بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
अब हम कुछ उन सूरतों का ज़िक्र कर रहे हैं जिनमें रोज़ा टूट जाने पर सिर्फ़ क़ज़ा लाज़िम होती है। क़ज़ा लाज़िम होने का मतलब है कि उस रोज़े के बदले में सिर्फ़ एक रोज़ा रखना पड़ेगा।
- यह सोचकर कि सहरी का वक़्त बाक़ी है कुछ खा-पी लिया या बीवी से सोहबत कर ली और बाद में मालूम हुआ कि सहरी का वक़्त ख़त्म हो गया था तो रमज़ान के बाद एक रोज़ा क़ज़ा रखें।
- इसी तरह यह सोचकर कि सूरज डूब चुका है रोज़ा इफ़्तार कर लिया तब भी एक रोज़ा क़ज़ा रखें।
- खाने-पीने के लिये मजबूर किया गया यानि ज़बरदस्ती या सख़्त धमकी देकर खिलाया गया चाहे अपने ही हाथ से खाया हो तो सिर्फ़ क़ज़ा लाज़िम है।
- भूलकर कुछ खाया पिया या भूले में कोई ऐसा काम हो गया जिससे रोज़ा टूट जाता है, इन सब सूरतों में यह सोचकर कि रोज़ा टूट गया है जानबूझ कुछ खा लिया तो सिर्फ़ क़ज़ा लाज़िम है।
- बच्चे की उम्र दस साल की हो जाए और उसमें रोज़ा रखने की ताक़त हो तो उससे रोज़ा रखवाया जाए न रखे तो मार कर रखवायें । अगर बच्चा रोज़ा रखकर तोड़ दे तो क़ज़ा का हुक्म नहीं दिया जायेगा और नमाज़ तोड़े तो फिर पढ़वायें।
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