तयम्मुम का हुक्म

तयम्मुम का हुक्म

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में फ़रमाता हैः-

وَ اِنۡ کُنۡتُمۡ مَّرْضٰۤی اَوْ عَلٰی سَفَرٍ اَوْجَآءَ اَحَدٌ مِّنۡکُمۡ مِّنَ الْغَآئِطِ اَوْ لٰمَسْتُمُ النِّسَآءَ

فَلَمْ تَجِدُوۡا مَآءً فَتَیَمَّمُوۡا صَعِیۡدًا طَیِّبًا فَامْسَحُوۡا بِوُجُوۡہِکُمْ وَاَیۡدِیۡکُمۡ مِّنْہُ

(और अगर तुम बीमार या सफ़र में हो या तुम में कोई रफ़ा-ए-हाजित (Toilet) से आया या तुमने औरतों से सोहबत की और इन सूरतों में पानी न पाया तो पाक मिट्टी से तयम्मुम करो तो अपने मुँह और हाथों का उससे मसह करो)

(सूरह अलमाइदा, आयत-6)

क़ुरआन पाक में दिये गये अल्लाह के इस हुक्म के मुताबिक़ जिस शख़्स का वुज़ू न हो या नहाने की ज़रूरत हो और पानी हासिल न कर सकता हो या पानी का इस्तेमाल नुक़सान करता हो तो वुज़ू और ग़ुस्ल की जगह तयम्मुम कर सकता है।

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