हज फ़र्ज़ होने के बारे में ज़रूरी मसाइल

हज फ़र्ज़ होने के बारे में ज़रूरी मसाइल

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

हज फ़र्ज़ होने के बारे में ज़रूरी मसाइल

हज नाम है एहराम बाँध कर नौ (9) ज़िलहिज्जा को अराफ़ात में ठहरने और काबा शरीफ़ के तवाफ़ का, और उसके लिये एक ख़ास वक़्त मुक़र्रर है कि उसमें यह काम किये जायें तो हज है।

  • हज उम्र में सिर्फ़ एक बार फ़र्ज़ है जो उसकी फ़र्ज़ियत का इन्कार करे काफ़िर है।
  • दिखावे के लिये हज करना और हराम पैसे से हज को जाना हराम है। हदीसे पाक में है कि जब ऐसा शख़्स “लब्बैक” पुकारता है तो फ़रिश्ते उसके जवाब में कहते हैं – “न तेरी हाज़री क़ुबूल न तेरी ख़िदमत मक़बूल जब तक हराम माल जो तेरे हाथ में है वापस न कर दे, तेरा हज तुझ पर मरदूद
  • हज को जाने के लिये जिन लोगों से इजाज़त लेना वाजिब है बग़ैर उनकी इजाज़त के जाना मकरूह है। मसलन माँ-बाप अगर उसकी ख़िदमत के मोहताज हों और माँ-बाप न हों तो दादा-दादी का भी यही हुक्म है। यह फ़र्ज़ हज का हुक्म है और नफ़्ल हज हो तो माँ-बाप के हुक्म के मुताबिक़ करे।
  • जब हज के लिये जाने पर क़ादिर हो तो हज फ़ौरन फ़र्ज़ हो जाता है यानि उसी साल में करना ज़रूरी है और देर करना गुनाह है और अगर कुछ साल ऐसे ही गुज़र गये और हज नहीं किया तो फ़ासिक़ है और शरीयत में उसकी गवाही नहीं मानी जाती। मगर हज जब भी करेगा अदा ही माना जायेगा क़ज़ा नहीं।
  • आमतौर पर यह मशहूर है कि अगर घर में ग़ैर शादीशुदा लड़की है तो हज फ़र्ज़ नहीं होता जब तक उसकी शादी न हो जाये यह बिल्कुल ग़लत है और यह भी ग़लत है कि हज पर जाने से पहले लड़की के जहेज़ का इंतज़ाम करके जाये। लिहाज़ा जब भी इस क़ाबिल हो जाये हज फ़ौरन कर लेना चाहिये।
  • मर्द के लिये यह जाइज़ नहीं कि अपने हज में इसलिये देर करे कि बीवी को भी साथ ले जाना है और इतनी रक़म नहीं है। इस इंतज़ार में अगर हज फ़र्ज़ होने के बावजूद हज न कर सका तो गुनाहगार होगा।
  • औरत के पास अगर इतना ज़ेवर है कि उसे बेच कर अपना और अपने मैहरम के हज का इंतज़ाम कर सकती है तो उस पर हज फ़र्ज़ है।
  • इतनी रक़म मौजूद थी कि हज कर सके मगर हज नहीं किया और फिर वह रक़म ख़र्च हो गई तो क़र्ज़ लेकर जाना ज़रूरी है चाहे जानता हो कि यह क़र्ज़ अदा नहीं होगा मगर नीयत यह हो कि अल्लाह तआला क़ुदरत देगा तो अदा कर दूँगा फिर अगर अदा न हो सका और नीयत अदा की थी तो उम्मीद है कि अल्लाह तआला उस पर पकड़ न फ़रमाये।

आमतौर पर यह कहा जाता है कि अगर किसी ने उमरा कर लिया तो उस पर हज फ़र्ज़ हो गया यह बात सही नहीं है क्योंकि हज का ताअल्लुक़ उस पर क़ादिर होने से है। यह ज़रूरी नहीं कि जो उमरे का ख़र्च उठाने के लायक़ है वो हज का ख़र्च भी उठा सके क्योंकि दोनों के ख़र्चे में काफ़ी फ़र्क़ होता है । लिहाज़ा जिसके पास उमरा करने की हैसियत है तो वह इस सुन्नत-ए-मुअकद्दा की अदायगी से क्यों महरूम रहे ।

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