तवाफ़ का तरीक़ा और दुआएँ

तवाफ़ का तरीक़ा और दुआएँ

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

 

Tawaaf

ख़ाना-ए-काबा के तवाफ़ का मन्ज़र

  • हजर-ए-असवद से हतीम की तरफ़ चलते हुए तवाफ़ शुरू होता है।
  • तवाफ़ इस तरह किया जाता है कि ख़ाना-ए-काबा बाईं तरफ़ रहे।
  • हजर-ए-असवद से शुरू करके वापस हजर-ए-असवद पर पहुँचने से एक चक्कर पूरा होगा और इस तरह सात चक्कर लगाएं तो एक तवाफ होता है।
  • तवाफ़ के लिये हजर-ए-असवद की सीध से थोड़ा पहले खड़े हों पहले यहाँ पर काले पत्थर की पट्टी होती थी जिसे अब हटा दिया गया लेकिन इसकी सीध में मस्जिद-ए-हराम की दीवार पर हरे रगं की टयूब लाइट लगी हुई हैं उससे अंदाज़ा करके खड़े हों।
  • जब हजर-ए-असवद के क़रीब पहुँचे तो यह दुआ पढ़ें या उसका उर्दू तर्जुमा पढ़े या फिर कोई सा दुरूद पढ़े।

لَآ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحۡدَہٗ صَدَقَ وَعْدَہٗ وَ نَصَرَعَبْدَہٗ

  ؕوَھَزَمَ الْاَحْزَابَ وَحَدَہٗ

لَآ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحۡدَہٗ   لَاشَرِیۡکَ لَہٗ

  لَہٗ الۡمُلۡکُ وَلَہُ الْحَمْدُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَئٍ قَدِیۡرٌؕ

(अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं जो अकेला है उसका कोई शरीक नहीं

उसने अपना वादा सच्चा किया और अपने बन्दे की मदद की

और तन्हा उसी ने काफ़िरों की जमाअतों को शिकस्त दी,

अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं जो अकेला है उसका कोई शरीक नहीं

उसी के लिए मुल्क है और उसी के लिये हम्द है और वह हर शय पर क़ादिर है।)

  • शुरू तवाफ़ से पहले मर्द इज़्तिबा कर लें यानि चादर को दाहिनी बग़ल के नीचे से निकालें ताकि दाहिना कंधा खुला रहे और दोनों किनारे बायें कंधे पर डाल दे।
  • अब तवाफ़ की नीयत ऐसे करें कि काबा शरीफ़ की तरफ़ मुँह करके हजर-ए-असवद के क़रीब इस तरह खड़े हों कि सारा हजर-ए-असवद अपने दाहिने हाथ को रहे फिर तवाफ़ की नीयत करें

اَللّٰھُمَّ  اِنِّیۡ اُرِیۡدُ طَوَافَ بَیۡتِکَ الۡمُحَرَّمِ

 فَیَسِّرۡہُ لِیۡ وَتَقَبَّلۡہُ مِنِّیۡ

(ऐ अल्लाह! मैं तेरे इज़्ज़त वाले घर का तवाफ़ करना चाहता हूँ

इसको तू मेरे लिए आसान कर और इसको मुझसे क़बूल कर।)

  • इस नीयत के बाद काबा शरीफ़ की तरफ़ मुँह किये हुए अपनी दाहिनी तरफ़ चलें जब सीना और मुँह हजर-ए-असवद के बिल्कुल सामने हो तो इसे हजर-ए-असवद का “इस्तक़बाल” करना कहते हैं। इस्तक़बाल के बाद तकबीर कहें और फिर कानों तक हाथ इस तरह उठायें कि हथेलियाँ हजर-ए-असवद की तरफ़ रहें और फिर हाथ नीचे गिरा दे, नीयत के वक़्त हाथ न उठायें जैसे कुछ तवाफ़ करने वाले करते हैं क्योंकि यह बिदअत है और कहें-

 بِسْـمِ اللّٰهِ وَالْحَمْـدُ لِلّٰهِ وَللّٰہُ اَکۡبَرۡ

وَالصَّلٰوۃُ وَالسَّلَامُ عَلٰی رَسُوۡلِ اللّٰہِ

 

  • हो सके तो हजर-ए-असवद पर दोनों हथेलियाँ और उनके बीच में मुँह रख कर इस तरह बोसा दें कि आवाज़ न पैदा हो तीन बार ऐसा ही करें यह नसीब हो तो बहुत बड़ी सआदत है यक़ीनन हमारे महबूब व मौला मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहگ    ने हजर-ए-असवद को बोसा दिया और चेहरा-ए-अनवर उस पर रखा तो जिसको यह मौक़ा मिल जाए उसके लिये क्या ही ख़ुशनसीबी कि उसका मुँह वहाँ तक पहुँचे।
  • भीड़ की वजह से बोसा न दे सके तो न दूसरे लोगों को तकलीफ़ दें और न ही ख़ुद परेशानी उठाएं बल्कि इसके बदले हाथ से हजर-ए-असवद छू कर हाथ को चूम लें।
  • हाथ भी न पहुँचे तो लकड़ी से हजर-ए-असवद को छू कर लकड़ी को चूम लें।
  • यह भी न हो सके तो हाथों से उसकी तरफ़ इशारा करके हाथों को बोसा दे लें। हमारे सरदार मुहम्मदुर्रसूलल्लाहگ    के मुबारक मुँह रखने की जगह पर हमारी निगाहें पड़ रही हैं यही क्या कम है।
  • हजर-ए-असवद को बोसा देने या हाथ या लकड़ी से छू कर चूम लेने या इशारा करके हाथों को बोसा देने को “इस्तिलाम” कहते हैं।

 

  • इस्तिलाम के वक़्त दुआ पढ़े दुआ याद न हो तो किसी किताब से देख कर पढ़ें या उसका उर्दू तर्जुमा पढ़ें या फिर कोई भी दुरूद शरीफ़ पढ़ें। दुआ यह है।

اَللّٰھُمَّ  اغۡفِرۡلِیۡ ذُنُوۡبِیۡ وَطَھِّرۡلِیۡ قَلْبِیْ وَاشۡرَحۡ لِیۡ صَدۡرِیۡ

وَیَسِّرۡلِیۡ اَمْرِیْ وَ عَافِنِیۡ فِیۡمَنۡ عَافَیۡتَ

(इलाही तू मेरे गुनाह बख़्श दे और मेरे दिल को पाक कर मेरे सीने को खोल दे

और मेरे काम को आसान कर और मुझे सलामती दे उन लोगों में जिनको तूने सलामती दी।)

Istilam1

हाथ के इशारे से इस्तलाम करना

  • दुआ या दुरूद शरीफ़ पढ़ते हुए काबा शरीफ़ के दरवाज़े की तरफ़ बढ़ें जब हजर-ए-असवद के सामने से गुज़र जायें तो सीधे हो जाओ कि ख़ाना-ए-काबा अपने बायें हाथ पर हो और ऊपर दिए गये नक़्शे में तीरों के रूख़ पर इस तरह चलें कि किसी को तकलीफ़ या परेशानी न हो।
  • इस बात का ख़ास ख़्याल रखना चाहिये कि हजर-ए-असवद को बोसा देते वक़्त धक्का मुक्की में आगे पीछे हो सकते हैं और जब सीना या मुँह खाना-ए-काबा की तरफ़ हो तो आगे न बढ़ें और किसी धक्के की वजह से आगे हो भी गये तो ऐसे ही पीछे को लौट जाए कि बायाँ कंधा बैतुल्लाह शरीफ़ की तरफ़ ही रहे और जितना हिस्सा आगे निकल गये थे उसका इआदा करें, ऐसे भी हो सकता है कि हज की भीड़ में पीछे जाकर इआदा करना मुमकिन न हो इसलिये ऐसी हालत में तवाफ़ के इस ख़ास चक्कर को दोबारा कर लें वरना जज़ा लाज़िम आयेगा। मुनासिब यह ही है कि भीड़ के वक़्त हजर-ए-असवद को बोसा देने के बजाए दूर से ही इस्तिलाम कर लें।
  • यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि हजर-ए-असवद पर ख़ुशबू लगाते रहते हैं और एहराम की हालत में बोसा देते हुए या हाथ से चूमते वक़्त ख़ुशबू बदन या कपड़े पर लग सकती है और अगर यह ख़ुशबू ज़्यादा हुई तो दम वाजिब होगा और कम हुई तो सदक़ा वाजिब होगा जितना एक फ़ितरे में दिया जाता हैं।
  • इस्तिलाम के वक़्त यह ध्यान रखें कि हजर-ए-असवद के आस-पास जो चाँदी लगी हुई है उस पर हाथ लगाना मना है।
  • देखा गया है कि कुछ लोग मुक़ाम-ए-इब्राहीम को भी बोसा देते हैं या इस्तिलाम करते हैं जो कि मना है।
  • पहले तीन फेरों में मर्द “रमल” करते हुए चलें यानि जल्दी-जल्दी छोटे क़दम रखते हुए कन्धे हिलाते हुए जैसे पहलवान या बहादुर लोग चलते हैं और कूदते या दौड़ते हुए न चलें।
  • तवाफ़ में जहाँ तक हो सके ख़ाना-ए-काबा से नज़दीक रहें कि यह बेहतर है मगर इतना नज़दीक भी नहीं कि काबा शरीफ़ के पुश्ते से जिस्म या कपड़ा लगे।
  • नज़दीक में ज़्यादा भीड़ की वजह से रमल न हो सके तो दूरी बेहतर है।
  • मुलतज़म के सामने से गुज़रते हुए यह दुआ पढ़ें-

 

اَللّٰھُمَّ  ھٰذَا الۡبَیۡتُ بَیۡتُکَ وَالۡحَرَمُ حَرَمُکَ

 وَالۡاَمۡنُ اَمۡنُکَ وَھٰذَا مَقَامُ الۡعَائِذِبِکَ مِنَ النَّارِؕ

 فَاَجِرۡنِیۡ مِنَ النَّارِؕ اَللّٰھُمَّ قَنِّعۡنِیۡ بِمَا رَزَقۡتَنِیۡ

 وَبَارِکۡ لِیۡ فِیۡہِ وَاخۡلُفۡ عَلٰی کُلِّ غَآئِبَۃٍ  ۢ بِخَیۡرٍؕ

لَآ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحۡدَہٗ لَاشَرِیۡکَ لَہٗ

 لَہٗ الۡمُلۡکُ وَلَہُ الْحَمْدُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَئٍ قَدِیۡرٌ

(ऐ अल्लाह! यह घर तेरा घर है और हरम तेरा हरम है

और अमन तेरी ही अमन है और जहन्नम से तेरी पनाह माँगने वाले की यह जगह है

तू मुझको जहन्नम से पनाह दे। ऐ अल्लाह! जो तूने मुझको दिया मुझे उस पर क़नाअत करने वाला कर दे

 और मेरे लिये उसमें बरकत दे और हर ग़ाइब पर ख़ैर के साथ तू ख़लीफ़ा हो जा।

अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं जो अकेला है उसका कोई शरीक नहीं

उसी के लिए मुल्क है और उसी के लिये हम्द है और वह हर शय पर क़ादिर है।)

  • रुक्ने इराक़ी के सामने आयें तो दुआ पढ़ेः-

اَللّٰھُمَّ  اِنِّیۡ اَعُوْذُبِک مِنَ الشَّکِّ وَالشِّرْکِ وَالشِّقَاقِ وَالنِّفَاقِ

 وَسُوْءِالْاَخْلَاقِ وَسُوْءِالْمُنْقَلَبِ فِیْ الْمَالِ وَالْاَھْلِ وَالْوَلَدِ

(ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह माँगता हूँ शक और शिर्क और इख़्तिलाफ़ व निफ़ाक़ से

और माल और अहल और औलाद में वापस होकर बुरी बात देखने से)

 

  • मीज़ाब-ए-रहमत के सामने से गुज़रते हुए यह दुआ पढ़ेः-

اَللَّھُمَّ اَظِلَّنِیْ تَحْتَ ظِلِّ عَرْشِکَ یَوْمَ لَاظِلَّ اِلَّاظِلُّکَ

وَلَا بَاقِیَ اِلَّا وَجْھُکَ وَاسْقِنِیْ مَنْ حَوْضِ نَبِیِّکَ

مُحَمَّدٍ صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَسَلَّمَ

شَرْبَۃًھَنِیئَۃً لَّآاَظْمَأُ بَعْدَھَا اَبَدًا

(इलाही तू मुझको अपने अर्श के साये में रख जिस दिन तेरे साये के सिवा कोई साया नहीं

और तेरी ज़ात के सिवा कोई बाक़ी नहीं और अपने नबी मुहम्मदگ    के हौज़ से मुझे

ख़ुशगवार पानी पिला कि उसके बाद कभी प्यास न लगे)

  • रुक्ने शामी के सामने आयें तो यह दुआ पढ़ेः-

اَللّٰھُمَّ اجْعَلْہُ حَجًّا مَّبْرُوْرً اوَّسَعْیًا مَّشْکُوْرًا

ؕوَّذَنْبًا مَّغْفُوْرًا وَّتِجَارَۃًلَّنْ تَبُوْرَ

یَاعَالِمَ مَافِی الصُّدُوْرِ

ؕاَخْرِجْنِیْ مِنَ الظُّلُمٰتِ اِلَی النُّوْرِ

(ऐ अल्लाह! तू हज  को मबरूर (मक़बूल) और सई मशकूर (यानि कामयाब) कर

और गुनाह को बख़्श दे और इसको वह तिजारत कर दे जो बर्बाद न हो

ऐ सीनों की बातें जानने वाले

मुझको अंधेरों से नूर की तरफ़ निकाल)

 

  • रुक्ने यमानी के पास आयें तो उसे दोनों हाथों से या दाहिने हाथ से तबर्रुकन छुएं, सिर्फ़ बायें हाथ से न छुएं और चाहें तो उसे बोसा भी दे सकते हैं और अगर हाथ से न छू सके तो न लकड़ी से छूना है, न इशारा करके हाथ चूमना है।
  • यह दुआ पढ़ें

اَللّٰھُمَّ  اِنِّیۡ اَسۡأَ لُکَ الْعَفْوَ وَالْعَافِیَۃَ

ؕفِی الدِّیْنِ وَالدُّنْیَا وَالْاٰخِرَۃِ

(ऐ अल्लाह ! मैं तुझसे माफ़ी और अमन का सवाल करता हूँ

दुनिया और आख़िरत में)

  • मुसतजाब जो कि रुक्ने यमानी और रुक्ने असवद के दरमियान की जगह है यहाँ सत्तर हज़ार फ़रिश्ते दुआ पर आमीन कहते हैं यहाँ यह दुआ पढ़ो:

رَبَّنَآ اٰتِنَا فِیۡ الدُّنۡیَا حَسَنَۃً

ؕوَّ فَیۡ الۡاٰخِرَۃِ حَسَنَۃً وَّقِنَا عَذَابَ النَّارِ

( ऐ रब हमारे हमको दुनिया में भलाई अता कर

और आख़िरत में भलाई अता कर और हमको जहन्नम के अज़ाब से बचा।)

  • जो दुआयें यहाँ लिखी गई हैं वो याद न हों तो देखकर पढ़ें या उसका तर्जुमा पढ़ लें और यह भी न हो सके तो दुरूद शरीफ़ पढ़ें क्योंकि हमारे प्यारे नबी मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहگ   के फ़रमान के मुताबिक़ दुरूद शरीफ़ तमाम दुआओं से बेहतर व अफ़ज़ल है और जो ऐसा करेगा तो अल्लाह उसके सब काम बना देगा और गुनाह माफ़ फ़रमा देगा।
  • तवाफ़ में दुआ या दुरूद शरीफ़ पढ़ने के लिए रुकना नहीं चाहिये बल्कि चलते में पढ़ते रहें।
  • दुआ और दुरूद ज़ौर-ज़ौर  से न पढ़ें बल्कि आहिस्ता पढ़ें कि अपने कान तक आवाज़ आ जाये।
  • चारों तरफ़ घूम कर दोबारा हजर-ए-असवद के सामने पहुँच गये तो यह एक फेरा पूरा हो गया, इस वक़्त हजर-ए-असवद को बोसा दें या पहले बताए हुए तरीक़े से इस्तिलाम करें।
  • हर फेरे के ख़त्म होने पर ऐसे ही करे इसी तरह सात फेरे करें मगर बाक़ी फेरों में नीयत नहीं करनी है।
  • रमल सिर्फ़ पहले तीन फेरों में करें और बाक़ी चार में आहिस्ता बग़ैर कन्धे हिलाए मामूली चाल चलें।
  • जब सातों फेरे पूरे हो जायें तो आख़िर में फिर हजर-ए-असवद को बोसा दें या इस्तिलाम करें।

 

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