मुज़दलफ़ा की रवानगी

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

मुज़दलफ़ा में मग़रिब और इशा की नमाज़ें इकठ्ठा करके इशा के वक़्त मे पढ़ी जाती हैं और यहाँ पूरी रात गुज़ारना सुन्नत-ए-मुअक्कदा है और वुक़ूफ़ का अस्ल वक़्त सुबह सादिक़ यानि फ़ज्र का वक़्त शुरू होने से लेकर रौशनी फैलने तक है (यानि सूरज निकलने से लगभग पाँच मिनट पहले तक)।

हदीस-ए-नबवीگ

हज्जतुलविदाअ में नबी گ अराफ़ात से मुज़दलफ़ा में तशरीफ़ लाये यहाँ मग़रिब व इशा की नमाज़ पढ़ी फिर लेटे यहाँ तक कि नमाज़े फ़ज्र का वक़्त शुरू हुआ जब सुबह हुई उस वक़्त अज़ान व इक़ामत के साथ नमाज़े फ़ज्र पढ़ी फिर अपनी ऊँटनी क़ुस्वा पर सवार होकर मशअरे हराम में आये और क़िबले की जानिब मुँह करके दुआ व तकबीर व तहलील व तौहीद में मशग़ूल रहे और वुक़ूफ़ किया यहाँ तक कि ख़ूब उजाला हो गया और सूरज निकलने से पहले यहाँ से रवाना हुए।

(सही मुस्लिम शरीफ़ में जाबिरک से मरवी)

रसूलुल्लाहگ ने ख़ुतबा पढ़ा और फ़रमाया कि अहले जाहिलियत अराफ़ात से उस वक़्त रवाना होते थे जब आफ़ताब मुँह के सामने होता ग़ुरूब से पहले और मुज़दलफ़ा से तुलूए़ आफ़ताब (सूरज निकलने) के बाद रवाना होते जब आफ़ताब चेहरे के सामने होता और हम अराफ़ात से न जायेंगे जब तक आफ़ताब डूब न जाये और मुज़दलफ़ा से सूरज निकलने से पहले रवाना होंगे हमारा तरीक़ा बुतपरस्तों और मुशरिकीन के तरीक़े के ख़िलाफ़ है।

(बैहक़ी मुहम्मद इब्ने क़ैस इब्ने मख़ज़िमा से रावी )

  • जब ग़ुरूब-ए-आफ़ताब का यक़ीन हो जाये फ़ौरन मुज़दलफ़ा को चलो और इमाम के साथ जाना अफ़ज़ल है मगर वह देर करें तो उसका इंतज़ार न करो।
  • रास्ते भर ज़िक्र व दुरूद व दुआ व लब्बैक व रोने-धोने में मसरूफ़ रहो। इस वक़्त की दुआ पढ़ें दुआ याद न हो तो किसी किताब से देख कर पढ़ें या उसका उर्दू या हिन्दी तर्जुमा पढ़ें या फिर कोई सा दुरूद पढ़ें।
  • जब मुज़दलफ़ा नज़र आये अगर पैदल चल सकते हों तो पैदल चलना बेहतर है।
  • नहा कर दाख़िल होना अफ़ज़ल, मुज़दलफ़ा में दाख़िल होते वक़्त यह दुआ पढ़ें या उसका तर्जुमा पढ़ें या फिर दुरूद पढ़ें।

اَللَّھُمَّ حَرِّمْ لَحْمِیْ وَعَظْمِیْ وَشَحْمِیْ وَ شَعْرِیْ وَسَائِرَ  

 ؕجَوَارِحِیْ عَلَی النَّار ؕ یَآ اَرْحَمَ الرَّاحِمِیْنَ

(ऐ अल्लाह मेरे गोश्त, हड्डी, चर्बी, बाल और तमाम आज़ा को

जहन्नुम पर हराम कर दे, ऐ सब मेहरबानों से ज़्यादा मेहरबान)

मुज़दलफ़ा में मग़रिब व इशा की नमाज़ें मिलाकर पढ़ना।

  • मुज़दलफ़ा पहुँचकर सबसे पहले इमाम के साथ मग़रिब व इशा पढ़ें और अगर वक़्त मग़रिब का बाक़ी भी रहे जब भी अभी मग़रिब हरगिज़ न पढ़ें, यहाँ मग़रिब की नमाज़ मग़रिब के वक़्त में पढ़ना गुनाह है और अगर पढ़ ली तो इशा के वक़्त फिर पढ़नी होगी।
  • मुज़दलफ़ा में पहुँच कर मग़रिब वक़्ते इशा में अदा की नीयत से पढ़ें न कि क़ज़ा की नीयत से जहाँ तक हो सके इमाम के साथ पढ़ें मग़रिब का सलाम फेरते ही फ़ौरन इशा के फ़र्ज़ पढ़ लें उसके बाद मग़रिब की सुन्नतें पढ़ें और फिर इशा की सुन्नतें और वित्र पढ़ें और अगर इमाम के साथ जमाअत न मिल सके तो अपनी जमाअत कर लें और अपनी जमाअत भी न हो सके तो तन्हा पढ़ें।
  • मग़रिब इशा के वक़्त में पढ़नी उसी के लिए ख़ास है जो मुज़दलफ़ा को आये और अगर अराफ़ात ही में रात को ठहर गया या मुज़दलफ़ा के सिवा दूसरे रास्ते से वापस हुआ तो उसे मग़रिब की नमाज़ मग़रिब के वक़्त में पढ़नी ज़रूरी है।
  • अगर मुज़दलफ़ा के आने वाले ने मग़रिब की नमाज़ रास्ते में पढ़ी या मुज़दलफ़ा पहुँच कर इशा का वक़्त आने से पहले पढ़ ली तो उसे हुक्म यह है कि दोबारा पढ़े मगर नहीं किया और फ़ज्र की नमाज़ का वक़्त हो गया तो वह नमाज़ अब सही हो गई।
  • अगर रास्ते में इतनी देर हो गई कि नमाज़े फ़ज्र का वक़्त हो जाने का अन्देशा है तो अब रास्ते ही में दोनों नमाज़ें यानि मग़रिब व इशा पढ़ ले, मुज़दलफ़ा पहुँचने का इंतज़ार न करे।
  • अराफ़ात में तो ज़ुहर व अस्र के लिए एक अज़ान और दो इक़ामतें हैं और मुज़दलफ़ा में मग़रिब व इशा के लिए एक अज़ान और एक ही इक़ामत।
  • दोनों नमाज़ों के दरमियान में सुन्नत व नवाफ़िल न पढ़ें मग़रिब की सुन्नतें भी इशा के बाद पढ़ें अगर दरमियान में सुन्नतें पढ़ीं या कोई और काम किया तो एक इक़ामत और कही जाये यानि इशा के लिए।
  • फ़ज्र का वक़्त होने के बाद मुज़दलफ़ा में आया तो सुन्नत छूट गई मगर दम वग़ैरा उस पर वाजिब नहीं।
  • नमाज़ों के बाद बाक़ी रात ज़िक्र व लब्बैक व दुरूद व दुआ व अपने गुनाहों की माफ़ी माँगते हुए रोने में गुज़ारें, क्योंकि यह बहुत अफ़ज़ल जगह और बहुत अफ़ज़ल रात है बाज़ उलमा ने इस रात को शबे क़द्र से भी अफ़ज़ल कहा है। ज़िन्दगी है तो सोने को और बहुत रातें मिलेंगी और यहाँ यह रात ख़ुदा जाने दोबारा किसे मिले।

अगर थकान ज़्यादा हो और पूरी रात जागना मुमकिन न हो तो वुज़ू करके सो जाओ, और इतने पहले उठ जाओ कि तहज्जुद पढ़ कर फ़ज्र की नमाज़ शुरू वक़्त में ही अंधेरे में पढ़ें। कोशिश करो कि जमाअत से पढ़ें बल्कि पहली तकबीर न छूटे क्योंकि इशा व सुबह जमाअत से पढ़ने वाला भी पूरी शब बेदारी (रात भर जाग कर इबादत करने) का सवाब पाता है।

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