मक्का मौअज़्ज़मा के आमाल

मक्का मौअज़्ज़मा के आमाल

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

अब सब हाजी (क़ारिन, मुतामत्तौ, मुफ़रिद कोई हो) मिना के जाने के लिए मक्का-ए-मौअज़्ज़मा में आठ (8) तारीख़ का इंतज़ार कर रहे हैं। इन मक्का-ए-मौअज़्ज़मा में ठहरने के दिनों में जिस क़द्र हो सके इज़्तिबा व रमल व सई के बग़ैर सिर्फ़ तवाफ़ करते रहें कि बाहर वालों के लिए ये सब से बेहतर इबादत है और हर सात फेरों के बाद मुक़ाम-ए-इब्राहीमے  में दो रकअत नमाज़ पढ़ें।

  • मक्का-ए-मौअज़्ज़मा में ठहरने के दौरान अपने अलावा अपने वालदैन (माँ-बाप), रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए उमरा भी कर सकते हैं।

उमरा का आसान तरीक़ा

  • बेहतर यह है कि जहाँ ठहरे हुए हैं वहीं पर ग़ुस्ल या वुज़ू वग़ैरा कर लें,
  • एहराम की चादर बाँध कर “तनईम” चले जाएं सबसे क़रीब “मीक़ात” यह ही है, जो मक्का-ए-मुकर्रमा से लगभग पाँच (5) किलो मीटर की दूरी पर है,
  • यहाँ मस्जिद-ए-आयशा है वहाँ पर अगर मकरूह वक़्त न हो तो पहले दो (2) रकअत नमाज़ “तहय्यतुल मस्जिद” के पढ़ें फिर दो (2) रकअत नमाज़ एहराम की नीयत से पढ़ें,
  • नमाज़ के बाद सिर से टोपी वग़ैरा उतार लें,
  • फिर बैठ कर उमरा की नीयत करें,
  • इसके बाद तीन बार तलबियाह यानि लब्बैक कहें,
  • फिर मक्का-ए-मुकर्रमा आकर बताए गये तरीक़े से (तवाफ़ और सई करके) उमरा अदा करें
  • ज़्यादा एहतियात यह है कि औरतों को तवाफ़ के लिए रात को देर से लेकर जाएं जब भीड़ कुछ कम हो, इसी तरह सफ़ा व मरवा के दरमियान सई के लिए भी।
  • औरतें नमाज़ अपने ठहरने की जगह ही में पढ़ें, नमाज़ों के लिए जो दोनों मस्जिदे करीम में हाज़िर होती हैं, नादानी है कि मक़सूद सवाब है और ख़ुद हुज़ूर अनवरگ  ने फ़रमाया–  “कि औरत को मेरी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से ज़्यादा सवाब घर में पढ़ना है”।
  •  लेकिन औरतें मक्का-ए-मौअज़्ज़मा में रोज़ाना एक बार रात में तवाफ़ कर लिया करें और मदीना तय्यबा में सुबह व शाम सलात व सलाम के लिए हाज़िर होती रहें।

अब या मिना से वापसी के बाद जब कभी रात दिन में जितनी बार काबा-ए-मौअज़्ज़मा पर नज़र पड़े ‘‘लाइला-ह इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर’’ तीन बार कहें और नबीگ पर दुरूद भेजें और दुआ करें कि क़ुबूल होने का वक़्त है।

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