बैतुलख़ला (Toilet) के आदाब

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

इस्तिन्जे के लिए बैतुलख़ला (Toilet) में जाने के लिए भी इस्लाम में आदाब बताए गए हैं जो इस तरह हैं।

  • जब बैतुलख़ला (Toilet) को जाये तो मुस्तह़ब है कि पहले बाहर यह दुआ पढ़ ले

 

اَللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْخُبْثِ وَالْخَبَائِث

(ऐ अल्लाह मैं तेरी पनाह मांगता हूँ नापाकी और शैतानों से।)

  • फिर बायाँ पाँव पहले अंदर रखें और निकलते वक़्त पहले दाहिना पाँव बाहर निकाले और बाहर निकल कर यह पढ़ें:-

    اَلْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَذْهَبَ عَنِّيِ الْأَذٰى وَعَافَانِيۡ

    (सब तारीफ़ें हैं अल्लाह के लिये जिसने वह चीज़ मुझसे दूर की जो तकलीफ़ देती

  • और मुझे आराम दिया)

 

जब बैतुलख़ला (Toilet) को जाएं तो इन बातों का ख़्याल रखना बहुत ज़रूरी है।

  • क़िबले की तरफ़ मुँह और पीठ करके न बैठें चाहे अन्दर हो या बाहर और अगर भूले से बैठ गये तो याद आते ही फ़ौरन रुख़ बदल दें। उम्मीद है कि फ़ौरन उसके लिये मग़फि़रत कर दी जाये।
  • बच्चे को पाख़ाना, पेशाब कराने वाला भी यह ख़्याल रखें कि बच्चे का मुँह क़िबले को न हो, नहीं तो कराने वाला गुनाहगार होगा।
  • खड़े होकर या लेटकर या बिल्कुल नंगे होकर पेशाब करना मकरुह है।
  • सूरज व चाँद की तरफ़ मुँह करके न बैठें।
  • हवा के रुख़ पेशाब न करें और उसकी छीटों से बचें, यह अज़ाबे क़ब्र का बाइस हो सकता है।
  • कुँए, हौज़ या चश्में के किनारे/बहते पानी/घाट/फलदार या सायादार पेड़ के नीचे/खेत जिसमें फ़सल हो/मस्जिद या ईदगाह के क़रीब/क़ब्रिस्तान या रास्ते में/पालतू जानवरों के बंधने की जगह, इन सब जगहों में पेशाब पाख़ाना करना मकरुह है।
  • जिस जगह वुज़ू या गु़स्ल किया जाता हो वहाँ पेशाब करना मकरुह है।
  • नंगे सिर बैतुलख़ला (Toilet) में जाना या अपने साथ कोई ऐसी चीज़ ले जाना जिस पर कोई दुआ या अल्लाह और रसूल या किसी बुज़ुर्ग का नाम लिखा हो मना है। बात करना भी मकरुह है।
  • जब तक बैठने के करीब न हो बदन से कपड़ा न हटाये और ज़रूरत से ज़्यादा बदन न खोलें।
  • किसी दीनी मसअले में ग़ौर न करें कि यह महरूमी का सबब है।
  • छींक या सलाम या अज़ान का जवाब ज़ुबान से न दे।
  • बिना ज़रूरत शर्मगाह की तरफ़ न देखे और न उस निजासत को देखे जो उसके बदन से निकली।
  • देर तक न बैठें कि इससे बवासीर का ख़तरा है।
  • पेशाब में न थूके, न नाक साफ़ करे, न बिना ज़रूरत खंकारे, न बार बार इधर उधर देखे, न बेकार बदन छुएं, न आसमान की तरफ़ देखे बल्कि शर्म के साथ सिर झुकाये रहे।
  • जब फ़ारिग़ हो जाये तो बायें हाथ से इस्तन्जा करें। इससे पहले तीन-तीन बार दोनों हाथ धो लें।

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