بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
इस में मीक़ात से पहले एहराम बाँधते वक़्त सिर्फ़ हज की नीयत ही की जाती है । इसके साथ उमरा नहीं मिलाया जाता, बल्कि हज के महीने में बिल्कुल उमरा नहीं किया जाता। हरम शरीफ़ और मीक़ात की हद के अन्दर रहने वाले लोग सिर्फ़ हज-ए-अफ़राद ही कर सकते हैं। हज-ए-अफ़राद करने वाले को मुफ़रद कहते हैं । हज-ए-अफ़राद के आमाल सिलसिलेवार इस तरह से है-
- एहराम बाँधना, यह हज की शर्त है।
- तवाफ़-ए- क़ुदूम यानि पहुँचते ही फ़ौरन तवाफ़ किया जाता है, यह सुन्नत है।
- वुक़ूफ़े अराफ़ात यानि अराफ़ात मे ठहरना, यह हज का रुकुन है और फ़र्ज़ है।
- वुक़ुफ़े मुज़दलफ़ा यानि मुज़दलफ़ा में ठहरना, यह वाजिब है।
- रमी जमरा-ए-अक़बा यानि बड़े शैतान को कंकरियाँ मारना, यह वाजिब है।
- क़ुरबानी, यह इख़्तियारी है।
- सिर मुन्डाना या बाल कतरवाना, यह वाजिब है
- तवाफ़-ए- ज़ियारत, यह रुकुन है और फ़र्ज़ है।
- सई यानि सफ़ा-मरवा के सात चक्कर लगाना, यह वाजिब है।
- रमी जमार यानि तीनों शैतानों पर कंकरियाँ मारना, यह वाजिब है।
- तवाफ़-ए- विदा, यह वाजिब है ।