हज के सफ़र की शुरूआत

हज के सफ़र की शुरूआत

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

घर से रवानगी

जिस मुसलमान को हज अदा करने का मौक़ा मिले तो यह उसके लिये उसके रब की तरफ़ से बहुत बड़ी नेमत है। अपने रब के दरबार में हाज़री से पहले इन बातों का ख़्याल रखें-

  • जब सफ़र के लिये रवाना हो तो जिस्म से, दिल से, लिबास से और ख़्यालात से बिल्कुल पाक व साफ़ हों।
  • सफ़र का मक़सद सिर्फ़ अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म मानना हो और इसमें किसी तरह का ग़ुरूर, दिखावा या बनावट न हो।
  • जिसका क़र्ज़ या अमानत हो तो उसे अदा करे अगर उस वक़्त न दे सके तो उससे भी इजाज़त ले ले या माफ़ करा ले।
  • किसी का माल अगर नाहक़ लिया हो तो वापस कर दे या माफ़ करा ले।
  • नमाज़, रोज़ा और ज़कात जितनी ज़िम्में हो अदा करे और तौबा करे साथ ही आइन्दा गुनाह न करने का पक्का इरादा करे।
  • सफ़र से पहले माँ-बाप से इजाज़त ले लें और बीवी अपने शौहर से भी।
  • हज के ख़र्च के लिये और रास्ते में सफ़र के लिये हलाल कमाई का पैसा लें।
  • दीनी किताबें मसाइल की जानकारी के लिये दुआएं वग़ैरा याद करने के लिये साथ में ले लें।
  • ख़र्च के लिये ज़रूरत से ज़्यादा पैसा लें ताकि साथियों पर भी कुछ ख़र्च करते चलें और रास्ते में फ़क़ीरों पर भी सदक़ा करते चलें।
  • शीशा, सुर्मा, कंघा और मिसवाक साथ में रखें, यह सुन्नत है।
  • चलने से पहले अपने सब रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलें और अपनी ग़लतियाँ माफ़ करा लें और सब लोगों से दुआ कराएं, बरकते मिलेंगी।
  • घर से निकलने से पहले चार रकअत नमाज़ नफ़्ल पढ़े इसमें सूरह फ़ातिहा और चारों क़ुल पढ़ें और फिर घर से निकलें और यह दुआ पढ़ें-

بِسۡمِ اللّٰہِ  تَوَکَّلۡتُ عَلَی اللّٰہِ

  ؕوَلَا حَوۡلَ وَلَا قُوَّۃَ اِلَّا بِا اللّٰہِ

(अल्लाह का नाम लेकर अल्लाह पर भरोसा करके (मैं निकलता हूँ)

और ताक़त और क़ुव्वत अल्लाह ही की तरफ़ से है।)

 

 ؕاَللَّھُمَّ  بِکَ اَصُوۡلُ وَ بِکَ اَحُوۡلُ وَ بِکَ اَسِیۡرُ

(ऐ अल्लाह तेरी ही मदद से हौसला और हिम्मत करके पहुँचने का इरादा करता हूँ,

तेरी ही मदद से गुनाहों से बचता हूँ, तेरी ही मदद से सफ़र में चलता हूँ )

  • सबसे रुख़सत लेने के बाद मस्जिद जायें और वहाँ दो रकअत नफ़्ल पढ़ कर मस्जिद से रुख़्सत हों और कुछ सदक़ा भी करें।
  • ख़ुशी-ख़ुशी घर से चले और ख़ूब ज़िक्र-ए-इलाही करें । ख़ुदा का ख़ौफ़ हर वक़्त दिल में रखें। ग़ुस्से से बचें।
  • औरतों और बालिग़ लड़कियों के सिर पर हाथ न रखें क्योंकि यह नाजाइज़ है।
  • सवारी पर सवार होते वक़्त यह दुआ पढ़ें-

﴾﴿ۙسُـبْحَانَ الَّذِيۡ سَخَّـرَ لَنَا هٰذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْـرِنِيۡنَ

﴾﴿وَإِنَّآ إِلٰى رَبِّنَا لَمُنـقَلِبُوۡنَ

 

(अल्लाह की ज़ात पाक है जिसने इसे हमारे इख़्तियार में दिया है और हम इसको अपने क़ाबू में करने के अहल न थे और हम सिर्फ़ अपने रब के पास लौटने वाले हैं)

  • सफ़र के दौरान अगर कहीं रुकें तो यह दुआ पढ़ें-

﴾﴿رَّبِّ اَنۡزِلْنِیۡ مُنۡزَلًا مُّبَارَکًا وَّ اَنۡتَ خَیۡرُ الْمُنۡزِلِیۡنَ 

(ऐ मेरे रब मुझे बरकत वाली जगह उतार और तू सबसे बेहतर उतारने वाला है)

  • जब हवाई जहाज़ समन्दर के ऊपर से गुज़रे तो यह दुआ पढ़ें-

﴾﴿بِسْمِ اللّٰہِ مَجْرٖؔىھَا وَمُرْسٰىہَا ؕ اِنَّ رَبِّیْ لَغَفُوۡرٌ رَّحِیۡمٌ 

وَ مَا قَدَرُوا اللّٰہَ حَقَّ قَدْرِہٖ ٭ۖ وَ الْاَرْضُ جَمِیۡعًا قَبْضَتُہٗ

 ؕ یَوْمَ الْقِیٰمَۃِ وَ السَّمٰوٰتُ مَطْوِیّٰتٌۢ بِیَمِیۡنِہٖ

﴾﴿سُبْحٰنَہٗ وَ تَعٰلٰی عَمَّا یُشْرِکُوۡنَ 

(अल्लाह के नाम से इसका चलना और अल्लाह के नाम से ही इसका रुकना है, बेशक मेरा रब ग़फ़ूर व रहीम है।और उन्होंने अल्लाह की क़द्रदानी न की जैसा उसकी क़द्रदानी का हक़ था, और क़यामत के दिन सब ज़मीनें उसी के क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में होंगी और सब आसमान उसी के दायें दस्त-ए-क़ुदरत से लिपटे हुए होंगे,वह पाक है और बुलन्द तर है उससे जिसको वो शरीक ठहराते हैं)

अगर पहले मक्का-ए-मौअज़्ज़मा जाना है तो भारत और पाकिस्तान से जाने वालों के लिये मीक़ात “यलम लम” है जो जद्दा से पहले है लिहाज़ा जहाज़ में ही किसी से पूछ कर यलम लम आने से पहले एहराम बाँध लें बेहतर यह है कि जहाज़ में बेठते वक़्त ही एहराम बाँध लें।

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