रमज़ान का चाँद

रमज़ान का चाँद

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

रमज़ान का चाँद देखने की अहमियत

मुसलमान होने के नाते हमारी यह ज़िम्मेदारी है कि ख़ास तौर पर रमज़ान का चाँद देखने की कोशिश करें क्योंकि यह चाँद उस फ़र्ज़ की अदायगी  का पैग़ाम देता है जिसके लिये अल्लाह तआला ने यह फ़रमाया है कि रोज़ा मेरे लिये है और मैं ही उसकी जज़ा दूँगा” हालांकि तमाम इबादतें अल्लाह तआला के लिये ही हैं और वह ही उसका अज्र देता है मगर ख़ास तौर पर रोज़े के लिये यह फ़रमाना उसकी अहमियत ज़ाहिर करता है। लिहाज़ा हमें भी इसकी अहमियत को समझते हुए इसकी शुरूआत चाँद देखने से करनी चाहिये। आजकल लोगों ने यह बहुत ग़लत तरीक़ा इख़्तियार कर लिया है कि ख़ुद चाँद देखने की कोशिश नहीं करते और इधर-उधर से ख़बरे लेने में लगे रहते हैं यह ग़लत है।

चाँद देखने के बारे में कुछ अहादीस

रसूलुल्लाहگ का फ़रमान है कि-

  • रोज़ा न रखो जब तक चाँद न देख लो और इफ़्तार न करो जब तक चाँद न देख लो और अगर अब्र (बादल) हो तो (तीस की) गिनती पूरी कर लो।

(सही बुख़ारी व सही मुस्लिम में इब्ने उमरک से मरवी)

  • एक आराबी (देहाती) ने हुज़ूरگ की ख़िदमत में हाज़िर होकर अर्ज़ की मैंने रमज़ान का चाँद देखा है। फ़रमाया कि तू गवाही देता है कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं। अर्ज़ की हाँ। फ़रमाया कि तू गवाही देता है कि मुहम्मद گ अल्लाह के रसूल हैं। उसने कहा हाँ। इरशाद फ़रमायाऐ बिलाल! लोगों में ऐलान कर दो कि कल रोज़ा रखें। 

(अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व निसाई व इब्ने माजा व दारमी, इब्ने अब्बासک से रिवायत)

चाँद देखने के बारे में ज़रूरी मसाइल

  • पाँच महीनों का चाँद देखना वाजिबे किफ़ाया है:- शाबान, रमज़ान, शव्वाल, ज़ीक़ादाह, ज़िलहिज्जाह।
  • शाबान का इसलिए कि अगर रमज़ान का चाँद देखते वक़्त अब्र या ग़ुबार हो तो तीस(30) पूरे कर के रमज़ान शुरू करें और रमज़ान का रोज़ा रखने के लिए और शव्वाल का रोज़ा ख़त्म करने के लिए और ज़ीक़ादाह का ज़िलहिज्जाह के लिए और ज़िलहिज्जाह का बक़रईद के लिए।
  • शाबान की उन्तीस(29) को चाँद देखें दिखाई दे तो अगले दिन रोज़ा रखें वरना शाबान के तीस(30) दिन पूरे करके रमज़ान का महीना शुरू करें।
  • किसी ने रमज़ान या ईद का चाँद देखा मगर उसकी गवाही किसी शरई वजह से रद्द कर दी गई तो उसे हुक्म है कि रोज़ा रखे चाहे अपने आप ईद का चाँद देख लिया है और उस रोज़े को तोड़ना जाइज़ नहीं मगर तोड़ेगा तो कफ़्फ़ारा लाज़िम नहीं और इस सूरत में अगर रमज़ान का चाँद था और उसने अपने हिसाब की वजह से तीस(30) रोज़े पूरे किये मगर ईद के चाँद के वक़्त फिर अब्र या ग़ुबार है तो उसे भी एक दिन और रखने का हुक्म है।
  • कोई शख़्स इल्म-ए-हैअत (Astronomy) जानता हो वह अपने इल्म की बिना पर चाँद के बारे में यह बताये कि आज चाँद हुआ या नहीं हुआ तो उसका कोई ऐतबार नहीं चाहे वह कितना ही आदिल हो।
  • शरीयत में सिर्फ़ चाँद देखने या गवाही से ही सुबूत का ऐतबार है।
  • बादल और ग़ुबार में रमज़ान के चाँद का सुबूत एक मुसलमान, समझदार, बालिग़, ज़ाहिर में शरीयत पर चलने वाला और आदिल शख़्स से हो जाता है वह मर्द हो या औरत, आज़ाद हो या बांदी, ग़ुलाम हो या ऐसा शख़्स जिसने हद लगने के बाद तौबा कर ली हो।
  • आदिल होने के मतलब यह है कि कम से कम मुत्तक़ी हो यानि कबीरा (बड़े) गुनाह से बचता हो और सग़ीरा (छोटे) गुनाह से भी बचता हो और ऐसा काम न करता हो जो अख़लाक़ के ख़िलाफ़ हो जैसे बाज़ार में खाना।
  • फ़ासिक़ अगर्चे रमज़ान के चाँद की शहादत दे उसकी गवाही क़ाबिले क़बूल नहीं । अगर उसे उम्मीद है कि उसकी गवाही क़ाज़ी क़बूल कर लेगा तो उसे लाज़िम है कि गवाही दे।
  • मस्तूर यानि जिसका ज़ाहिर हाल शरीयत के मुताबिक़ है मगर बातिन का हाल मालूम नहीं उसकी गवाही भी रमज़ान के अलावा क़ाबिले क़बूल नहीं।
  • जिस आदिल शख़्स ने रमज़ान का चाँद देखा उस पर वाजिब है कि उसी रात में शहादत अदा कर दे यहाँ तक कि अगर बांदी या पर्दानशीन औरत ने चाँद देखा तो उस पर गवाही देने के लिए उसी रात में जाना वाजिब है, बांदी को इसके लिये अपने मालिक से इजाज़त लेने की भी ज़रूरत नहीं।
  • आज़ाद औरत को भी गवाही के लिए जाना वाजिब है, इसके लिए शौहर की इजाज़त ज़रूरी नहीं, मगर यह हुक्म उस वक़्त है जब उसकी गवाही के बिना काम न चले वरना ज़रूरत नहीं।
  • तार या टेलीफ़ोन से चाँद का हो जाना नहीं साबित हो सकता, न बाज़ारी अफ़वाह और जन्तरियों से और अख़बारों में छपा होना कोई सुबूत नहीं है।

चाँद देखकर उसकी तरफ़ उंगली से इशारा करना मकरूह है अगर्चे दूसरे को बताने के लिए हो।

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