हज वाजिब होने की  शर्तें

हज वाजिब होने की  शर्तें

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

हज वाजिब होने की आठ शर्तें हैं जब तक वह सब न पाई जायें हज फ़र्ज़ नहीं –

  • पहली शर्त मुसलमान होनाः- हर अमल के क़ुबूल होने का दारोमदार ईमान पर है लिहाज़ा हज के लिये भी ईमान शर्त है। हज के दौरान या बाद में ईमान से फिर गया तो हज जाता रहा।
  • दूसरी शर्त दारुल हरब में हो तो हज के फ़र्ज़ होने का इल्म होनाः-अगर दारुलहरब  (ऐसे ग़ैर इस्लामी मुल्क में हो जहाँ शरीयत पर अमल करने की पूरी आज़ादी नहीं होती) में रहता हो तो यह इल्म होना भी ज़रूरी है कि हज दीन-ए-इस्लाम के  फ़राइज़ में से है यानि जिस तरह नामाज़, रोज़ा, ज़कात फ़र्ज़ हैं उसी तरह इस्तिताअत (Ability) होने पर हज भी फ़र्ज़ है। अगर दारुल इस्लाम है तो इल्म हो न हो इस्तिताअत होने पर हज फ़र्ज़ हो जाता है।
  • तीसरी शर्त बालिग़ होना।
  • चौथी शर्त आक़िल यानि समझदार होनाः- हज पागल या मजनून पर फ़र्ज़ नहीं।
  • पाँचवी शर्त आज़ाद होना।
  • छठी शर्त तन्दरुस्त होनाः- यह भी हज की शर्त है ताकि हज को जा सके और हाथ-पाँव वग़ैरा सलामत हों। अपाहिज, फ़ालिज वाले और बूढ़े पर जो सवारी पर ख़ुद न बैठ सकता हो हज फ़र्ज़ नहीं, इसी तरह अंधों पर भी नहीं अगर्चे हाथ पकड़ कर ले चलने वाला उसे मिले। इन सब पर यह भी वाजिब नहीं कि किसी को भेज कर अपनी तरफ़ से हज करा दें या फिर वसीयत कर जायें।
    • अगर ऐसे किसी शख़्स ने  तकलीफ़ उठाकर हज कर लिया तो सही हो गया और “हज्जतुल इस्लाम” अदा हुआ यानि इसके बाद अगर मोहताजी ख़त्म हो गई तो अब दोबारा हज फ़र्ज़ नहीं होगा वही पहला हज काफ़ी है।
    • कोई शख़्स अगर पहले तन्दरुस्त था और हज की दूसरी शर्तें भी पूरी होती थीं और हज नहीं किया बाद में अपाहिज हो गया या इस क़ाबिल नहीं रहा कि ख़ुद हज कर सके तो उसे चाहिये कि दूसरे को हज के लिये भेजे और अपना फ़र्ज़ हज अदा कराये, इसे हज्ज-ए-बदल कहते हैं ।
  • सातवीं शर्त सफ़र के ख़र्च का मालिक होः- यानि हज के लिये जितनी रक़म की ज़रूरत है वह उसके पास मौजूद है और वह उसका मालिक है।
    • अगर कोई शख़्स किसी को सिर्फ़ हज के लिये ज़रूरी रक़म दे और उसको उस माल का मालिक न बनाये तो हज फ़र्ज़ नहीं होगा क्योंकि हज के लिये सफ़र ख़र्च का मालिक होना ज़रूरी है।
    • जो लोग तिजारत करते हैं उन पर हज फ़र्ज़ जब होता है कि उनके पास हज के ख़र्च के अलावा इतनी रक़म हो कि वापसी तक बाल बच्चों का ख़र्च भी निकल सके।
    • खेती का काम करने वालों और पेशेवर लोगों पर हज जब फ़र्ज़ होगा कि हज और घर वालों के ख़र्च के अलावा इतनी रक़म हो कि वापस आकर खेती के पेशे के लिये ज़रूरी सामान भी ख़रीद सके।
    • पैदल की ताक़त हो तो पैदल हज करना अफ़ज़ल है। हदीस शरीफ़ में है कि पैदल हज करने वालों को हर क़दम पर सात सौ नैकियाँ हैं ।
    • अगर इतना माल है कि हज कर सकता है मगर उससे निकाह करना चाहता है तो निकाह न करे बल्कि पहले हज करे क्योंकि हज फ़र्ज़ है, लेकिन अगर यह ख़ौफ़ है कि अगर बीवी न होगी तो गुनाह में घिर सकता है तो पहले निकाह कर लेने में हर्ज नहीं ।
    • मकान, कपड़े या और समान जो इस्तेमाल में हैं तो उन्हें बेच कर हज करना लाज़िम नहीं, मगर जो इस्तेमाल में नहीं हैं उन्हें बेच कर हज करना ज़रूरी है ।
  • आठवीं शर्त वक़्तः– यानि हज के महीने में तमाम शर्तें  पाई जायें।

हज अदा करने के लिये जाने की शर्तें

अभी तक हमने वह बाते जानीं जिनसे हज फ़र्ज़ होने की शर्तों का पता चलता है  और अब हज अदा करने के लिये जाने के बारे शर्तें बताई जा रही हैं । अगर यह शर्तें पाई जायें तो ख़ुद हज को जाना ज़रूरी है और सब शर्तें न पाई जायें तो ख़ुद जाना ज़रूरी नहीं बल्कि दूसरे से हज करा सकता है या वसीयत कर जाए मगर उसमें यह भी ज़रूरी है कि हज कराने के बाद आख़िर उम्र तक ख़ुद क़ादिर न हो वर्ना ख़ुद भी करना ज़रूरी होगा। उनमें से कुछ शर्तें यह हैं:-

  • रास्ते में अमन होनाः-  अगर ग़ालिब गुमान यह है कि सलामती से हज का सफ़र पूरा कर लेगा तो जाना वाजिब और जान जाने का ख़तरा है तो जाना ज़रूरी नहीं।
    • जब जाने का वक़्त होता है उस ज़माने में अमन होना शर्त है पहले की बदअमनी का कोई मतलब नहीं ।
    • अगर बदअमनी के ज़माने में इंतक़ाल हो गया और हज वाजिब था तो हज्ज-ए-बदल की वसीयत ज़रूरी है।अमन के होने के बाद इंतक़ाल हुआ तो और ज़्यादा वसीयत वाजिब है।

 

  • औरत के साथ शौहर या महरम होना है चाहे वह औरत जवान हो या बूढ़ी।
    • महरम का मतलब है कि कोई ऐसा मर्द  जिससे हमेशा के लिए उस औरत का निकाह हराम हो जैसे बाप, बेटा, भाई , और ससुर वग़ैरा ।
    • शौहर या महरम जिसके साथ सफ़र कर सकती है उसका समझदार, बालिग़, ग़ैर फ़सिक़ होना शर्त है। पागल या नाबालिग़ या फ़ासिक़ के साथ नहीं जा सकती ।
    • औरत बग़ैर महरम या शौहर के हज को गई तो गुनाहगार हुई मगर हज करेगी तो हज हो जाएगा।
    • जिस औरत के न शौहर है न महरम तो उस पर वाजिब नहीं कि हज के जाने के लिए निकाह कर ले ।
  • जाने के ज़माने में औरत इद्दत में न हो चाहे वह इद्दत शौहर की मौत के बाद की हो या तलाक़ की ।

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