بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
हर शख़्स अपने अमल का सवाब किसी दूसरे शख़्स को पहुँचा सकता है चाहे वो शख़्स ज़िन्दा हो या मुर्दा और वो अमल चाहे नमाज़ (नफ़्ली) हो, रोज़ा (नफ़्ली) हो, सदक़ा हो, हज हो,उमरा हो, तवाफ़ हो या और कोई इबादत जैसे क़ुरआन पाक की तिलावत वग़ैरा। इसका सवाब उस शख़्स को पहुँचाने के लिए या तो उस नेक अमल के करते वक़्त नीयत कर सकते हैं कि यह अमल मैं फ़लां शख़्स के लिए कर रहा हूँ या अगर ख़ुद अपने लिए भी जो अमल किया हो उसका सवाब भी दूसरे को हदया कर सकते हैं।
लिहाज़ा हर हज या उमरा पर जाने वाले हर शख़्स को चाहिये कि अपने वालदेन (माँ-बाप)और दूसरे रिश्तेदारों के लिए तवाफ़ ज़रूर करें और सब से अहम तो यह है कि जिनके तुफ़ैल में हमें यह सब कुछ मिला है यह ईमान की दौलत, नमाज़, रोज़ा, और हज की नेमत वग़ैरा यानि हमारे आक़ा और सरदार आक़ा-ए-नामदार सरवर-ए-कायनात मुहम्मदुर रसूलुल्लाहگ के लिए सबसे पहले तवाफ़ करें और इस पूरे तवाफ़ में कोई दुआ पढ़ने के बजाए सिर्फ़ दुरूद शरीफ़ ही पढ़ें।