हज-ए-अफ़राद

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

इस में  मीक़ात से पहले  एहराम बाँधते वक़्त सिर्फ़ हज की नीयत ही की जाती है । इसके साथ उमरा नहीं मिलाया जाता, बल्कि हज के महीने में बिल्कुल उमरा नहीं किया जाता। हरम शरीफ़ और मीक़ात की हद के अन्दर रहने वाले लोग सिर्फ़ हज-ए-अफ़राद ही कर सकते हैं।  हज-ए-अफ़राद करने वाले को मुफ़रद कहते हैं । हज-ए-अफ़राद के आमाल सिलसिलेवार इस तरह से है-

  1. एहराम बाँधना, यह हज की शर्त है।
  2. तवाफ़-ए- क़ुदूम यानि पहुँचते ही फ़ौरन तवाफ़ किया जाता है, यह सुन्नत है।
  3. वुक़ूफ़े अराफ़ात यानि अराफ़ात मे ठहरना, यह हज का रुकुन है और फ़र्ज़ है।
  4. वुक़ुफ़े मुज़दलफ़ा यानि मुज़दलफ़ा में ठहरना, यह वाजिब है।
  5. रमी जमरा-ए-अक़बा यानि बड़े शैतान को कंकरियाँ मारना, यह वाजिब है।
  6. क़ुरबानी, यह इख़्तियारी है।
  7. सिर मुन्डाना या बाल कतरवाना, यह वाजिब है
  8. तवाफ़-ए- ज़ियारत, यह रुकुन है और फ़र्ज़ है।
  9. सई यानि सफ़ा-मरवा के सात चक्कर लगाना, यह वाजिब है।
  10. रमी जमार यानि तीनों शैतानों पर कंकरियाँ मारना, यह वाजिब है।
  11. तवाफ़-ए- विदा, यह वाजिब है ।

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