वुक़ूफ़-ए-अराफ़ात

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

अरफ़ात में ज़ुहर व अस्र की नमाज़ अदा करना और  वुक़ूफ़ (ठहरना)

  • दोपहर ढलते ही बल्कि इससे पहले ही ताकि इमाम के क़रीब जगह मिले मस्जिदे नमरा जायें सुन्नतें पढ़ कर ख़ुतबा सुन कर इमाम के साथ ज़ुहर पढ़ें।
  • इसके बाद बग़ैर देर किये अस्र की तकबीर होगी फ़ौरन जमाअत से अस्र पढ़ें।
  • बीच में न तो सुन्नतें पढ़ें और न ही कोई बात-चीत या सलाम वग़ैरा करें।
  • आमतौर पर मस्जिदे नमरा में जाना आसान नहीं क्योंकि लाखों की भीड़ में वहाँ तक पहुचना आसान नहीं और फिर अपने ख़ेमे से दूर जाने पर भटकने या गुम हो जाने का भी अंदेशा रहता है और इस तरह से दुआ और इस्तग़फार का यह मुबारक वक़्त उलझन या परेशानी में गुज़र जाता है। लिहाज़ा ज़ुहर और अस्र की नमाज़ अपने ख़ेमें में ही पढ़ें।
  • जिसने ज़ुहर अकेले या अपनी ख़ास जमाअत से पढ़ी उसे वक़्त से पहले अस्र पढ़ना जाइज़ नहीं।
  • ज़ुहर और अस्र की नमाज़ से फ़ारिग़ होने के बाद किसी और काम में न लगें, बल्कि दुआओं में लग जाएं और बहुत ही आजिज़ी से अपने लिए, अपने रिशतेदारों के लिए और तमाम मुसलमानों के लिए दुआ व इस्तग़फ़ार करें और सूरज डूबने तक दुआ व इस्तग़फ़ार का सिलसिला जारी रखें।

बैहक़ी जाबिर इब्ने अब्दुल्लाहک से रावी हैं कि रसूलुल्लाहگ  ने फ़रमाया जो मुसलमान अरफ़ा के दिन पिछले पहर को मौक़फ़ में वुक़ूफ़ करे फिर सौ बार कहें:

 

لَآ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحۡدَہٗ   لَاشَرِیۡکَ لَہٗ لَہٗ الۡمُلۡکُ

   وَلَہُ الْحَمْدُ يُحْيْي وَيُميتُ    وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَئٍ قَدِیۡرٌؕ

 

और सौ बार सूरह इख़्लास पढ़ें और फिर सौ बार यह दुरूद पढ़े:

اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی مُحَمَدٍوَّعَلٰٓی اٰلِ مُحَمَدٍ کَمَا صَلَّیۡتَ عَلٰٓی اِبۡرٰھِیۡمَ

وَعَلٰٓی اٰلِ اِبۡرٰھِیۡمَ اِنَّکَ حَمِیۡدٌ مَجِیۡدٌ 

 

अल्लाह तआला फ़रमाता है, ऐ मेरे फ़रिश्तो! मेरे इस बन्दे को क्या सवाब दिया जाये जिसने मेरी तस्बीह व तहलील की और तकबीर व ताज़ीम की मुझे पहचाना और मेरी सना की और मेरे नबी पर दुरूद भेजा, ऐ मेरे फ़रिश्तो! गवाह रहो कि मैंने इसे बख़्श दिया और इसकी शफ़ाअत ख़ुद इसके हक़ में क़ुबूल की और अगर यह मेरा बन्दा मुझसे सवाल करे तो इसकी शफ़ाअत जो यहाँ हैं सबके हक़ में क़ुबूल करूँ।

  • सोचो कि जब शरीयत में इस वक़्त को दुआ के लिए ख़ास करने के लिए इतना लिहाज़ रखा गया है कि अस्र को ज़ुहर के साथ मिला कर पढ़ने का हुक्म दिया गया है तो ऐसे मुबारक लम्हों को दूसरे किसी भी काम में लग कर बर्बाद न करें। नमाज़ पढ़ते ही फ़ौरन “मौक़फ़” मेंखड़े होकर ज़िक्र व दुआ करते रहें। यहाँ उस वक़्त इस मजमे में यक़ीनन बहुत से औलिया बल्कि हज़रत इलयासے व हज़रत ख़िज़्रے दो नबी भी मौजूद हैं यह तसव्वुर करें कि अनवार व बरकात जो उस मजमा में उन पर उतर रहे हैं उनका सदक़ा हम भिखारियों को भी पहुँचेगा। याद रखें वहाँ की हाज़िरी छोड़ने की चीज़ नहीं।
  • मैदान-ए-अराफ़ात में “बतन-ए-उरना” के अलावा सारा मैदान “मौक़फ़” है। (बतने उरना अराफ़ात में हरम के नालों में से एक नाला है जो मस्जिद-ए-नमरा के पच्छिम की तरफ़ है वहाँ वुक़ूफ़ नाजाइज़ है)
  • बेहतर यह है कि इमाम से नज़दीक जबल-ए-रहमत के क़रीब जहाँ छोटी सी मस्जिद है वहाँ पर क़िबले की तरफ़ मुँह करके इमाम के पीछे खड़े हों।
  • यह ही वुक़ूफ़-ए-अराफ़ात है जो हज की जान है और उसका बड़ा रुक्न है वुक़ूफ़ के लिए खड़ा रहना अफ़ज़ल है, शर्त या वाजिब नहीं, बैठा रहा जब भी वुक़ूफ़ हो गया, वुक़ूफ़ में नीयत और क़िब्ले की तरफ़ मुँह करना अफ़ज़ल है।
  • इस वक़्त कोई दूसरा क्या कर रहा है उस तरफ़ भी ध्यान मत दो,यह वक़्त औरों के ऐब देखने का नहीं अपने ऐबों पर शर्मसारी और गिरया व ज़ारी का है।
  • इस मुबारक घड़ी में सब लोग बिल्कुल सच्चे दिल से अपने करीम मेहरबान रबकी तरफ़ ध्यान लगाएं और ऐसा तसव्वुर करें कि क़यामत के मैदान में आमाल के हिसाब के लिए उसके हुज़ूर हाज़िर हो रहे हैं।
  • बहुत ही ख़ुशू व ख़ुज़ू के साथ लरज़ते, काँपते, डरते, उम्मीद करते, आँखें बन्द किये, गर्दन झुकाये, हाथों को दुआ के लिए आसमान की तरफ़ सिर से ऊँचा फैलाये हुए, तकबीर, तहलील, तस्बीह, लब्बैक, हम्द, ज़िक्र, दुआ, तौबा और इस्तग़फ़ार में डूब जायें ख़ूब आँसूं बहायें क्योंकि आँसू का टपकना दुआ के क़ुबूल होने और ख़ुशनसीबी की दलील है। रोना न आए तो रोनेकी सूरत ही बना लें।
  • दुआ व ज़िक्र के दरमियान लब्बैक की बार-बार तकरार करते रहें।
  • सबसे बेहतर यह कि सारा वक़्त दुरूद व ज़िक्र व तिलावते क़ुरआन में गुज़ार दें कि हदीस के वादे के मुताबिक़ दुआ वालों से ज़्यादा पाओगे।
  • नबीگ  का दामन पकड़ें, और अल्लाह के प्यारों से तवस्सलु करें, अपने गुनाह और उसकी क़ह्हारी याद करके लरज़ जाओ और यक़ीन जानो कि उसकी मार से उसी के पास पनाह है उससे भाग कर कहीं नहीं जा सकते उसके दर के सिवा कहीं ठिकाना नहीं लिहाज़ा शफ़ाअत करने वालों का दामन पकड़ें।
  • उसके अज़ाब से उसी की पनाह माँगें और उसी हालत में रहें कि कभीउसके ग़ज़ब की याद से काँप जाओ और कभी उसकी रहमत की उम्मीद से ख़ुश हो जाओ।
  • इसी तरह रोते हुए और आजिज़ी में सारा वक़्त गुज़ार दें यहाँ तक कि सूरज डूब जाये और रात का एक थोड़ा सा हिस्सा आ जाये इससे पहले चला जाना मना है।
  • बाज़ जल्दबाज़ दिन ही से चल देते हैं उनका साथ न दें और सूरज डूबने के वक़्त तक वहाँ ठहरें।
  • ग़ुरूब से पहले अराफ़ात की हदों से निकल गये तब तो पूरा-पूरा जुर्म है और कफ़्फ़ारे के तौर पर क़ुरबानी लाज़िम हो जाती है।
  • इस जगह पर पढ़ने के लिए दुआयें आई हैं उन्हें पढ़ें दुआ याद न हो तो किसी किताब से देख कर पढ़ें या उसका उर्दू या हिन्दी तर्जुमा पढ़ें या फिर कोई दुरूद शरीफ़ पढ़ें। दुरूद शरीफ़ व तिलावत-ए-क़ुरआन मजीद सब दुआओं से ज़्यादा फ़ायदेमन्द है।
  • इस दिन का एक अदब जिसका याद रखना वाजिब है बहुत ज़रूरी है वह यह है कि अल्लाह तआला के सच्चे वादों पर भरोसा करके यक़ीन करें कि आज मैं गुनाहों से ऐसा पाक हो गया जैसा जिस दिन माँ के पेट से पैदा हुआ था। अब कोशिश करूँगा कि आइन्दा गुनाह न हों और जो दाग़ अल्लाह तआला ने अपनी रहमत से मेरे माथे से धोया है फिर न लगे।

 

वुक़ूफ़ की सुन्नतें

वुक़ूफ़ में ये काम सुन्नत हैं:-

  • ग़ुस्ल।
  • दोनों ख़ुतबों की हाज़िरी।
  • दोनों नमाज़ें मिला कर पढ़ना।
  • बिना रोज़ा होना।
  • बा-वुज़ू होना।
  • नमाज़ों के बाद फ़ौरन वुक़ूफ़ करना।

वुक़ूफ़ के मकरूहात

  • सूरज डूबने से पहले वुक़ूफ़ छोड़ कर मुज़दलफ़ा की रवानगी जबकि ग़ुरूब तक अराफ़ात की हदों से बाहर न हो जाये वरना हराम है।
  • नमाज़-ए-अस्र व ज़ुहर मिलाने के बाद मौक़फ़ को जाने में देर करना।
  • अस्र की नमाज़ के बाद से सूरज डूबने तक खाने पीने या ख़ुदा की तरफ़ तवज्जो के सिवा किसी काम में मशग़ूल होना।
  • कोई दुनियावी बात करना।
  • सूरज डूबने के बाद रवानगी में देर करना।
  • मग़रिब या इशा अराफ़ात में पढ़ना।
  • मौक़फ़ में छतरी लगाने या किसी तरह साया चाहने से ताक़त भर बचो।

ज़रूरी नसीहत: बदनिगाही (बुरी नज़र से देखना) हमेशा हराम है न कि सिर्फ़ एहराम में या मौक़फ़ या मस्जिद-ए-हराम में या काबा-ए-मौअज़्ज़मा के सामने या तवाफ़-ए- बैतुल्लाह में यह तुम्हारे बहुत इम्तिहान का मौक़ा है औरतों को हुक्म दिया गया है कि यहाँ मुँह नछुपाएं और मर्दों के लिए हुक्म है कि उनकी तरफ़ निगाह न करें। यक़ीन जानो कि यह बड़े ग़ैरत वाले बादशाह की बांदियाँ हैं और उस वक़्त तुम और वो ख़ास दरबार में हाज़िर हो बिला तश्बीह शेर का बच्चा उसकी बग़ल में हो उस वक़्त कौन उसकी तरफ़ निगाह उठा सकता है तो अल्लाह वाहिदे क़हार की कनीज़ें उसके ख़ास दरबार में हाज़िर हैं उन पर बदनिगाही किस क़द्र सख़्त होगी।  हाँ, हाँ होशियार! ईमान बचाये हुए क़ल्ब व निगाह सँभाले हुए, हरम वह जगह है जहाँ गुनाह के इरादे पर पकड़ा जाना और एक गुनाह लाख गुनाह के बराबर ठहरता है। इलाही ख़ैर की तौफ़ीक़ दे। आमीन!

वुक़ूफ़-ए-अराफ़ात का मन्ज़रarafaat

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