रमी के लिए कंकरियाँ जमा करना और मिना को रवाना होना।

रमी के लिए कंकरियाँ जमा करना और मिना को रवाना होना।

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

  • जब सूरज निकलने में दो रकअत पढ़ने का वक़्त बाक़ी रह जाये यानि लगभग चार-पाँच मिनट तो मुज़दलफ़ा से मिना को चलो
  • रमी के लिए कंकरियाँ यहीं से जमा कर लें जो खजूर की गुठली या मटर के दाने के बराबर हों और कम से कम सत्तर (70) कंकरियाँ हों जिनकी तेरह (13) तारीख़ तक रमी के लिए ज़रूरत पढ़ेगी यहाँ से कंकरियाँ जमा नहीं कि तो फिर कहीं और मिलना मुश्किल हैं लिहाज़ा इसका ख़ास ख़्याल रखें।
  • कंकरियाँ किसी पाक जगह से उठा कर तीन बार धो लें।
  • किसी पत्थर को तोड़ कर कंकरियाँ न बनाएं।
  • ध्यान रखें कंकरियाँ किसी न तो नापाक जगह की हों, न मस्जिद की और न ही जमरा के पास की।
  • रास्ते में फिर ब-दस्तूर ज़िक्र करो दुआ व दुरूद व कसरत से लब्बैक में मशग़ूल रहो और यह दुआ पढ़ो

اَللَّھُمَّ اِلَیْکَ اَفَضْتُ وَ مِنْ عَذَابِکَ اَشْفَقْتُ

 وَاِلَیْکَ رَجَعْتُ وَ مِنْکَ رَھِبْتُ فَاقْبَلْ نُسُکِیْ

 وَ عَظِّمْ اَجْرِیْ وَارْحَمْ تَضَرُّعِیْ

  ؕوَاقْبَلْ تَوْبَتِیْ وَاسْتَجِبْ دُعَآئیِْ

(ऐ अल्लाह मैं तेरी तरफ़ वापस हुआ और तेरे अज़ाब से डरा,

और तेरी तरफ़ रुजू की और तुझ से ख़ौफ़ किया और तू मेरी इबादत क़ुबूल कर

और मेरा अज्र ज़्यादा कर और मेरी आजिज़ी पर रहम कर

 और मेरी तौबा क़ुबूल कर और मेरी दुआ मुस्तजाब कर।)

  • जब वादी-ए-मुहस्सर पहुँचें तो बहुत जल्द तेज़ी के साथ चल कर पार करें मगर ऐसी तेज़ी के साथ नहीं जिससे किसी को तकलीफ़ हो (यह वादी मिना व मुज़दलफ़ा के बीच में एक नाला है जो दोनों की हदों से अलग मुज़दलफ़ा से मिना को जाते हुए बायें हाथ को जो पहाड़ पड़ता है उसकी चोटी से शुरू होकर 545 हाथ तक है यहाँ असहाबे फ़ील आकर ठहरे थे और उन पर अबाबील का अज़ाब उतरा था लिहाज़ा इस जगह से जल्द गुज़रना और अज़ाबे इलाही से पनाह माँगना चाहिए)।
  • इस वादी से गुज़रते हुए यह दुआ पढ़ते जाएं

اَللّٰھُمَّ  لَاتَقْتُلْنَا بِغَضَبِکَ

وَلَا تُھْلِکْنَا بِعَذَابِکَ وَعَافِنَا قَبْلَ ذَالِکَ

(ऐ अल्लाह! अपने ग़ज़ब से हमें क़त्ल न कर

और अपने अज़ाब से हमें हलाक न कर और इससे पहले हम को आफ़ियत दे।)

  • जब मिना नज़र आये वही दुआ पढ़ो जो मक्का से आते हुए मिना को देख कर पढ़ी थी।

اَللّٰھُمَّ ھٰذِیْ مِنِّ فَامْنُنْ عَلَیَّ بِمَا مَنَنْتَ بِھِ عَلٰی اَوْلِیَآئِکَ 

(ऐ अल्लाह यह मिना है पस तू मुझ पर वह अहसान फ़रमा जो तूने अपने दोस्तों पर अहसान फ़रमाया)

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