वुज़ू ग़ुस्ल और पाकी के लिये पानी का बयान

वुज़ू ग़ुस्ल और पाकी के लिये पानी का बयान

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

अल्लाह तआला ने पानी में पाक करने की ऐसी ख़ासियत रखी है जो किसी और चीज़ से नही मिलती। हालांकि हवा, आग और मिट्टी से भी कुछ चीज़ें पाक हो जाती हैं मगर मुकम्मल पाकी पानी ही से हासिल की जा सकती है।

अल्लाह तआला फ़रमाता है-

وَیُنَزِّلُ عَلَیۡکُمۡ مِّنَ السَّمَآءِ مَآءً لِّیُطَہِّرَکُمۡ بِہٖ وَیُذْہِبَ عَنۡکُمْ رِجْزَ الشَّیۡطٰنِ

(और आसमान से तुम पर पानी उतारा कि तुम्हें उस से पाक करे
और शैतान की नापाकी तुम से दूर करे)

(अल अनफ़ाल, आयत- 11)

وَ اَنۡزَلْنَا مِنَ السَّمَآءِ مَآءً طَہُوۡرًا

(और आसमान से हमने पाक करने वाला पानी उतारा)

(अल फ़ुरक़ान, आयत- 48)

यानि अल्लाह ने पानी को पाक करने के लिए बनाया है। इसलिए इसे किसी भी तरह की निजासत को साफ़ करने और वुज़ू/ग़ुस्ल के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इन सभी कामों के लिए पाक व साफ़ पानी की ज़रूरत होती है जो अपनी असली हालत में हो यानि पानी में कोई चीज़ इतनी तादाद में न मिली हो कि उससे पानी गाढ़ा हो जाए या उस चीज़ का रंग, मज़ा या बू (Smell) पानी में ज़ाहिर हो रहा हो, इस सूरत में वह पानी वुज़ू या ग़ुस्ल के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। यह बात अच्छी तरह याद रखनी चाहिए कि जिस पानी से वुज़ू जाइज़ है उससे ग़ुस्ल भी जाइज़ और जिससे वुज़ू नाजाइज़ है उससे ग़ुस्ल भी नाजाइज़ है। अब हम यह जानते हैं वुज़ू के लिए कैसा पानी इस्तेमाल करना जाइज़ है।

  • बारिश, नदी, नहर, चश्मे, समुन्दर, कुएँ, बर्फ़ और ओले का पानी पाक है इससे वुज़ू जाइज़ है।
  • पानी में कोई पाक चीज़ मिल गई जिससे वह गाढ़ा हो गया या उसका मज़ा और रंग वग़ैरा बदल गया हो तो उससे वुज़ू और ग़ुस्ल नहीं कर सकते जैसे शर्बत, गुलाब का पानी, डीटोल का पानी, शोरबा या चाय वग़ैरा।
  • पानी में अगर कोई पाक चीज़ मिली जिससे उसका रंग, मज़ा वग़ैरा बदल गया मगर पतलापन वही रहा जैसे रेत, चूना या थोड़ा सा ज़ाफ़रान वग़ैरा तो उससे वुज़ू जाइज़ है। लेकिन अगर ज़ाफ़रान का रंग इतना हो कि उससे कपड़ा रंगा जा सके तो उस पानी से वुज़ू/ग़ुस्ल जाइज़ नहीं।
  • बहता पानी पाक है और पाक करने वाला है। बहता पानी उसे कहते हैं जिसमें तिनका डाल दें तो उसे बहा ले जाये। अगर इस पानी में इतनी निजासत पड़ जाए कि उससे पानी का रंग, बू और मज़ा बदल जाये तो यह पानी नापाक हो जायेगा। अगर यह निजासत नीचे बैठ जाये या पाक पानी इतना मिले कि निजासत को बहा ले जाये जिससे पानी का रंग, बू और मज़ा ठीक हो जाये तो पानी पाक हो जायेगा उस पानी से वुज़ू करना और नहाना जाइज़ है।
  • छत के परनाले से गिरने वाला बारिश का पानी पाक है, चाहे छत पर या परनाले के मुँह पर निजासत पड़ी हो। लेकिन अगर निजासत से पानी की असली हालत में बदलाव आ गया तो पानी नापाक है। अगर बारिश रुक गयी और पानी का बहना ख़त्म हो गया तब वह ठहरा हुआ और छत से टपकने वाला पानी नजिस है।
  • दस हाथ लम्बे, दस हाथ चौड़े हौज़़ या तालाब को दह-दर-दह कहते हैं। ऐसे हौज़़ या तालाब का पानी बहते पानी के हुक्म में है और इससे वुज़ू और ग़ुस्ल जाइज़ है, थोड़ी निजासत पड़ने से नापाक नहीं होता जब तक निजासत से पानी का रंग, बू या मज़ा न बदले। अगर हौज़़ गोल हो तो उसकी गोलाई यानि परिधि कम से कम साढ़े पैतींस हाथ हो यानि हौज़़ का क्षेत्रफल सौ हाथ हो। यहाँ पर हाथ से मुराद शरई हाथ है और एक हाथ लगभग आधा मीटर के बराबर होता है।
  • बड़े हौज़़ में ऐसी निजासत पड़ी हुई हो जो दिखाई न दे जैसे शराब या पेशाब तो उस हौज़़ के हर तरफ़ से वुज़ू जाइज़ है और अगर निजासत दिखाई दे जैसे पाख़ाना या मरा हुआ जानवर, तो जिस तरफ़ वह निजासत हो उस तरफ़ वुज़ू नहीं करना चाहिये, दूसरी तरफ़ से वुज़ू करे।
  • दह-दर-दह हौज़़ पर अगर बहुत से लोग जमा होकर वुज़ू करें तो भी कुछ हर्ज नहीं चाहे वुज़ू का पानी उसमें गिरता हो। लेकिन उसमें कुल्ली का पानी और नाक/थूक वग़ैरा नहीं डालना चाहिये।
  • पानी अगर बड़े बर्तन में हो और कोई छोटा बर्तन निकालने के लिए न हो तो उसमें से पानी निकालने के लिए बायें हाथ की उंगलियाँ मिलाकर सिर्फ़ उंगलियाँ इस तरह पानी में डालें कि हथेली का कोई हिस्सा पानी में न पड़े और पानी निकाल कर दाहिना हाथ तीन बार धोयें फिर दाहिने हाथ को जहाँ तक धोया है उतना हिस्सा पानी में डालकर उससे पानी निकाल कर बायाँ हाथ धोयें। यह उस सूरत में है कि हाथ में कोई निजासत न लगी हो वरना बर्तन में हाथ डालना किसी तरह जाइज़ नहीं अगर नापाक हाथ बर्तन में डाला गया तो पानी नापाक हो जायेगा।
  • अगर पानी छोटे बर्तन में है कि उसमें से उंडेल कर पानी लिया जा सकता है, या पानी बड़े बर्तन में है और वहाँ कोई छोटा बर्तन भी मौजूद है जिससे पानी निकाला जा सकता है अगर अब कोई बिना धोये उंगली का पोरवा या नाख़ून भी पानी में डाल दे तो वह सारा का सारा पानी वुज़ू के क़ाबिल नहीं रहता क्योंकि वह पानी मुस्तामल (इस्तेमाल किया हुआ) हो जाता है।
  • जिस शख़्स पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो अगर वह पानी में उंगली का पोरवा या नाख़ून भी डालदे तो पानी वुजू़ के क़ाबिल नही रहता।
  • वुज़ू या ग़ुस्ल करने में बदन से गिरा पानी पाक है मगर उससे वुज़ू और ग़ुस्ल जाइज़ नहीं।
  • बे वुज़ू शख़्स का हाथ/उंगली/पोरा/नाख़ून या बदन का वह हिस्सा जो वुज़ू में धोया जाता हो जाने या अनजाने में दह-दर-दह से कम पानी में बिना धोये पड़ जाये तो वह पानी वुज़ू/ग़ुस्ल के क़ाबिल नहीं रहता।
  • अगर हाथ धुला हुआ भी है मगर फिर धोने की नीयत से डाला और यह धोना ज़रूरत की वजह से नहीं बल्कि सवाब के लिये हो जैसे खाने के लिये या वुज़ू के लिये तो यह पानी मुस्तामल यानि वुज़ू के काम का नहीं रहा और उस पानी का पीना भी मकरूह है।
  • अगर ज़रूरत से हाथ पानी में डाला जैसे बड़े बर्तन से पानी निकालने के लिये जबकि कोई छोटा बर्तन नहीं है तो जितनी ज़रूरत हो उतना हाथ पानी में डाल कर उससे पानी निकाल सकते हैं।
  • इस्तेमाल किया हुआ पानी अगर बिना इस्तेमाल किये हुये पानी में मिल जाये जैसे वुज़ू या ग़ुस्ल करते वक़्त पानी की बूँदे लोटे या बाल्टी में टपक गए तो उसमें यह देखना है कि अगर अच्छा पानी ज़्यादा है तो उससे वुज़ू और ग़ुस्ल कर सकते हैं वरना नहीं।
  • छोटे-छोटे गड्ढों में पानी है और उसमे निजासत का पड़ना मालूम नहीं तो उससे वुज़ू जाइज़ है।
  • पानी के बारे में काफ़िर की ख़बर पर ऐतबार नहीं, चाहे वह पानी को पाक कहे या नापाक दोनों सूरतों में पानी पाक माना जायेगा क्योंकि यह पानी की असली हालत है।
  • नाबालिग़ बच्चे का भरा हुआ पानी उसके माँ-बाप को या जिसका वह नौकर है उसके सिवा किसी को जाइज़ नहीं चाहे वह इजाज़त भी दे दे, किसी दूसरे शख़्स के लिये ऐसे पानी को पीना, उससे नहाना, वुज़ू करना या और किसी काम में लाना जाइज़ नहीं अगर वुज़ू कर लिया तो वुज़ू हो जायेगा लेकिन गुनाहगार होगा। आमतौर पर लोग नाबालिग़ बच्चों से पानी भरवाकर अपने काम में लाते हैं यह ठीक नहीं। बालिग़ का भरा हुआ पानी भी बिना इजाज़त ख़र्च करना ह़राम है।
  • निजासत से पानी का रंग, बू और मज़ा बदल गया तो उसको पालतू जानवरों को पिलाना भी जाइज़ नहीं। लेकिन गारे वग़ैरा के काम में ला सकते हैं मगर उस गारे मिट्टी को मस्जिद की दीवार वग़ैरा में ख़र्च करना जाइज़ नहीं।

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