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4. हज
हज अरबी ज़बान में किसी “अज़ीमुश्शान” यानि बहुत बड़ी शान वाले काम का इरादा करने को कहते हैं ।जिस तरह नमाज़, रोज़ा और ज़कात फ़र्ज़ हैं उसी तरह हज भी फ़र्ज़ है।हज ज़िन्दगी में सिर्फ़ एक बार करना फ़र्ज़ है वह भी उस शख़्स पर जो इसकी ताक़त रखता हो यानि उसके पास हज के सफ़र के ख़र्च के लिये पाक व साफ़ यानि हलाल कमाई से हासिल किया हुआ माल होऔर जिस्मानी तौर पर इस क़ाबिल हो कि हज कर सके।
हज की चाहत हर मुसलमान के दिल में रहनी चाहिये । जिसको यह नेमत हासिल हो जाये तो उसके लिये बहुत बड़ी कामयाबी की बात है । यह बात ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है कि जब अपने परवरदिगार के बुलावे पर उसके दरबार कि हाज़री नसीब हो तो ऐसे हाज़िर हों जैसे कोई मुजरिम जज के सामने हाज़िर होता है, ख़ौफ़ और उम्मीद की मिली जुली कैफ़ियत उस पर तारी होती है । यह भी ख़्याल रखना चाहिये कि वहाँ की हाज़िरी के दौरान कोई ऐसी ग़लती या गुस्ताख़ी न हो जाये जिससे सारे आमाल बर्बाद हो जायें, लिहाज़ा इस “अज़ीमुश्शान” फ़र्ज़ की अदायगी के बारे में ज़रूरी जानकारी हासिल करना बहुत ज़रूरी है जो इन नीचे दिये गये अलग-अलग आर्टीकल्स से तरतीब वार हासिल की जा सकती है-

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