हज के फ़र्ज़, वाजिब और सुन्नतें

हज के फ़र्ज़, वाजिब और सुन्नतें

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

हज के फ़र्ज़

हज के फ़र्ज़ तीन हैं। इन तीनों फ़राइज़ को सिलसिलेवार अदा करना और साथ ही इन तीनों फ़र्ज़ों का अपने ख़ास मकान यानि जगह और ख़ास वक़्त में अदा करना वाजिब है। अगर इनमें से एक भी फ़र्ज़ छूट गया तो हज नहीं होगा और इसकी कमी “दम” यानि जुर्माने के तौर पर क़ुरबानी करने से भी पूरी नहीं हो सकती

  • एहरामः- यह हज की शर्त भी है इसका मतलब है कि दिल से हज की नीयत करना और तलबियह यानि “लब्बैक.. पूरा पढ़ना।
  • वुक़ूफ़े अरफ़ाः-  यानि नौ ज़िलहिज्जा के सूरज ढलने (यानि ज़ुहर का वक़्त शुरू होने) से दस ज़िलहिज्जा की सुबहे सादिक़ (यानि फ़ज्र) से पहले तक किसी वक़्त अराफ़ात के मैदान में ठहरना।
  • तवाफ़-ए- ज़ियारतः- यह दस (10) ज़िलहिज्जा की सुबह से बारह (12) ज़िलहिज्जा सूरज डूबने तक सिर के बाल मुँडवाने या कतरवाने के बाद किया जाता है।

 

हज के वाजिबात

वाजिबात के लिये यह हुक्म है कि अगर इनमें से कोई वाजिब छूट जाये भूल से या जानबूझ कर तो हज तो हो जायेगा लेकिन इसके बदले दम लाज़िम आएगा यानि क़ुरबानी करनी होगी या कुछ हालतों में सिर्फ़ सदक़ा देना होगा। यह बात ध्यान में रखनी ज़रूरी है कि बिला उज़्र वाजिब छोड़ने का गुनाह क़ुरबानी या सदक़े से माफ़ नहीं होता इसके लिये तौबा करनी भी ज़रूरी है।

हज के वाजिबात यह हैं-

  • मीक़ात से एहराम बाँधना यानि मीक़ात से बग़ैर एहराम न गुज़रना और अगर मीक़ात से पहले ही एहराम बाँध लिया तो जाइज़ है।
  • सफ़ा व मरवा के दरमियान दौड़ना इसको सई कहते हैं।
  • सई को सफ़ा से शुरू करना।
  • अगर उज़्र न हो तो पैदल सई करना, सई तवाफ़ के बाद होना।
  • दिन में वुक़ूफ़ किया तो इतनी देर तक वुक़ूफ़ करे कि सूरज डूब जाए यानि सूरज के डूबने तक वुक़ूफ़ में मशग़ूल रहें और अगर रात में वुक़ूफ़ किया तो इसके लिए किसी ख़ास हद तक वुक़ूफ़ करना वाजिब नहीं मगर वह इस वाजिब का छोड़ने वाला हुआ कि दिन में ग़ुरूब तक वुक़ूफ़ करता।
  • वुक़ूफ़ में रात का कुछ हिस्सा आ जाना।
  • अराफ़ात से वापसी में इमाम की पैरवी करना यानि जब तक इमाम वहाँ से न निकले यह भी न चले हाँ अगर इमाम ने वक़्त से देर की तो इसे इमाम के पहले चला जाना जाइज़ है अगर भीड़ वग़ैरा या किसी और ज़रूरत की वजह से इमाम के चले जाने के बाद ठहर गया साथ नहीं गया तब भी ज़ाइज़ है।
  • मुज़दलफ़ा में ठहरना।
  • मग़रिब व इशा की नमाज़ वक़्ते इशा में मुज़दलफ़ा में आकर पढ़ना।
  • तीनों जिमार यानि शैतानों पर दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं तीनों दिन कंकरियाँ मारना यानि दसवीं को सिर्फ़ जमरतुल अक़बा पर और ग्यारहवीं, बारहवीं को तीनों पर रमी करना यानि कंकरियाँ मारना।
  • जमरतुल अक़बा की रमी पहले दिन हल्क़ यानि सिर के बाल बिल्कुल साफ़ करवाने से पहले होना।
  • हर रोज़ की रमी का उसी दिन होना।
  • सिर मुँडवाना या बाल कतरवाना।
  • उसका क़ुरबानी के दिनों में हरम शरीफ़ में होना अगर्चे मिना में न हो।
  • हज-ए-क़िरान व हज-ए-तमत्तो करने वाले को क़ुरबानी करना।
  • और उस क़ुरबानी का हरम में और क़ुरबानी के दिनों में होना।
  • तवाफ़-ए- ज़ियारत क़ुरबानी के दिनों में होना।
  • तवाफ़ हतीम के बाहर से होना।
  • दाहिनी तरफ़ से तवाफ़ करना यानि काबा-ए-मुअज़्ज़मा तवाफ़ करने वाले की बाईं तरफ़ हो।
  • उज़्र न हो तो पाँव से चल कर तवाफ़ करना यहाँ तक कि अगर घिसटते हुए तवाफ़ करने की मन्नत मानी जब भी तवाफ़ में पाँव से चलना लाज़िम है।
  • तवाफ़ करने में नजासते हुक्मिया से पाक होना यानि जुनुब व बे-वुज़ू न होना अगर बे-वुज़ू या जनाबत में तवाफ़ किया तो दोबारा करे।
  • तवाफ़ करते वक़्त सत्र छुपा होना यानि अगर एक उज़्व का चौथाई या इससे ज़्यादा हिस्सा खुला रहा तो दम (क़ुरबानी) वाजिब होगा और कई जगह खुला रहा तो जमा करके देखें कि चौथाई है या नहीं।
  • जिस तरह नमाज़ में सत्र खुलने में नमाज़ फ़ासिद होती है, और हज में दम वाजिब होता है।
  • तवाफ़ के बाद दो रकअत नमाज़ पढ़ना, नहीं पढ़ी तो दम वाजिब नहीं।
  • कंकरियाँ मारने और ज़बह करने और सिर मुँडवाने और तवाफ़ में तरतीब यानि पहले कंकरियाँ मारें फिर ग़ैरे मुफ़रिद क़ुरबानी करे फिर सिर मुंडवाए फिर तवाफ़ करे।
  • मीक़ात से बाहर के रहने वालों के लिए रुख़सत का तवाफ़ करना, अगर हज करने वाली हैज़ या निफ़ास से है और तहारत से पहले क़ाफ़िला रवाना हो जाएगा तो उस पर तवाफ़-ए- रुख़सत नहीं।
  • वुक़ूफ़े अरफ़ा के बाद सिर मुँडवाने तक जिमा न होना एहराम में मना की हुई बातें मसलन सिला कपड़ा पहनने और मुँह या सिर छुपाने से बचना।

मसअला: वाजिब के छोड़ने से दम लाज़िम आता है लेकिन कुछ वाजिब इस हुक्म से अलग हैं कि उनके छोड़ने पर दम लाज़िम नहीं जैसे– 

  • तवाफ़ के बाद की दोनों रकअतें।
  • किसी उज़्र की वजह से सिर न मुँडवाना।
  • मग़रिब की नमाज़ का इशा तक देर न करना।

हज की सुन्नतें

  • तवाफ़-ए- क़ुदूम यानि मीक़ात के बाहर से आने वाला मक्का मुअज़्ज़मा में हाज़िर होकर सब से पहले जो तवाफ़ करे उसे तवाफ़-ए- क़ुदूम कहते हैं, तवाफ़-ए- क़ुदूम मुफ़रिद और क़ारिन के लिए सुन्नत है मुतामत्ते के लिए नहीं।
  • तवाफ़ का हजर-ए-असवद से शुरू करना।
  • तवाफ़-ए- क़ुदूम या तवाफ़-ए- फ़र्ज़ में रमल करना यानि अकड़ कर चलना।
  • सफ़ा व मरवा के दरमियान जो दो सब्ज़ मील हैं यानि हरे रंग के निशान हैं उनके दरमियान दौड़ना।
  • इमाम का मक्का में सात (7) ज़िलहिज्जा को, अराफ़ात में नौ (9) ज़िलहिज्जा को और मिना में ग्यारह (11) को ख़ुतबा पढ़ना।
  • आठ (8) ज़िलहिज्जा की फ़ज्र के बाद मक्का से रवाना होना ताकि मिना में पांच नमाज़ें पढ़ी जा सकें।
  • नौ (9) ज़िलहिज्जा रात मिना में गुज़ारना।
  • सूरज निकलने के बाद मिना से अराफ़ात को रवाना होना।
  • वुक़ू़फे़ अरफ़ा के लिए ग़ुस्ल करना।
  • अराफ़ात से वापसी में मुज़दलफ़ा में रात को रहना।
  • सूरज निकलने से पहले यहाँ से मिना को चला जाना।
  • दस और ग्यारह के बाद जो दोनों रातें हैं उनको मिना में गुज़ारना और अगर तेरह को भी मिना में रहा तो बारह के बाद की रात को भी मिना में रहे।

अबतह यानि वादी-ए-मुहस्सब में उतरना, चाहे थोड़ी देर के लिए हो और इनके अलावा और भी सुन्नतें हैं जिनका ज़िक्र बीच-बीच में आएगा और हज के मुस्तहिब्बात और मकरूहात का बयान भी मौक़े-मौक़े से आएगा।

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