बिना ग़ुस्ल कौन से काम नहीं कर सकते

बिना ग़ुस्ल कौन से काम नहीं कर सकते

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

बिना ग़ुस्ल यह काम नहीं कर सकते

  • मस्जिद में जाना।
  • तवाफ़ करना।
  • क़ुरआन शरीफ़़ छूना चाहे उसका सादा हाशिया या जिल्द वग़ैरा ही हो।
  • बिना छुए देख कर या ज़ुबानी क़ुरआन पाक पढ़ना।
  • आयत का लिखना या आयत का तावीज़ लिखना या ऐसा तावीज़ छूना।
  • ऐसी अँगूठी पहनना जिसमें हुरूफ़े मुक़त्तयात लिखे हों जैसे “अलिफ़ लाम मीम”, “हाम मीम” वग़ैरा।
  • क़ुरआन शरीफ़़ अगर जुज़दान में हो तो जुज़दान पर हाथ लगा सकते हैं या किसी ऐसे कपड़े से पकड़ सकते हैं जो पहने या ओढ़े हुए न हो।
  • पहने हुए कुर्ते की आस्तीन, ओढ़े हुए दुपट्टे या चादर के कोने से क़ुरआन मजीद को छूना भी हराम है।
  • क़ुरआन शरीफ़़ पर अगर कपड़ा चढ़ा हुआ हो तो उसका छूना भी हराम है।
  • क़ुरआन की कुछ ख़ास आयतें दुआ की नीयत से पढ़ना जाइज़ है। बशर्ते क़ुरआन पढ़ने की नीयत न हो।
  • जैसे बरकत के लिये

    بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

  • शुक्र के लिये

    اَلۡحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیۡنَ

  • मुसीबत में

    اِنَّا لِلّٰہِ وَ اِنَّاۤ اِلَیۡہِ رٰجِعُوۡنَ

  • अल्लाह की तारीफ़ की नीयत से पूरी सूरए फ़ातिहा या आयतल कुर्सी या सूरए हश्र की पिछली तीन आयतें और क़ुरआन पाक की आखि़री तीन सूरतें जो “क़ुल” से शुरू होती हैं “क़ुल” लफ़्ज़ छोड़कर सना या तारीफ़ की नीयत से पढ़ सकते है। “क़ुल” का लफ़्ज़ शामिल करके नहीं पढ़ सकते चाहे सना ही की नीयत से हो क्योंकि इस सूरत में उनका क़ुरआन होना तय है इसमें नीयत को कुछ दख़ल नहीं।
  • रुपये पर आयत लिखी हो तो बे वुज़ू या जिस पर नहाना ज़रूरी है, उसका छूना हराम है। लेकिन अगर थैली में हों तो थैली उठाना जाइज़ है। ऐसे ही जिस बर्तन या गिलास पर सूरत या आयत लिखी हो उसका छूना भी हराम है और उसका इस्तेमाल मकरूह है लेकिन अगर ख़ास शिफ़ा की नीयत हो तो जाइज़ है।
  • क़ुरआन शरीफ़़ का तर्जुमा किसी भी ज़ुबान में हो तो उसके छूने और पढ़ने में वही हुक्म है जो क़ुरआन शरीफ़़ का है।
  • क़ुरआन शरीफ़़ देखने में उन सब पर कुछ हर्ज नहीं चाहे हुरूफ़ पर नज़र पड़े और अल्फ़ाज़ समझ में आयें और ख़्याल में पढ़े जायें।
  • तफ़सीर, हदीस और मसाइल की किताबों का छूना मकरूह है। इन किताबों को किसी कपड़े से छूने मे कोई हर्ज नहीं चाहे उसको पहने या ओढ़े हुये हो तो मगर उन किताबों में आयत की जगह हाथ रखना हराम है।
  • दुरूद शरीफ़़ और दुआओं के पढ़ने में कुछ हर्ज नहीं मगर अच्छा यह है कि वुज़ू या कुल्ली करके पढ़े। इसी तरह अज़ान का जवाब देना भी जाइज़ है।

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