तवाफ़ की नमाज़

तवाफ़ की नमाज़

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

तवाफ़ के बाद मुक़ाम-ए-इब्राहीम में आकर आयते करीमा (وَاتَّخِذُوْا مِنْ مَّقَامِ اِبْرَاھِیْمَ مُصَلًّیؕ) (तर्जमा: और मुक़ाम-ए-इब्राहीम से नमाज़ की जगह बनाओ) पढ़ कर दो रकअत नमाज़-ए-तवाफ़ पढ़ें यह नमाज़ वाजिब है। पहली रकअत में सूरह काफ़िरून और दूसरी में सूरह इख़्लास पढ़ें। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि मकरूह वक़्त न हो वरना मकरूह वक़्त निकल जाने के बाद पढ़ें। हदीस में है जो मुक़ाम-ए-इब्राहीम के पीछे दो रकअतें पढ़े उसके अगले पिछले गुनाह बख़्श दिये जायेंगे और क़यामत के दिन अमन वालों के साथ उसका हश्र होगा। ये रकअतें पढ़ कर दुआ माँगे यहाँ हदीस में एक दुआ इरशाद हुई है जो इस तरह है-

اَللّٰھُمَّ تَعْلَمُ سِرِّیْ وَ عَلَانِیَتِیْ فَاقْبَلْ مَعْذِرَتِیْ وَتَعْلَمُ حَاجَتِیْ

 ؕفَاَعْطِنِیْ  سُؤْلِیْ وَ تَعْلَمُ مَافَیْ نَفْسِیْ فَاغْفِرْلِیْ ذُنُوْبِیْ

 اَللّٰھُمَّ  اِنِّیْ اَسْئَلُکَ اِیْمَانًا یُّبَاشِرُقَلْبِیْ وَیَقِیْنًاصَادِقًا

 حَتّی اَعْلَمَ اَنَّہٗ لَایُصِیْبُنِیْ اِلَّامَا کَتَبْتَ لِیْ

 ؕوَرِضًی مِّنَ المَعِیْشَۃِ بِمَا قَسَمْتَ لِیْ یَآ اَرْحَمَ الرَّاحِمِیْنَ

(ऐ अल्लाह! तू मेरे पोशीदा और ज़ाहिर को जानता है तू मेरी माज़िरत क़ुबूल कर और तू मेरी हाजत को जानता है

 मेरा सवाल मुझको अता कर और जो कुछ मेरे नफ़्स में है तू उसे जानता है तू मेरे गुनाहों को बख़्श दे।

ऐ अल्लाह! मैं तुझसे उस ईमान का सवाल करता हूँ जो मेरे क़ल्ब में सराइयत कर जाये और यक़ीने सादिक़ माँगता हूँ

ताकि मैं जान लूँ कि मुझे वही पहुँचेगा जो तूने मेरे लिए लिखा है

और जो कुछ तूने मेरी क़िस्मत में किया है उस पर राज़ी रहूँ। ऐ सब मेहरबानों से ज़्यादा मेहरबान!)

हदीसे पाक में है कि अल्लाह तआला फ़रमाता है जो यह दुआ करेगा मैं उसकी ख़ता बख़्श दूँगा ग़म दूर करूँगा मोहताजी उससे निकाल लूँगा हर ताजिर से बढ़ कर उसकी तिजारत करूँगा दुनिया नाचार व मजबूर उसके पास आयेगी अगर्चे वह उसे न चाहे।

कुछ ज़रूरी मसाइल:

  • अगर भीड़ की वजह से मुक़ाम-ए-इब्राहीम में नमाज़ न पढ़ सके तो मस्जिद-ए-हराम शरीफ़ में किसी और जगह पढ़ लें और मस्जिद-ए-हराम के अलावा कहीं और पढ़ी जब भी हो जायेगी।
  • मुक़ाम-ए-इब्राहीम के बाद इस नमाज़ के लिए सबसे अफ़ज़ल काबा-ए-मुअज़्ज़मा के अन्दर पढ़ना है फिर हतीम में मीज़ाब-ए-रहमत के नीचे इसके बाद हतीम में किसी और जगह फिर काबा-ए-मुअज़्ज़मा से ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब जगह में फिर मस्जिद-ए-हराम में किसी जगह फिर हरम-ए-मक्का के अन्दर जहाँ भी हों।

सुन्नत यह है कि वक़्ते कराहत न हो तो तवाफ़ के बाद फ़ौरन नमाज़ पढ़ें बीच में फ़ासला न हो और अगर नहीं पढ़ी तो उम्र भर में जब पढ़ेगा अदा ही है क़ज़ा नहीं मगर बुरा किया कि सुन्नत फ़ौत हो गई।

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