रोज़े का हुक्म और उसकी फ़ज़ीलत

रोज़े का हुक्म और उसकी फ़ज़ीलत

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में रोज़े का हुक्म फ़रमाता है:-

 

یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا کُتِبَ عَلَیۡکُمُ الصِّیَامُ کَمَا

کُتِبَ عَلَی الَّذِیۡنَ مِنۡ قَبْلِکُمْ لَعَلَّکُمْ تَتَّقُوۡنَ

(ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़ा फ़र्ज़ किया गया जैसा

उन पर फ़र्ज़ हुआ था जो तुम से पहले हुए ताकि तुम गुनाहों से बचो)

(सूरह अलबक़रा, आयत-183)

 

रोज़े की फ़ज़ीलत

क़ुरआन और अहादीस मे रमज़ान की बहुत सी फ़जीलतें बयान की गई हैं, यहाँ तक कि अगर लोगों को रमज़ान की हक़ीक़त मालूम हो जाये तो तमन्ना करें कि सारा साल रमज़ान ही रहे। यहाँ आपकी जानकारी के लिये रमज़ान की फ़ज़ीलत के बारे में चन्द अहादीस पेश की जा रही हैं।

हुज़ूर अक़दसگ ने फ़रमायाः-

  • रमज़ान आया यह बरकत का महीना है अल्लाह तआला ने इसके रोज़े तुम पर फ़र्ज़ किये इस में आसमान के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं और दोज़ख़ के दरवाज़े बन्द कर दिये जाते हैं और सरकश शैतानों के तौक़ डाल दिये जाते हैं और इसमें एक रात ऐसी है जो हज़ार महीनों से बेहतर है जो उसकी भलाई से महरूम रहा बेशक महरूम है।                            

(इमाम अहमद व निसाई की रिवायत उन्हीं से )

  • रमज़ान की आख़िर शब में उम्मत की मग़फ़िरत होती है। अर्ज़ की गई क्या वह शबे क़द्र है। फ़रमाया नहीं लेकिन काम करने वाले को उस वक़्त मज़दूरी पूरी दी जाती है जब वह काम पूरा कर ले।                                                                                      

 (इमाम अहमद अबू हुरैराک से रिवायत)

  • जन्नत में आठ दरवाज़े हैं उनमें एक दरवाज़े का नाम “रय्यान” है उस दरवाज़े से रोज़ेदार दाख़िल होंगे।                                                                                              

(सहीहैन, सुनन-ए-तिर्मिज़ी व निसाई )

  • हर चीज़ के लिये ज़कात है और बदन की ज़कात रोज़ा है और रोज़ा आधा सब्र है।

(इब्ने माजा, अबू हुरैराک  से रिवायत)

रसूलुल्लाहگ ने शाबान के आख़िर दिन में वाज़ फ़रमाया-

  • ऐ लोगो! तुम्हारे पास अज़मत वाला बरकत वाला महीना आया वह महीना जिसमें एक रात हज़ार महीनों से बेहतर है।
  • उसके रोज़े अल्लाह तआला ने फ़र्ज़ किये और उसकी रात में क़ियाम (इबादत) सुन्नत।
  • जो इसमें नेकी का कोई काम करे तो ऐसा है जैसे और किसी महीने में फ़र्ज़ अदा किया और इसमें जिसने फ़र्ज़ अदा किया तो ऐसा है जैसे और दिनों में सत्तर फ़र्ज़ अदा किए।
  • यह महीना सब्र का है और सब्र का सवाब जन्नत है और यह महीना हमदर्दी और भलाई का है।
  • इस महीने में मोमिन का रिज़्क़ बढ़ाया जाता है।
  • जो इसमें रोज़ादार को इफ़्तार कराये उसके गुनाहों के लिए मग़फ़िरत है और उसकी गर्दन आग से आज़ाद कर दी जायेगी और इस इफ़्तार कराने वाले को वैसा ही सवाब मिलेगा जैसा रोज़ा रखने वालों को मिलेगा बग़ैर इसके कि उसके अज्र में से कुछ कम हो।
  • अल्लाह तआला यह (रोज़ा इफ़्तार कराने का) सवाब उस शख़्स को देगा जो एक घूँट दूध या एक ख़ुरमा (खजूर या छुआरा) या एक घूँट पानी से इफ़्तार कराए या जिसने रोज़ादार को भरपेट खाना खिलाया उसको अल्लाह तआला मेरी हौज़ से पिलायेगा कि कभी प्यासा न होगा यहाँ तक कि जन्नत में दाख़िल हो जाए।
  • यह वह महीना है कि इसका अव्वल (शुरू के दस दिन) रहमत है और इसका औसत (दरमियान के दस दिन) मग़फ़िरत है और इसका आख़िर जहन्नम से आज़ादी है।
  • जो अपने ग़ुलाम पर इस महीने में तख़फ़ीफ़ करे यानि काम में कमी करे अल्लाह तआला उसे बख़्श देगा और उसे जहन्नम से आज़ाद फ़रमायेगा।

(बेहक़ी शोअबुल इमान में सलमान फ़ारसीک से रिवायत)

 

रसूलुल्लाह گ ने रोज़े की फ़ज़ीलत बयान करते हुए फ़रमाया

  • आदमी के हर नेक काम का बदला दस से सात सौ गुना तक दिया जाता है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया मगर रोज़ा, “कि वह मेरे लिए है और उसकी जज़ा मैं दूंगा, बन्दा अपनी ख़्वाहिश और खाने को मेरी वजह से तर्क करता” (यानि छोड़ता) है।
  • रोज़ादार के लिए दो ख़ुशियाँ हैं एक इफ़्तार के वक़्त और एक अपने रब से मिलने के वक़्त।
  • रोज़ादार के मुँह की बू अल्लाह तआला के नज़दीक मुश्क से ज़्यादा पाकीज़ा है।
  • रोज़ा सिपर (ढाल) है।
  • जब किसी के रोज़े का दिन हो तो न बेहूदा बके और न चीख़े फिर अगर उससे कोई गाली-गलौच करे या लड़ने पर आमादा हो तो कह दे मैं रोज़ादार हूँ।

(सहीहैन में अबू हुरैराک  से मरवी)

तीन लोगों की दुआ रद्द नहीं की जाती-

  • रोज़ादार जिस वक़्त इफ़्तार करता है।
  • बादशाहे आदिल (यानि इंसाफ़ करने वाले बादशाह) की।
  • मज़लूम की दुआ इसको अल्लाह तआला अब्र से ऊपर बलन्द करता है और इसके लिए आसमान के दरवाज़े खोले जाते हैं और रब तआला फ़रमाता है अपनी इज़्ज़त व जलाल की क़सम ज़रूर तेरी मदद करूँगा अगर्चे थोड़े ज़माने बाद।

(इमाम अहमद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा व इब्ने ख़ुज़ैमा व इब्ने हिब्बान, अबू हुरैराک से रिवायत)

हुज़ूर अक़दसگ ने फ़रमाया मेरी उम्मत को माहे रमज़ान में पाँच चीजें दी गईं कि जो मुझसे पहले किसी नबी को नहीं मिलीं-

  • अव्वल यह कि जब रमज़ान की पहली रात होती है अल्लाह तआला उनकी तरफ़ नज़र-ए- रहमत फ़रमाता है और जिसकी तरफ़ नज़र-ए- रहमत फ़रमायेगा उसे कभी अज़ाब न करेगा।
  • दूसरी यह कि शाम के वक़्त उनके मुँह की बू अल्लाह तआला के नज़दीक मुश्क से ज़्यादा अच्छी है।
  • तीसरी यह कि हर दिन और रात में फ़रिश्ते उनके लिए इस्तिग़फ़ार करते हैं।
  • चौथी यह कि अल्लाह तआला जन्नत को हुक्म फ़रमाता है कहता है तैयार हो जा और मेरे बन्दों के लिए सज जाक़रीब है कि दुनिया की सख़्ती से यहाँ आकर आराम करें।
  • पाँचवी यह कि जब आख़िर रात होती है तो उन सब की मग़फ़िरत फ़रमा देता है। किसी ने अर्ज़ की क्या वह शबे क़द्र है। फ़रमाया नहीं क्या तू नहीं देखता कि काम करने वाले काम करते हैं जब काम से फ़ारिग़ होते हैं उस वक़्त मज़दूरी पाते हैं।

(बेहक़ी जाबिर इब्ने अब्दुल्लाहک  से रिवायत)

हुज़ूर अक़दसگ ने फ़रमाया अगर बन्दों को मालूम होता कि रमज़ान क्या चीज़ है तो मेरी उम्मत तमन्ना करती कि पूरा साल रमज़ान ही हो।

(इब्ने ख़ुज़ैमा ने अबू मसूद ग़िफ़ारीک से एक तवील हदीस रिवायत)

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