بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
एहराम बाँधने के बाद उमरे का अगला अमल है तवाफ़ जो कि फ़र्ज़ है। इसकी अदायगी के लिये मक्का-ए-मुकर्रमा की पाक सरज़मीन में दाख़िल होना है। इस मुबारक ज़मीन पर क़दम रखने के लिये अदब का लिहाज़ रखना ज़रूरी है जो इस तरह हैं-
मक्का-ए-मुकर्रमा में दाख़िल होने के आदाब
- मक्का-ए-मुकर्रमा में अदब और इन्किसारी यानि आजिज़ी और ख़ाकसारी के साथ दाख़िल हों। अपने गुनाहों की माफ़ी के लिये “इस्तग़फ़ार” करता हुए चलें। दिल मे यह ख़्याल रखें कि ख़ुद एक मुजरिम क़ेदी है जो बख़्शने वाले बादशाह के पास जा रहा है।
- मस्जिद-ए-हराम में उसके एक ख़ास दरवाज़े से दाख़िल हों जिसका नाम “बाबुल इस्लाम” है। इससे दाख़िल होना अफ़ज़ल है।
- दाख़िल होते वक़्त यह दुआ पढ़ें
بِسْـمِ اللّٰهِ وَالصَّلٰوۃُ وَالسَّلَامُ عَلٰی رَسُوۡلِ اللّٰہِ
- फिर दाहिना पाँव पहले अन्दर रखें और यह दुआ पढ़ें।
اَللَّھُمَّ اغۡفِرۡلِیۡ ذُنُوۡبِیۡ وَفۡتَحۡ لِیۡ اَبۡوَابَ رَحۡمَتِکَ
- जब बैतुल्लाह शरीफ़ पर नज़र पड़े तो तीन बार
اَللّٰهُ اَكْـبَرُ
- फिर तीन बार
لَآ اِلَهَ اِلَّا اللّٰهُ
- या तीन बार तकबीर कहें
اَللّٰهُ اَكْبَرُ اَللّٰهُ اَكْبَرُ لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ
وَاَللّٰهُ اَكْبَرُ اَللّٰهُ اَكْبَرُ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ
- फिर तलबियह पढ़ें और दुरूद शरीफ़ पढ़ें।
- यह दुआ के क़ुबूल होने की घड़ी है क्योंकि हदीस शरीफ़ में आया है कि बैतुल्लाह शरीफ़ को देखते वक़्त मुसलमान की दुआ क़ुबूल होती है।
- बैतुल्लाह शरीफ़ को देखते वक़्त हाथ उठाकर दुआ माँगें, खड़े होकर दुआ माँगना मुस्तहब है।
- मस्जिद-ए-हराम शरीफ़ में दाख़िल होते ही सबसे पहले ख़ाना-ए-काबा का तवाफ़ करना ज़रूरी है लेकिन उस वक़्त अगर जमाअत क़ाइम हो या फ़र्ज़ नमाज, वित्र, नमाज़े जनाज़ा या सुन्नते मुअक्कदा के छूटने का डर हो तो पहले उनको अदा करें वरना सब कामों से पहले तवाफ़ में मशगूल हों।