़ करके हल्क़ या तक़सीर कर लें उमरा हो गया।
- जो हल्क़ कर चुका जैसे उसी दिन एक उमरा कर चुका हो या जिसके सिर पर बाल ही न हों वह सिर पर उस्तरा फिरवा ले काफ़ी है।
- मक्का-ए-मौअज़्ज़मा में कम से कम एक ख़त्म क़ुरआन मजीद से महरूम न रहें।
ख़ाना-ए-काबा के ग़िलाफ़ के मुताल्लिक़ ज़रूरी मसाइल:
- काबा-ए-मौअज़्ज़मा के ग़िलाफ़ से लोग धागे वग़ैरा नोचते हैं ऐसा करना जाइज़ नहीं बल्कि अगर कोई टुकड़ा अलग होकर गिर पड़े तो उसे भी न लें और ले लें तो किसी फ़क़ीर को दे दें।
- काबा-ए-मौअज़्ज़मा में ख़ुशबू लगी हो उसे भी लेना जाइज़ नहीं और ली तो वापस कर दें और ख़्वाहिश हो तो अपने पास से ख़ुशबू ले जाकर मस कर लाये यानि अपनी ख़ुशबू मसलन रूई में लगा कर काबा शरीफ़ या उसके ग़िलाफ़ से उस रूई को लगाये फिर उस रूई को ख़ुद रख ले।