بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
तयम्मुम इन सूरतों में करना जाइज़ है-
- ऐसी बीमारी जिसका वुज़ू या ग़ुस्ल करने से बढ़ने या देर में अच्छा होने का सही अन्देशा हो, चाहे उसने ख़ुद आज़माया हो या किसी मुसलमान अच्छे क़ाबिल परहेज़गार हकीम/डाक्टर ने पानी के इस्तेमाल को मना किया हो। अगर बीमारी़ बढ़ने का सिर्फ़ ख़्याल या किसी ग़ैर मुस्लिम या फ़ासिक़ (गुनाहों का आदी) या मामूली हकीम/डाक्टर ने मना किया हो तो ऐसी सूरत में तयम्मुम जाइज़ नहीं।
- अगर पानी से बीमारी को नुक़सान नहीं पहुँचता, मगर वुज़ू या ग़ुस्ल के लिये उठ नहीं सकता और कोई ऐसा भी नहीं जो वुज़ू करा दे तो तयम्मुम कर सकता है।
- बीमारी में अगर ठंडा पानी नुक़सान करता है और गर्म पानी से नुक़सान न हो तो गर्म पानी से वुज़ू और ग़ुस्ल ज़रूरी है तयम्मुम जाइज़ नहीं। लेकिन अगर गर्म पानी न मिल सके तो तयम्मुम जाइज़ है।
- अगर एक मील तक पानी मौजूद नहीं हो तब भी तयम्मुम कर सकता है।
- अगर यह गुमान हो कि एक मील के अन्दर पानी होगा तो तलाश करना ज़रूरी है बिना तलाश किये तयम्मुम जाइज़ नहीं फिर बग़ैर तलाश किये तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ली और बाद में पानी मिल गया तो वुज़ू कर के नमाज़ का लौटाना ज़रूरी है और अगर न मिला तो नमाज़ हो गई।
- अगर ज़्यादा गुमान यह है कि एक मील के अन्दर पानी नहीं है तो तलाश करना ज़रूरी नहीं फिर अगर तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ली और तलाश न किया और न कोई ऐसा है जिससे पूछे और बाद में मालूम हुआ कि पानी यहाँ से क़रीब है तो नमाज़ लौटाने की ज़रूरत नहीं मगर यह तयम्मुम अब जाता रहा और अगर कोई वहाँ था मगर उससे पूछा नहीं और बाद में पता चला कि पानी क़रीब है तो नमाज़ लौटाई जायेगी।
- ज़म-ज़म शरीफ़़ जो लोगों के लिये तबर्रुक या बीमार को पिलाने के लिये लेकर जा रहे हैं और इतना है कि वुज़ू हो जायेगा तो तयम्मुम जाइज़ नहीं।
- इतनी सर्दी हो कि नहाने से मर जाने या बीमार होने का सख़्त ख़तरा हो तो तयम्मुम जाइज़ है।
- दुश्मन, डाकू, बदमाश, साँप या किसी दरिन्दे जैसे शेर वग़ैरा (जिनसे जान, माल और इज़्ज़त या आबरू का ख़तरा हो) के डर से पानी तक नहीं पहुँच सकते तो तयम्मुम जाइज़ है।
- क़ैदी को जेलख़ाने वाले वुज़ू नहीं करने देते तो तयम्मुम करके पढ़ ले और रिहा होने पर नमाज़ दोहराये।
- अगर जंगल में कुँआ हो मगर डोल रस्सी नहीं कि पानी भरे तो तयम्मुम जाइज़ है।
- प्यास के डर से यानि किसी शख़्स के पास पानी है मगर वुज़ू या ग़ुस्ल करेगा तो ख़ुद या मुसलमान साथी या साथ का जानवर चाहे कुत्ता हो जिसका पालना जाइज़ है प्यासा रह जायेगा तो तयम्मुम जाइज़ है।
- पानी मौजूद है मगर आटा गूंधने की ज़रूरत है जब भी तयम्मुम जाइज़ है और शोरबे की ज़रूरत के लिये तयम्मुम जाइज़ नहीं।
- पानी मोल मिलता है मगर बहुत मंहगा है यानि वहाँ की आम क़ीमत से दुगुना हो या ख़रीदने लायक़ पैसे नहीं हों तो तयम्मुम जाइज़ है।
- पानी तलाश करने में साथियों के आगे निकल जाने का या रेल/बस छूट जाने का ग़ालिब गुमान हो तो तयम्मुम जाइज़ है।
- यह ख़तरा हो कि नहाने से ईद की नमाज़ जाती रहेगी चाहे इस तरह कि इमाम नमाज़ पढ़ कर फ़ारिग़ हो जायेगा या ज़वाल का वक़्त आ जायेगा तो इन दोनों सूरतों में तयम्मुम जाइज़ है।
- कोई आदमी वुज़ू कर के ईद या बक़रईद की नमाज़ पढ़ रहा था कि नमाज़ के बीच उसका वुज़ू टूट गया तो अगर वुज़ू करेगा तो नमाज़ का वक़्त जाता रहेगा या जमाअत हो चुकेगी तो तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ले।
- वुज़ू करने से ज़ुहर या मग़रिब या इशा या जुमे की पिछली सुन्नतों का या चाश्त की नमाज़ का वक़्त जाता रहेगा तो तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ले।
- ग़ैरे वली को जनाज़े की नमाज़ छूट जाने का ख़ौफ़ हो तो तयम्मुम जाइज़ है, वली को नहीं कि उसका लोग इंतज़ार करेंगे और लोग बिना उसकी इजाज़त के पढ़ भी लें तो यह दोबारा पढ़ सकता है।
- सलाम का जवाब देने, दुरूद शरीफ़़ पढ़ने, दूसरे वज़ीफ़ों के पढ़ने, सोने, बेवुज़ू को मस्जिद में जाने या ज़बानी क़ुरआन शरीफ़़ पढ़ने के लिये तयम्मुम जाइज़ है चाहे पानी हासिल कर सकता हो।
- कोई मस्जिद में सोया और नहाने की ज़रूरत हो गई तो आँख खुलते ही जहाँ सोया था वहीं फ़ौरन तयम्मुम करके निकल आये नापाकी की हालत में वहाँ ठहरना हराम है।
- वक़्त इतना कम है कि वुज़ू या ग़ुस्ल करेगा तो नमाज़ क़ज़ा हो जायेगी तो तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ले और फिर वुज़ू या ग़ुस्ल करके नमाज़ का दोहराना लाज़िम है।
- अगर कोई ऐसी जगह है कि न पानी मिलता है और न पाक मिट्टी कि वुज़ू या तयम्मुम कर सके तो उसे चाहिये कि नमाज़ के वक़्त में नमाज़ी की तरह सूरत बनाये यानि नमाज़ की तमाम हरकतें बिना नमाज़ की नीयत से अदा कर ले।