हज-ए-तमत्तो

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

तमत्तो का मतलब है फ़ायदा उठाना इसमें हज को उमरे के साथ ऐसे जमा किया जाता है कि हज के महीने में मीक़ात से गुज़रने से पहले सिर्फ उमरे की नीयत से एहराम बाँधा जाता है और मक्का-ए-मुकर्रमा पहुँच कर उमरा अदा कर के बाल कटवा कर या मुंडवा कर एहराम खोल दिया जाता है. फिर आठ (8) ज़िलहिज्जा को हज की नीयत से एहराम बाँध कर हज के आमाल अदा किये जाते हैं इस तरह से हज करने वाले को “मुतामत्ते” कहते हैं। भारत और पाकिस्तान से जाने वाले ज़्यादातर लोग यही हज करते हैं।

इसके आमाल सिलसिलेवार इस तरह से हैं-

  1. उमरे का एहराम, यह शर्त है।
  2. उमरे का तवाफ़ रमल (यानि अकड़ कर चलने) के साथ, यह रुकुन है और फ़र्ज़ है।
  3. उमरे की सई (सफ़ा और मरवा के दरमियान सात चक्कर लगाना), यह वाजिब है।
  4. सिर के बाल मुँडवाना या कतरवाना, यह वाजिब है।
  5. हज का एहराम बाँधना ज़िलहिज्जा की आठ (8) को, यह शर्त है।
  6. वुक़ूफ़-ए-अराफ़ात (अराफ़ात में ठहरना), यह रुकुन है और फ़र्ज़ है।
  7. वुक़ूफ़-ए-मुज़दलफ़ा ( मुज़दलफ़ा में ठहरना) । यह वाजिब है।
  8. रमी जमरा-ए-अक़बा यानि बड़े शैतान को कंकरियाँ मारना, यह वाजिब है।
  9. क़ुरबानी करना, यह वाजिब है।
  10. सिर के बाल मुंडवाना या कतरवाना, यह वाजिब है।
  11. तवाफ़-ए-ज़ियारत, यह रुकुन हैऔर फ़र्ज़ है।
  12. सई (सफ़ा और मरवा के दरमियान सात चक्कर लगाना), यह वाजिब है
  13. रमी जमार (तीनों शैतानों को कंकरियाँ मारना), यह वाजिब है।
  14. तवाफ़-ए-विदा, यह वाजिब है।

 

हज-ए-तमत्तो कौन-कौन कर सकता है

  • हज-ए-तमत्तो सिर्फ़ बाहर से आने वाले हाजी कर सकते हैं।
  • मक्का के रहने वाले और मिक़ात की हद के अन्दर रहने वाले लोग  इसे नहीं कर सकते अगर किया तो गुनहगार होंगे और दम वाजिब होगा।

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