रोज़े के बारे में ज़रूरी जानकारी

रोज़े के बारे में ज़रूरी जानकारी

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

रोज़ा क्या है?

शरीयत के मुताबिक़ रोज़े का मतलब यह है कि मुसलमान इबादत की नीयत से सुबह सादिक़ यानि फ़ज्र का वक़्त शुरू होने से लेकर सूरज डूबने यानि मग़रिब का वक़्त शुरू होने तक जानबूझ कर खाने पीने और हमबिस्तरी  से बचा रहे। औरत के लिये यह शर्त भी है कि वह हैज़ (माहवारी) और निफ़ास (बच्चे पैदा होने के बाद आने वाला ख़ून) से पाक हो।

रोज़े की क़िस्में

  • फ़र्ज़ः– मुसलमानों पर रमज़ान के महीने के रोज़े फ़र्ज़ हैं।
  • वाजिबः– रमज़ान के रोज़े जो छूट जायें चाहे किसी मजबूरी की वजह से हों या जानबूझ कर उनको रमज़ान के बाद रखना वाजिब है। मजबूरी में और जानबूझ कर छोड़े गये रोज़ों की क़ज़ा के लिये अलग-अलग अहकाम और शर्तें हैं जो इंशाल्लाह आगे बयान होंगे।
  • नफ़्लः– रमज़ान के क़जा रोज़ों के अलावा जो रोज़े रखे जाते हैं वह नफ़्ल रोज़े कहलाते हैं जैसे दस मुहर्रम, पंद्रह शाबान के और उनके साथ मिलाये गये रोज़े, ईद के बाद शव्वाल के महीने में शशईद के रोज़े (यानि ईद के छः रोज़े)  और इसके अलावा पीर व जुमेरात वग़ैरा के रोज़े नफ़्ल रोज़े हैं।
  • मकरूह:- कुछ ख़ास दिनों में और ख़ास तरह के रोज़े रखना मकरूह हैं जैसे सिर्फ़ हफ़्ते के दिन रोज़ा रखना, नैरोज़, मेहरगान (पारसियों के त्योहार) के दिन का रोज़ा, हमेशा रोज़ा रखना, कुछ बात न करने का रोज़ा या ऐसा रोज़ा रखना जिसमे इफ़्तार न करे और दूसरे दिन फिर रोज़ा रखे यह सब मकरूहे तनज़ीही हैं यानि इन दिनों में रोज़ा रखना मना है । ईद और अय्यामे तशरीक़ (बक़रीद और उसके बाद के तीन दिन) के रोज़े मकरूहे तहरीमी हैं यानि हराम हैं ।       

 

रोज़े की नीयत

रोज़े की नीयत (रोज़ा रखने से पहले) सूरज डूबने यानि मग़रिब का वक़्त शुरू होने से (रोज़ा रखने के बाद) ज़वाल का वक़्त शुरू होने से पहले तक कर सकते हैं । इस वक़्त में जब भी नीयत कर लें रोज़ा हो जायेगा।

  • नीयत दिल के इरादे का नाम है ज़ुबान से कहना शर्त नहीं मगर ज़ुबान से कह लेना मुस्तहब है।

अगर रात में नीयत करे तो यह कहें –

نَوَیۡتُ اَنۡ اَصُوۡمَ غَدًا لِلّٰہ تَعَلٰی مِنۡ فَرۡضِ رَمَضَانَ ھٰذا

(मैंने नीयत की कि अल्लाह तआला के लिए इस रमज़ान का फ़र्ज़ रोज़ा कल रखूंगा।)

या

اَللَّھُمَّ بِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتَ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ

दिन में नीयत करे तो यह कहे –

نَوَیۡتُ اَنۡ اَصُوۡمَ  ھٰذا الۡیَوۡمَ  لِلّٰہ تَعَلٰی مِنۡ فَرۡضِ رَمَضَانَ

(मैंने नीयत की कि अल्लाह के लिए आज रमज़ान का फ़र्ज़ रोज़ा रखूंगा।)

ज़रूरी मसाइल-

  • कोई औरत हैज़ या निफ़ास वाली थी उसने रात में कल रोज़ा रखने की नीयत की और सुबह सादिक़ से पहले हैज़ व निफ़ास से पाक हो गई तो रोज़ा सही हो गया।
  • दिन में नीयत करने का फ़ायदा जब ही है कि उसने सुबह सादिक़ से नीयत करते वक़्त तक रोज़े के ख़िलाफ़ कोई काम नहीं किया हो। लिहाज़ा अगर सुबह सादिक़ के बाद कुछ खा पी लिया हो या जिमा (हमबिस्तरी) कर लिया तो अब नीयत नहीं हो सकती। मगर भूलने की हालत में ज़्यादातर ओलमा यही मानते हैं कि नीयत सही है।
  • रोज़े में सिर्फ़ रोज़ा तोड़ने की नीयत से रोज़ा नहीं टूटेगा जब तक रोज़ा तोड़ने वाला काम न करे।
  • सहरी खाना भी नीयत है चाहे रमज़ान के रोज़े के लिए हो या किसी और रोज़े के लिए मगर जब सहरी खाते वक़्त यह इरादा है कि सुबह को रोज़ा न होगा तो सहरी खाना नीयत नहीं।
  • रमज़ान के हर रोज़े के लिए नई नीयत की ज़रूरत है पहली या किसी तारीख़ में पूरे रमज़ान के रोज़े की नीयत कर ली तो यह नीयत सिर्फ उसी एक दिन के लिये हुई जिस दिन की गई, बाक़ी दिनों के लिए नहीं।
  • क़जा और वाजिब रोज़ो की नीयत सहरी का वक़्त ख़त्म होने से पहले करना ज़रूरी है। यह भी ज़रूरी है कि जो रोज़ा रखना है ख़ास उस रोज़े की नीयत करे । इन रोज़ों की नीयत अगर दिन में की तो नफ़्ल हुए फिर भी उनका पूरा करना ज़रूरी है तोड़ेगा तो क़ज़ा वाजिब होगी।
  • यह ख़्याल करके कि किसी रोज़े की क़ज़ा उसके ज़िम्मे है रोज़ा रखा बाद में मालूम हुआ कि ख़्याल ग़लत था तो अगर फ़ौरन तोड़ दे तो तोड़ सकता है हालांकि बेहतर यह है कि पूरा कर ले और अगर फ़ौरन न तोड़ा तो थोड़ी देर बाद नहीं तोड़ सकता, तोड़ेगा तो क़ज़ा वाजिब है।
  • रात में क़ज़ा रोज़े की नीयत की लेकिन सुबह को उसे नफ़्ल करना चाहे तो नहीं कर सकता।
  • नमाज़ पढ़ते में रोज़े की नीयत (सिर्फ़ दिल में) की तो यह नीयत सही है।
  • रमज़ान का रोज़ा जानबूझ कर तोड़ने पर उस रोज़े की क़ज़ा है और साठ (60) रोज़े कफ़्फ़ारे के यानि कुल इक्सठ(61) रोज़े लगातार रखने होंगे।
  • किसी ने इक्सठ(61) रोज़े रख लिए लेकिन क़ज़ा रोज़े का दिन तय नहीं किया तब भी हो गया।

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