हज की ख़ास इस्तलाहात (Terminology)

हज की ख़ास इस्तलाहात (Terminology)

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

  • अशहुर-ए-हजः- हज के महीने शव्वाल और ज़िक़ादाह के पूरे दो महीने और ज़िलहिज्जा के महीने के पहले दस दिन।
  • एहरामः- यह एक हालत का नाम है जिसमें कुछ हलाल चीज़ें भी हराम हो जाती हैं इसी वजह से इसे “एहराम” कहते हैं। हज या उमरे के लिये यह एक शर्त है। एहराम में दाख़िल होने के लिये एहराम की नीयत करके “तलबियह” पढ़ा जाता है और सिले हुए कपड़ों के बजाय दो चादरों से जिस्म को ढका जाता है। एक चादर तहबन्द की तरह इस्तेमाल की जाती है और दूसरी चादर से ऊपरी जिस्म ढक लिया जाता है।
  • तलबियहः- यह एक विर्द है जो हज और उमरे के दौरान हालते एहराम में किया जाता है। तलबियह यह है-

 ؕلَبَّيْكَ ؕ اَللَّهُمَّ لَبَّيْكَ ؕ لَبَّيْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ لَبَّيْكَ

 ؕ اِنَّ الْحَمْدَ وَالنِّعْمَةَ لَكَ وَالْمُلْكَ ؕ لَا شَرِيكَ لَكَ

(मैं हाज़िर हूँ ।  ऐ अल्लाह! मैं हाज़िर हूँ । मैं हाज़िर हूँ तेरा कोई भी शरीक नहीं मैं हाज़िर हूँ ।

बेशक तमाम तारीफ़ें और नेमतें तेरे लिये हैं और मुल्क भी तेरा ही है । तेरा कोई शरीक नहीं है।)

  • इज़तिबाहः- एहराम की ऊपर वाली चादर को दाहिनी बग़ल में से निकाल कर इस तरह ओढ़ना कि दाहिना कन्धा खुला रहे।
  • रमलः- तवाफ़ के शुरू के तीन फेरों में अकड़ कर कन्धे हिलाते हुए चलना।
  • तवाफ़ः- ख़ाना-ए-काबा के इर्द-गिर्द सात (7) चक्कर या फेरे लगाना। एक फेरे को “शौत” कहते हैं।
  • मताफ़ः- जिस जगह तवाफ़ किया जाता है।
  • तवाफ़-ए-क़ुदूमः- मक्का-ए-मोअज़्ज़मा में दाख़िल होने पर पहला तवाफ़ । “इफ़राद” या “क़िरान” की नीयत से हज करने वालों के लिये सुन्नत-ए-मुअक्कदा है।
  • तवाफ़-ए-ज़ियारतः- यानि यह हज का रुक्न है। इसका वक़्त दस (10) ज़िलहिज्जाह को फ़ज्र का वक़्त शुरू होने से लेकर बारह (12) ज़िलहिज्जाह को सूरज डूबने तक है मगर बेहतर दस (10) ज़िलहिज्जाह को है। इसको “तवाफ़-ए-इफ़ाज़ा” भी कहते हैं।
  • तवाफ़-ए-विदाः- यह तवाफ़ हज के बाद मक्का-ए-मुकर्रमा से रुख़सत होते वक़्त किया जाता है। यह बाहर से आए हाजियों पर वाजिब है यानि जो मीक़ात से बाहर के रहने वाले हों।
  • तवाफ़-ए-उमराः- यह उमरा करने वालों पर फ़र्ज़ है।
  • इस्तिलामः- हजर-ए-असवद को बोसा देना या हाथों से उसकी तरफ़ इशारा करके हाथों को चूम लेना।
  • सईः- सफ़ा और मरवा के दरमियान सात(7) चक्कर लगाना। सई सफ़ा से शुरू होकर मरवा पर ख़त्म होती है।
  • रमीः- जमरात यानि शैतानों को कंकरियाँ मारना।
  • हल्क़ः- एहराम से बाहर होने के लिये हरम की हद में रहते हुए सिर के सारे बाल मुँडवाना।
  • क़स्रः- चौथाई सिर के बाल कम से कम एक पोरवे के बराबर कतरवाना।
  • मस्जिदुल हरामः- वह मस्जिद जिसमें ख़ाना-ए-काबा है।
  • बाबुल इस्लामः- मस्जिदुल हराम का वह दरवाज़ा जिससे पहली बार दाख़िल होना अफ़ज़ल है । यह पूर्व (East) में है।
  • ख़ाना-ए-काबा:- इसको बैतुल्लाह यानि अल्लाह का घर भी कहते हैं । सब मुसलमान इसी का तवाफ़ करते हैं । ख़ाना-ए-काबा के चारों कोनों को रुकुन कहते हैं।
  • रुकुन-ए-असवदः- यह ख़ाना-ए-काबा का वह कोना है जहाँ जन्नती पत्थर “हजर-ए-असवद” लगा हुआ है।
  • रुकुन-ए-इराक़ीः- ख़ाना-ए-काबा का वह कोना जो इराक़ की सिम्त में है।
  • रुकुन-ए-शामीः- यह मुल्के शाम की सिम्त का कोना है।
  • रुकुन-ए-यमानीः- यह मुल्के यमन की सिम्त का कोना है।
  • बाबुल काबाः- ख़ाना-ए-काबा का दरवाज़ा जो सोने का बना हुआ है और ज़मीन से काफ़ी ऊँचा है। यह रुकुन-ए-असवद और रुकुन-ए-इराक़ी के दरमियान में है।
  • मुलतज़मः- ख़ाना-ए-काबा की दीवार का वह हिस्सा जो हजर-ए-असवद और ख़ाना-ए-काबा के दरवाज़े के दरमियान है।
  • मुस्तजारः- ख़ाना-ए-काबा की दीवार का वह हिस्सा जो रुकुन-ए-यमानी और शामी के दरमियान है और मुलतज़म के बिल्कुल पीछे है।
  • मुस्तजाबः- ख़ाना-ए-काबा की वह दीवार जो रुकुन-ए-असवद और रुकुन-ए-यमानी के बीच है। यहाँ पर सत्तर हज़ार फ़रिश्ते दुआ पर आमीन कहने के लिये मुक़र्रर हैं।
  • हतीमः- ख़ाना-ए-काबा की उत्तरी (Northern) दीवार के साथ आधी गोलाई में एक बाउंड्री बनी है, उसके अन्दर के हिस्से को हतीम कहते हैं । यह काबा शरीफ़ का ही हिस्सा है इसके अन्दर जाना ऐसे ही है जैसे ऐन ख़ाना-ए-काबा के अन्दर जाना।
  • मीज़ाब-ए-रहमतः- यह रुकुन-ए-इराक़ी और शामी के दरमियान वाली दीवार में छत पर लगा हुआ सोने का परनाला है। इसका पानी हतीम में आता है।
  • मुक़ाम-ए-इब्राहीमः- ख़ाना-ए-काबा के दरवाज़े के सामने शीशे के एक बुर्ज में एक पत्थर रखा है जिस पर खड़े होकर हज़रत इब्राहीमے ने ख़ाना-ए-काबा को बनाया और आज भी उस पत्थर पर हज़रत इब्राहीमے के पाँवों की उँगलियों के निशान हैं । अल्लाह की क़ुदरत देखिए कि किस तरह वह अपने महबूब बन्दों की निशानियों को महफ़ूज़ रखता है ताकि आने वाली नस्लें उसके दीदार से बरकतें हासिल करें।
  • बेरे ज़म ज़मः- मक्का शरीफ़ का वह पाक कुँआ जो हज़रत इस्माईलے के नन्हे-नन्हे मुबारक पैरों की रगड़ से जारी हुआ था। इसके पानी को देखना, पीना, बदन पर लगाना सब सवाब है और इससे बीमारियाँ दूर होती हैं।
  • कोहे सफ़ाः- यह मक्का शरीफ़ के दक्षिण में एक पहाड़ी है अब इसका सिर्फ़ थोड़ा सा हिस्सा ही बाक़ी है। यहीं से सई शुरू होती है।
  • कोहे मरवाः- कोहे सफ़ा के बिल्कुल सामने कोहे मरवा है । सफ़ा से मरवा तक सई का एक चक्कर पूरा होता है।
  • मीक़ातः- मीक़ात वह जगह है जहाँ से मक्का-ए-मोअज़्ज़मा को आने वाले हर शख़्स के लिये ज़रूरी है कि जब भी मक्का शरीफ़ मे आये चाहे किसी भी काम से आये एहराम के साथ आये बिना एहराम के मक्का-ए-मोअज़्ज़मा में दाख़िल होना नाजाइज़, यहाँ तक कि मक्का शरीफ़ में रहने वाला शख़्स भी बाहर जाकर अगर वापस आयेगा तो एहराम के साथ ही आयेगा । अलग-अलग सिम्तों से मक्का-ए-मोअज़्ज़मा को आने वालों के लिये पाँच मीक़ात हैं।
  • ज़ुलहुलैफ़ाः- यह मदीना-ए-मुनव्वरा से आने वालों के लिये मीक़ात है । यह मक्का शरीफ़ से लगभग दस किलो मीटर है।
  • ज़ाते इर्क़ः- यह इराक़ की तरफ़ से आने वालों के लिये मीक़ात है।
  • यलम लमः- यह भारत और पाकिस्तान से जाने वालों के लिये मीक़ात है।
  • जुहफ़ाः- यह सीरिया से आने वालों के लिये मीक़ात है।
  • क़रनुल मनाज़िलः- यह रियाज़ की तरफ़ से आने वालों के लिये मीक़ात है।
  • मीक़ातीः- वह शख़्स जो मिक़ात की हद के अन्दर रहता है।
  • आफ़ाक़ीः- वह शख़्स जो मीक़ात की हद से बाहर रहता है।
  • तनईमः- यह वह जगह है जहाँ से मक्का शरीफ़ मे रहते हुए उमरे का एहराम बाँधते हैं । यह जगह मक्का-ए-मोअज़्ज़मा से सात किलो मीटर दूर मदीना शरीफ़ की तरफ़ है। अब यहाँ पर मस्जिद-ए-आईशा रज़ीअल्लाह अन्हा बनी हुई है । इस जगह को लोग छोटा उमरा कहते हैं।
  • जिरानाः– यह जगह मक्का-ए-मोअज़्ज़मा से लगभग छब्बीस किलो मीटर दूर ताइफ़ के रास्ते पर है। यहाँ से भी उमरे का एहराम बाँधा जाता है। इस जगह को लोग बड़ा उमरा भी कहते हैं। हुनैन की जंग से वापसी पर हमारे नबी हज़रत मुहम्मदگ ने यहाँ से उमरे का एहराम बाँधा था लिहाज़ा हर हाजी को चाहिये कि आपگ की सुन्नत ज़रूर अदा करे।
  • हरमः– मक्का-ए-मोअज़्ज़मा से मीलों तक इसकी हदें फैली हुई हैं। इसकी हदों पर निशान बने हैं। इसकी हुरमत और पाकी की वजह से इसे हरम कहते हैं। हरम के जंगल में शिकार हराम है इसी तरह वहाँ पर उगा हुआ पैड़ या तर घास वग़ैरा काटना हाजी या ग़ैर हाजी के लिये हराम है।
  • हिलः– हरम के अलावा मीक़ात तक सब ज़मीन हिल है। यहाँ पर वो चीज़ें हलाल हैं जो एहराम में हराम होती हैं।
  • मिनाः– वह वादी जहाँ पर हाजी ठहरते हैं यह मस्जिद-ए-हराम से पाँच किलोमीटर दूर है । मिना हरम में दाख़िल है।
  • जमरातः– यह वह जगह है जहाँ पर शैतानों को कंकरियाँ मारी जाती हैं। यह मिना में है।
  • अराफ़ातः- मिना से लगभग 11 किलो मीटर की दूरी पर एक बहुत बड़ा मैदान है जिसमें ज़िलहिज्जा की नौ (9) तारीख़ को सारे हाजी इकठ्ठे होते हैं । यह हरम से बाहर है।
  • जबल-ए-रहमतः- अराफ़ात का एक मुक़द्दस पहाड़ है जहाँ पर रुकना ज़्यादा अफ़ज़ल है।
  • मुज़दलफ़ाः- मिना से अराफ़ात के रास्ते पर लगभग पाँच (5) किलो मीटर के फ़ासले पर एक मैदान है जहाँ अराफ़ात से वापसी पर रात गुज़ारते हैं।
  • मुहस्सरः– मुज़दलफ़ा से मिला हुआ एक मैदान है जहाँ पर असहाबे फ़ील पर अज़ाब नाज़िल हुआ था लिहाज़ा यहाँ से गुज़रते हुए तेज़ी से गुज़रना सुन्नत है।
  • बतन-ए-उरनाः- अराफ़ात के पास एक जगह जहाँ हाजियों का रुकना सही नहीं है।

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