मुलतज़म से लिपटना

मुलतज़म से लिपटना

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

रूक्ने असवद यानि वह कोना जहाँ पर हजर-ए-असवद लगा है, वहाँ से लेकर बाब-ए-काबा यानि ख़ाना-ए-काबा के दरवाज़े तक का हिस्सा मुलतज़म कहलाता है। इससे लिपट कर हाथ ऊपर उठा कर दुआ माँगने की बहुत फज़ीलत बयान की गई है, यहाँ तक कि जिब्रीलے भी इससे लिपट कर दुआ करते हैं। लिहाज़ा हर मुसलमान के लिये ज़रूरी है कि जब ख़ाना-ए-काबा की हाज़री नसीब हो तो मुलतज़म पर हाज़िर होकर उससे लिपट कर निहायत आजिज़ी से ख़ूब रौ कर गिड़ गिड़ा कर अपने रब से बख़्शिश तलब करें।

  • नमाज़ व दुआ से फ़ारिग़ होकर मुलतज़म के पास जायें।
  • हजर-ए-असवद के क़रीब उससे लिपटें और अपना सीना और पेट और कभी दाहिना गाल और कभी बायाँ और कभी सारा चेहरा उस पर रखें।
  • दोनों हाथ सिर से ऊँचे करके दीवार पर फैलायें या दाहिना हाथ काबा के दरवाज़े की तरफ़ और बायाँ हजर-ए-असवद की तरफ़ फैलायें।
  • यहाँ यह दुआ पढ़ें, दुआ याद न हो तो किसी किताब से देख कर पढ़ें या उसका उर्दू तर्जुमा पढ़ें या फिर कोई भी दुरूद पढ़ें। हदीस में फ़रमाया जब मैं चाहता हूँ जिब्रील को देखता हूँ कि मुलतज़म से लिपटे हुए यह दुआ कर रहे हैं।

یَا وَاجِدُ یَامَاجِدُ لَاتُزِلْ عَنِّیْ نِعْمَۃً اَنْعَمْتَھَا عَلَیَّ

(ऐ क़ुदरत वाले! ऐ बुज़ुर्ग ! तूने मुझे जो नेमत दी उसको मुझसे ख़त्म न कर)

  • मुलतज़म के पास नमाज़े तवाफ़ के बाद आना उस तवाफ़ में है जिसके बाद सई है।
  • जिसके बाद सई न हो उसमें नमाज़ से पहले मुलतज़म से लिपटें फिर मुक़ाम-ए-इब्राहीम के पास जाकर दो रकअत नमाज़ पढ़े।

Multazam

मुलतज़म से लिपट कर दुआ माँगते ज़ायरीन

 

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