بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
- बिना ज़रूरत सई के फेरों में ज़्यादा फ़ासला देना मगर जमाअत के लिए, जनाज़े में शिरकत के लिए या पेशाब-पाख़ाना या ताज़ा वुज़ू के लिए जा सकते हैं हालांकि सई में वुज़ू ज़रूरी नहीं।
- ख़रीद व फ़रोख़्त।
- फ़ुज़ूल बातें।
- सफ़ा या मरवा पर न चढ़ना।
- मर्द का मसआ में बिला उज़्र न दौड़ना।
- तवाफ़ के बाद बहुत देर करके सई करना।
- सत्र-ए-औरत न होना।
- इधर-उधर बेकार देखना सई में भी मकरूह है और तवाफ़ में और ज़्यादा मकरूह।