निजासते ख़फ़ीफ़ा और उसमें शामिल चीज़ें

निजासते ख़फ़ीफ़ा और उसमें शामिल चीज़ें

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

ख़फ़ीफ़ा वह निजासत या गंदगी है जिसका हुक्म थोड़ा हल्का है।

निजासते ख़फ़ीफ़ा का हुक्म

इसका हुक्म यह है कि कपड़े या बदन के जिस हिस्से पर निजासत लगी है अगर उसकी चौथाई से कम है जैसे दामन में लगी तो दामन की चौथाई से कम, आस्तीन में लगी है तो आस्तीन की चौथाई से कम और ऐसे ही हाथ में हाथ की चौथाई से कम है तो माफ़ है, उससे नमाज़ हो जायेगी और अगर पूरी चौथाई में हो तो बिना धोये नमाज़ नहीं होगी।

निजासते ख़फ़ीफ़ा में शामिल चीज़ें-

  • हलाल जानवर जैसे गाय, बैल, भैंस, बकरी और ऊँट वग़ैरा का पेशाब, पित्ता निजासते ख़फ़ीफ़ा है।
  • घोड़े का भी पेशाब और पित्ता निजासते ख़फ़ीफ़ा है
  • जिस परिन्दे का गोश्त हराम है चाहे शिकारी हो या नहीं जैसे कौआ, चील, शिकरा, बाज़ और बहरी उसकी बीट निजासते ख़फ़ीफ़ा है

निजासते ग़लीज़ा और ख़फ़ीफ़ा के जो अलग-अलग हुक्म बताये गये हैं वह सिर्फ़ बदन या कपड़े पर लगने वाली निजासत के बारे में हैं। अगर निजासत किसी पतली चीज़ जैसे पानी, दूध, सालन या सिरके में गिरे तो चाहे ग़लीज़ा हो या ख़फ़ीफ़ा कुल नापाक हो जायेगा चाहे एक क़तरा ही गिरे।

अगर पतली चीज़ दह-दर-दह हो तो पाक है। दह-दर-दह का मतलब यह है कि इसकी लम्बाई कम से कम दस हाथ और चौड़ाई भी कम से कम दस हाथ होे और गहराई इतनी हो कि जब चुल्लु से पानी लें तो ज़मीन न खुले। यहाँ पर हाथ से मुराद शरई हाथ है यानि कोहनी से हाथ की ऊँगलियों तक की लम्बाई।

अब हम कुछ उन हालतों का ज़िक्र कर रहे हैं कि जब हमारे बदन या कपड़ों पर नापाकी लग जाती है और आम तौर पर उस पर ध्यान नहीे दिया जाता।

  • अगर नापाक कपड़े में पाक कपड़ा लपेटा और उस नापाक कपड़े से यह पाक कपड़ा थोड़ा नम हो गया और निजासत का रंग या बू उस पाक कपड़े में आ गये तो नापाक हो जायेगा। अगर भीग जाये तो हर सूरत में नापाक हो जायेगा, चाहे उसका रंग/बू पाक कपड़े में आये या नहीं।
  • नापाक कपड़ा पहनकर या नापाक बिस्तर पर सोया और पसीना आया अगर पसीने से कपड़ा या बिस्तर भीग गया तो बदन नापाक हो गया वरना नहीं।
  • भीगे हुये पाँव नापाक ज़मीन या बिस्तर पर इतनी देर रखे कि पाँव की तरी नापाक ज़मीन या बिस्तर पर लगकर पाँव को लगी तो पाँव नापाक हो जायेंगे जिससे नमाज़ नहीं होगी।
  • अक़्सर यह देखने में आता है कि कुछ लोग वुज़ू करने के बाद फ़र्श या किसी कारपेट वग़ैरा (जिसके पाक होने का कोई एतबार नहीं) पर गीले पाँवों से जानमाज़ तक जाते हैं जिसकी वजह से जानमाज़ भी नापाक होने का अंदेशा है। इसमें एहतियात की ज़रूरत है ताकि नमाज़ें ख़राब न हों।

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