इस्तन्जा और उसके आदाब

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

बाहर से जिस्म/कपड़े पर लगने वाली निजासत को पाक व साफ़ करने का तरीक़ा जानने के बाद अब हम उन निजासतों से अपने जिस्म को पाक व साफ़ करने का ज़िक्र करेंगे जो पाख़ाना या पेशाब करने से जिस्म पर लगी रह जाती हैं, ऐसी निजासत (गंदगी) से अपने बदन को पाक व साफ़ करने को इस्तन्जा करना कहते हैं। इसके लिए बेहतर और सुन्नत तरीक़ा तो यह है कि पहले तीन या उससे ज़्यादा ताक़ (odd) मिट्टी के ढेले लेकर निजासत को अच्छी तरह साफ़ करलें और फिर पानी से तीन बार धोलें सिर्फ़ पानी ही से धो लिया तो भी जाइज़ है।

इस्तन्जा करने में इन बातों का ख़ास ख़्याल रखें।

  • दाहिने हाथ से पानी बहायें और बायें हाथ से धोयें और पानी का बर्तन ऊँचा रखें कि छींटें न पड़ें, पहले पेशाब की जगह धोयें फिर पाख़ाने की और गदंगी साफ़ होने के बाद पाक करने के लिए तीन बार धोकर हाथ से पोंछ लें।
  • काग़ज़ से इस्तिन्जा करना मना है चाहे उस पर कुछ लिखा हुआ हो या नहीं।
  • Toilet Paper पाकी हासिल करने का आसान ज़रिया है। इस ख़़ास काग़ज़ को लिखने पढ़ने के लिये नहीं बल्कि इस्तन्जे के लिये ही बनाया है, लिहाज़ा इसके इस्तेमाल में कोई हर्ज नहीं। 
  • दाहिने हाथ से इस्तिन्जा करना मकरुह है। किसी का बाँया हाथ बेकार हो तो उसे जाइज़ है।
  • शर्मगाह को दाहिने हाथ से छूना या धोना मकरुह है।
  • जिस ढेले से एक बार इस्तिन्जा कर लिया उसे दोबारा काम में लाना मकरुह है।
  • रोज़े के दिनों में धोने में ज़्यादती न करे।
  • मर्द लुंजा हो तो उसकी बीवी इस्तिनजा करा सकती है और औरत कोे उसका शौहर।
  • ज़मज़म शरीफ़़ से इस्तिन्जा करना नाजाइज़ है।
  • वुज़ू के बचे हुये पानी से इस्तिन्जा करना सही नहीं है। लेकिन इस्तिन्जे के बचे हुये पानी से वुज़ू कर सकते हैं। उस पानी का फेंकना फ़ुज़ूलख़र्ची है और फ़ुज़ूलख़र्ची हराम है।।

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