नमाज़ में क़ुरआन पढ़ना

नमाज़ में क़ुरआन पढ़ना

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1947

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

अल्लाह तआला फ़रमाता है:-

فَاقْرَءُوۡا مَا تَیَسَّرَ مِنَ الْقُرْاٰنِ

(क़ुरआन से जो मयस्सर आये पढ़ो।)

नमाज़ में क़ुरआन पाक इत्मिनान से बिल्कुल सही-सही पढ़ना ज़रूरी है। कोई भी ऐसी ग़लती जिससे मतलब बदल जाये नमाज़ें बर्बाद कर देती है। और अरबी में “ज़ेर” और “ज़बर” की ग़लती से भी मतलब बदल जाता है। लिहाज़ा मुसलमान होने के नाते हमारी यह सबसे पहली ज़िम्मेदारी है कि हम क़ुरआन पाक को सही-सही पढ़ना सीखें ताकि हमारी नमाज़े दुरुस्त हो सकें क्योंकि यह नमाज़ ही तो मोमिन की मेराज है और आख़िरत में यही हमारी रिहाई का ज़रिया बनेगी। नमाज़ में क़ुरआन पाक सही पढ़ने के साथ-साथ यह भी जानना ज़रूरी है कि किस नमाज़ में अलग-अलग रकअतों में क़ुरआन पाक में से क्या और कितना पढ़ना ज़रूरी हैं और उनके पढ़ने में कोई ग़लती हो जाये तो उसको सुधारने का क्या तरीक़ा है।

नमाज़ में क़ुरआन पाक पढ़ने के बारे में ज़रूरी मसाइल इस तरह हैं

  • फ़र्ज़ की पहली दो रकअतों में और दूसरी नमाज़ों कि हर रकअत में क़ुरआन पाक मे से “अलहम्द शरीफ़” और उसके साथ सूरह मिलाना यानि एक छोटी सूरह या तीन छोटी आयतें या एक या दो आयतें तीन छोटी आयतों के बराबर पढ़ना वाजिब है।
  • चार रकअत वाले फ़र्ज़ की पहली दोनों रकअतों में सूरह पढ़ना भूल गये तो बाद वाली रकअतों में पढ़ना वाजिब है और एक में भूल गये है तो तीसरी या चौथी में पढ़ लें और मग़रिब की पहली दोनों में भूल गये तो तीसरी में पढ़ें और आख़िर में सजदा-ए-सहव करें लें तब ही नमाज़ मुकम्मल होगी।
  • जानबूझ कर अगर सूरह छोड़ी तो नमाज़ लौटाना ज़रूरी है।
  • सूरह मिलाना भूल गये और रुकू में याद आया तो दोबारा खड़े होकर सूरह पढ़ें और फिर रुकू करें और आख़िर में सजदा-ए-सहव करें। ध्यान रहे दोबारा रुकू नहीं किया तो नमाज़ नहीं होगी।
  • फ़र्ज़ की पहली रकअतों में “अलहम्द शरीफ़” भूल गये तो बाद की रकअतों में उसको नहीं पढ़ सकते नमाज़ दोबारा पढ़ी जायेगी, लेकिन अगर उसी रकअत में रुकू से पहले याद आ गया तो अलहम्द शरीफ़ पढ़कर फिर सूरह पढ़ें, और अगर रुकू में याद आया तो दोबारा खड़े होकर अलहम्द शरीफ़ और सूरह पढ़े फिर रुकू करें। अगर दोबारा रुकू नहीं किया तो नमाज़ नहीं होगी।
  • एक आयत को हिफ़्ज़ (याद) करना हर मुसलमान पर फ़र्ज़े ऐ़न है और पूरे क़ुरआन मजीद का हिफ़्ज़ करना फ़र्ज़े किफ़ाया और सूरह फ़ातिहा यानि अलहम्द शरीफ़ और दूसरी छोटी सूरह या इसकी जैसी तीन छोटी आयतें या एक बड़ी आयत का हिफ़्ज़ वाजिबे ऐ़न है।
  • जब नमाज़ का वक़्त जल्दी ख़त्म होने का ख़तरा न हो तो सुन्नत यह है कि-
    • फ़ज्र व ज़ुहर में सूरह ”अलहुजुरात” से “अलबुरूज” तक की सूरह में से कोई एक सूरह।
    • अस्र व इशा में सूरह “अलबुरूज” से “अलबय्यिना” तक की सूरह में से कोई एक सूरह।
    • और मग़रिब में सूरह “अलबय्यिना” से “अन नास” तक की सूरह में से कोई एक सूरह पढ़ें।
  • फ़ज्र की पहली रकअत में दूसरी रकअत के मुक़ाबले ज़्यादा क़ुरआन पढ़ना सुन्नत है और उसका हिसाब यह है कि जितना पढ़ना हो उसका दो तिहाई पहली रकअत में और एक तिहाई दूसरी में।
  • दूसरी रकअत की क़िरात पहली से ज़्यादा करना मकरूह है।
  • किसी सूरह को तय कर लेना और उस नमाज़ में हमेशा वही सूरह पढ़ना मकरूह है। मगर जो सूरह अहादीस में बतायी गईं हैं उनको कभी-कभी पढ़ लेना मुस्तहब है।
  • दोनों रकअतों में एक ही सूरह पढ़ना मकरूहे तन्ज़ीही है जबकि कोई मजबूरी न हो और मजबूरी हो तो बिल्कुल कराहत नहीं।
  • नवाफ़िल की दोनों रकअतों में एक ही सूरह को बार-बार पढ़ना या एक रकअत में उसी सूरह को बार-बार पढ़ना बिना कराहत जाइज़ है।
  • एक रकअत में पूरा क़ुरआन मजीद ख़त्म कर लिया तो दूसरी रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद ‘अलिफ़ लाम मीम’ से शुरू करे।
  • क़ुरआन मजीद उल्टा पढ़ना यानि पहली रकअत में जो सूरत पढ़ी थी दूसरी में उस से पहले वाली पढ़ना मकरूह-ए-तहरीमी है। भूल कर पढ़ ली तो न गुनाह है, न सजदा-ए- सहव।
  • लहन यानि गाने की तरह क़ुरआन पढ़ना हराम है और सुनना भी हराम है मगर मद  वग़ैरा में लहन हुआ तो नमाज़ हो जायेगी।

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