हज की सही अदायगी की शर्ते

हज की सही अदायगी की शर्ते

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

हज को सही तरह से अदा करने के लिये नौ शर्तें हैं यह अगर यह पूरी नही हुईं  तो हज अदा नहीं होगा।

  • इस्लामः- कुफ़्र की हालत में हज किया तो अदा नहीं होगा मुसलमान होने के बाद दुबारा हज करना होगा।
  • एहरामः- बग़ैर एहराम हज नहीं।
  • ज़मानाः- यानि हज के लिये जो ज़माना (महीने, तारीख़, वक़्त) मुक़र्रर हैं उसके पहले हज के काम नहीं हो सकते मसलन तवाफ़-ए-क़ुदूम और सई हज के महीने से पहले नहीं हो सकते और वुक़ूफ़-ए-अरफ़ा नौ ज़िल्लहिज्जा के ज़वाल से पहले और दस ज़िल्लहिज्जा को सुबह के बाद नहीं हो सकता।
  • मकान (जगह)– यानि हज के अरकान की अदायगी के लिये जो जगह ख़ास है वहीं पर अदा होगा किसी दूसरी जगह अदा नहीं होगा जैसे तवाफ़ करने की जगह मस्जिद-ए-हराम शरीफ़ है या वुक़ूफ़ (ठहरने) के लिये अराफ़ात और मुज़दलफ़ा, कंकरियाँ मारने के लिये मिना।
  • तमीज़ और अक़्लः- जिसमें तमीज़ न हों जैसे ना समझ बच्चा या जिसमें अक़्ल न हो जैसे मजनून। यह ख़ुद वह काम नहीं कर सकते जिनमें नीयत शर्त हैं जैसे एहराम या तवाफ़ बल्कि इनकी तरफ़ से कोई दूसरा अदा करे और जिस काम में कोई नीयत शर्त नहीं जैसे वुक़ूफ़-ए-अरफ़ा वह यह ख़ुद कर सकते हैं।
  • फ़राइज़ हज का बजा लाना जबकि कोई उज़्र हो-
  • एहराम के बाद और वुक़ूफ़ से पहले हमबिस्तरी न करनाः-  अगर हमबिस्तरी कर ली तो हज बातिल हो गया।
  • जिस साल एहराम बाँधा उसी साल हज करनाः- लिहाज़ा अगर उस साल हज फ़ौत हो गया तो उमरा करके एहराम खोल दे और अगले साल नये एहराम से हज करे। अगर एहराम न खोला और उसी एहराम से हज किया तो हज अदा नहीं हुआ।

फ़र्ज़ हज के अदा करने के लिये नौ शर्ते

  • इस्लाम
  • मरते वक़्त तक इस्लाम पर ही रहना।
  • आक़िल (अक़्ल वाला) होना।
  • बालिग़ होना।
  • आज़ाद होना।
  • क़ादिर हो तो ख़ुद ही अदा करना।
  • नफ़्ल की नीयत न होना।
  • दूसरे की तरफ़ से हज करने की नीयत न होना।
  • फ़ासिद न करना।

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