بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
- वापसी के वक़्त औरत है़ज़ या निफ़ास से हो तो उस पर तवाफ़ नहीं।
- जिसने सिर्फ़ उमरा किया है उस पर यह तवाफ़ वाजिब नहीं।
- तवाफ़ के बाद बदस्तूर दो रकअत मुक़ाम-ए-इब्राहीम में पढ़ें।
- वापसी का इरादा था तवाफ़-ए-रुख़्सत कर लिया मगर किसी वजह से ठहर गये तो अगर इक़ामत यानि ठहरने की नीयत नहीं की तो वही तवाफ़ काफ़ी है लेकिन मुस्तहब यह है कि दोबारा तवाफ़ करें वापस जाते में आख़िरी काम तवाफ़ रहना चाहिए।
- मक्का में रहने वाले और मीक़ात के अन्दर रहने वाले लोगों पर तवाफ़-ए- रुख़्सत वाजिब नहीं।
- तवाफ़-ए-रुख़्सत में सिर्फ़ तवाफ़ की नीयत ज़रूरी है ख़ास वाजिब और रुख़्सत की नीयत होना ज़रूरी नहीं। यहाँ तक कि अगर नफ़्ल की नीयत से किया, वाजिब अदा हो गया।
- हैज़ वाली औरत मक्का-ए-मौअज़्ज़मा से जाने से पहले पाक हो गई तो उस पर यह तवाफ़ वाजिब है और अगर जाने के बाद पाक हुई तो उसे यह ज़रूरी नहीं कि वापस आये और वापस आई तो तवाफ़ वाजिब हो गया जबकि मीक़ात से बाहर न हुई थी।
- अगर वापस जाने से पहले हैज़ ख़त्म हो गया मगर न ग़ुस्ल किया था और न नमाज़ का एक वक़्त गुज़रा था तो उस पर भी वापस आना वाजिब नहीं।
- जो बग़ैर तवाफ़-ए-रुख़्सत के चला गया तो जब तक मीक़ात से बाहर नहीं हुआ तो वापस आ जाये।
- मीक़ात से बाहर होने के बाद याद आयें तो वापस होना ज़रूरी नहीं बल्कि दम दे दें और अगर वापस हो तो उमरा का एहराम बाँध कर वापस हो और उमरा से फ़ारिग़ होकर तवाफ़-ए-रुख़्सत अदा करें और इस सूरत में दम वाजिब नहीं होगा।
- तवाफ़-ए-रुख़्सत के तीन फेरे छोड़ गये तो बचे हुए हर फेरे के बदले सदक़ा दें।
- तवाफ़-ए-रुख़्सत के बाद ज़म-ज़म पर आकर पहले बताए गए तरीक़े से पानी पियें और बदन पर डालें।
- फिर काबा शरीफ़ के दरवाज़े के सामने खड़े होकर आस्तान-ए-पाक को बोसा दें और क़ुबूले हज व ज़ियारत और बार-बार हाज़िरी की दुआ माँगे और यह पढ़ें:
اَلْسَّآئِلُ بِبَابِکَ یَسْئَلُکَ مِنْ فَضْلِکَ وَمَعْرُوْفِکَ وَ یَرْجُوْرَحْمَتَکَ
(तेरे दरवाज़े पर साइल तेरे फ़ज़्ल व एहसान का सवाल करता है और तेरी रहमत का उम्मीदवार है)
- मुलतज़म पर आकर ग़िलाफ़े काबा थाम कर चिमट कर ज़िक्र व दुआ व दुरूद की कसरत करो इस वक़्त की मख़सूस दुआ पढ़ें।
- फिर हजर-ए-असवद को बोसा दो और जितना हो सके आँसू बहाओ और दुआ करते जाओ।
- फिर उल्टे पाँव काबा की तरफ़ मुँह करके या सीधे चलते हुए पलट-पलट कर काबा को हसरत से देखते हुए उसकी जुदाई पर रोते हुए या रोने का मुँह बनाते मस्जिदे करीम के दरवाज़े से बायाँ पाँव पहले बढ़ा कर निकलें और ज़िक्र की गई दुआ पढ़ें और इसके लिए ज़्यादा अच्छा बाबे हज़वरा है।
- हैज़ व निफ़ास वाली औरतें मस्जिद के दरवाज़े पर खड़ी होकर हसरत की निगाह से देखें और दुआ करती हुई पलटें।
जहाँ तक हो सके मक्का-ए-मौअज़्ज़मा के फ़क़ीरों पर सदक़ा करें और फिर सरकारे आज़म मदीना तय्यबा का रुख़ करें। और तौफ़ीक़ अल्लाह ही की तरफ़ से है!