बीमारी में नमाज़ पढ़ने का बयान

बीमारी में नमाज़ पढ़ने का बयान

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

हदीस शरीफ़ में है-

  • इमरान इब्ने हसीनک बीमार थे, हुज़ूर अक़दस گ से नमाज़ के बारे में सवाल किया।आप گ ने फ़रमाया- “खड़े होकर पढ़ो अगर ताक़त न हो तो बैठ कर, इसकी भी ताक़त न हो तो लेट कर अल्लाह तआला किसी नफ़्स को तकलीफ़ नहीं देता मगर उतनी कि उसकी गुंजाइश हो”।

(मुस्लिम)

  • हज़रत जाबिरک से रिवायत है कि नबीگ एक मरीज़ की इयादत को तशरीफ़ ले गये देखा कि तकिये पर नमाज़ पढ़ता है यानि सजदा करता है उसे फेंक दिया। उसने एक लकड़ी ली कि उस पर नमाज़ पढ़े उसे भी लेकर फेंक दिया और फ़रमाया ज़मीन पर नमाज़ पढ़े अगर ताक़त हो वरना इशारा करे और सजदे को रुकू से पस्त करे यानि सजदा करते वक़्त रुकू से ज़्यादा झुके।

(बज़्ज़ाज़, बैहक़ी)

बीमारी में नमाज़ पढ़ने के मुताल्लिक़ ज़रूरी मसाइल

  • जो शख़्स बीमारी की वजह से खड़े होकर नमाज़ पढ़ने पर क़ादिर नहीं कि खड़े होकर पढ़ने से मर्ज़ मे नुक़सान या तकलीफ़ होगी या मर्ज़ बढ़ जाएगा या देर में अच्छा होगा या चक्कर आता है या खड़े होकर पढ़ने से पैशाब का क़तरा आएगा या बहुत तेज़ दर्द नाक़ाबिले बर्दाश्त हो जाएगा तो इन सब सूरतों में बैठ कर रुकू व सुजूद के साथ नमाज़ पढ़े।
  • अगर अपने आप बैठ भी नहीं सकता लेकिन कोई दूसरा शख़्स वहाँ है कि बैठा दे तो बैठकर पढ़ना ज़रूरी है और अगर बैठा नहीं रह सकता तो तकिया या दीवार या किसी शख़्स पर टेक लगा कर पढ़े। यह भी न हो सके तो लेट कर पढ़े और बैठ कर पढ़ना मुमकिन हो तो लेट कर नमाज़ नहीं होगी।
  • बैठ कर पढ़ने में किसी ख़ास तौर पर बैठना ज़रूरी नहीं बल्कि मरीज़ पर जिस तरह आसानी हो उस तरह बैठे। अगर आसानी हो तो दो ज़ानू बैठना (जैसे नमाज़ में बैठते हैं) बेहतर है।
  • खड़ा हो सकता है मगर रुकू व सुजूद नहीं कर सकता या सिर्फ़ सजदा नहीं कर सकता तो बैठ कर इशारे से पढ़ सकता है बल्कि यही बेहतर है और इस सूरत में यह भी कर सकता है कि खड़े होकर पढ़े और रुकू के लिए इशारा करे या रुकू कर सकता हो तो रुकू करे फिर बैठ कर सजदे के लिए इशारा करे।
  • इशारे करने में सजदे और रुकू के इशारे में फ़र्क़ ज़रूरी है यानि सजदे में रुकू के मुक़ाबले ज़्यादा झुके मगर यह ज़रूरी नहीं कि सिर को बिल्कुल ज़मीन से क़रीब कर दे।
  • सजदे के लिए तकिया वग़ैरा कोई चीज़ माथे तक उठा कर उस पर सजदा करना मकरूह-ए-तहरीमी है चाहे ख़ुद उसी ने वह चीज़ उठाई हो या दूसरे ने।
  • अगर कोई ऊँची चीज़ ज़मीन पर रखी हुई है उस पर सजदा किया और रुकू के लिए सिर्फ़ इशारा नही किया बल्कि पीठ भी झुकाई तो सही है बशर्ते कि सजदे के शराइत पाये जायें जैसे उस चीज़ का सख़्त होना जिस पर सजदा किया कि इस क़द्र पेशानी दब गई हो कि फिर दबाने से न दबे और उसकी ऊँचाई बारह उंगल से ज़्यादा न हो।
  • जो शख़्स जब किसी ऊँची जगह पर रुकू व सुजूद कर सकता है और क़ियाम करने के क़ाबिल है तो इस पर क़ियाम फ़र्ज़ है या नमाज़ पढ़ने के बीच में क़ियाम पर क़ादिर हो गया तो जो बाक़ी है उसे खड़े होकर पढ़ना फ़र्ज़ है।
  • जो शख़्स ज़मीन पर सजदा नहीं कर सकता मगर ऊपर दी हुई शर्तों के साथ कोई चीज़ ज़मीन पर रख कर सजदा कर सकता है तो उस पर फ़र्ज़ है कि उसी तरह सजदा करे इशारा जाइज़ नहीं। अगर वह चीज़ जिस पर सजदा किया गया ऐसी नहीं कि सजदे की शर्तें पूरी हो सकें तो सजदे के लिए इशारा करें।
  • पेशानी में ज़ख़्म है कि सजदे के लिए माथा नहीं लगा सकता तो नाक पर सजदा करे और ऐसा न किया बल्कि इशारा किया तो नमाज़ न हुई।
  • अगर मरीज़ बैठ नहीं सकता तो लेट कर इशारे से पढ़े चाहे दाहिनी या बायीं करवट पर लेट कर क़िबले को मुँह करे या लेट कर क़िबले को पाँव किए हो मगर पाँव न फैलाए कि क़िबले को पाँव फैलाना मकरूह है बल्कि घुटने खड़े रखे और सिर के नीचे तकिया वग़ैरा रख कर ऊँचा कर ले कि मुँह क़िबले को हो जाए और इस तरह यानि सीधे लेट कर पढ़ना अफ़ज़ल है।
  • अगर सिर से इशारा भी न कर सके तो नमाज़ साक़ित है (यानि इस हालत में नमाज़ का हुक्म नहीं ) इसकी ज़रूरत नहीं कि आँख या भौं या दिल के इशारे से पढ़े फिर अगर छह वक़्त इसी हालत में गुज़र गये तो उनकी क़ज़ा भी साक़ित, फ़िदया की भी ज़रुरत नहीं और ना सेहत होने के बाद इन नमाज़ों की क़ज़ा लाज़िम है चाहे इतनी सेहत हो कि सिर के इशारे से पढ़ सके।
  • मरीज़ अगर क़िबले की तरफ़ अपने आप मुँह नहीं कर सकता है न दूसरे के ज़रिए से तो वैसे ही पढ़ ले और सेहत के बाद इस नमाज़ को दोहराने की ज़रूरत नहीं और अगर कोई शख़्स मौजूद है कि इसके कहने से क़िबला-रू कर देगा मगर इसने उससे न कहा तो न हुई। इशारे से जो नमाज़ें पढ़ी हैं सेहत के बाद उनका लौटाना भी ज़रूरी नहीं। अगर ज़बान बन्द हो गई और गूंगे की तरह नमाज़ पढ़ी फिर ज़बान खुल गई तो इन नमाज़ों को भी दोहराने की ज़रूरत नहीं।
  • तन्दरुस्त शख़्स नमाज़ पढ़ रहा था, नमाज़ के बीच में ऐसा मर्ज़ पैदा हो गया कि अरकान के अदा करने के क़ाबिल नहीं रहा तो जिस तरह हो सके बैठ कर लेट कर नमाज़ पूरी करे दोबारा पढ़ने की ज़रूरत नहीं।
  • बैठ कर रुकू व सुजूद से नमाज़ पढ़ रहा था नमाज़ पढ़ते ही में क़ियाम के क़ाबिल हो गया तो बाक़ी नमाज़ खड़ा होकर पढ़े और इशारे से पढ़ रहा था और नमाज़ ही में रुकू व सुजूद करने के क़ाबिल हो गया तो दोबारा पढ़े।
  • जुनून या बेहोशी में अगर पूरे छः वक़्त निकल गये तो इन नमाज़ों की क़ज़ा भी नहीं। इस से कम हो तो क़ज़ा वाजिब है।
  • अगर बेहोशी/बेअक़्ली शराब या भांग पीने की वजह से है चाहे दवा के तौर पर तो क़ज़ा वाजिब है चाहे बेहोशी/बेअक़्ली कितने ही ज़्यादा ज़माने तक हो। इसी तरह अगर दूसरे ने मजबूर कर के शराब पिला दी जब भी क़ज़ा वाजिब है।
  • सोता रहा जिस की वजह से नमाज़ जाती रही तो क़ज़ा फ़र्ज़ है चाहे नींद में पूरे छः वक़्त गुज़र जायें।
  • अगर यह हालत हो कि रोज़ा रखता है तो खड़े होकर नमाज़ नहीं पढ़ सकता और न रखे तो खड़े होकर पढ़ सकेगा तो रोज़ा रखे और नमाज़ बैठ कर पढ़े।
  • मरीज़ के नीचे नापाक बिस्तर है और हालत यह हो कि बदला भी जाए तो नमाज़ पढ़ते-पढ़ते फिर नापाक हो जाएगा तो उसी पर नमाज़ पढ़े। और अगर जल्दी नापाक नहीं भी हो मगर बदलने में उसे ज़्यादा तकलीफ़ होगी तो उसी नापाक बिस्तर पर ही नमाज़ पढ़ ले।

तम्बीहे ज़रूरीः-

मुसलमान इन मसाइल को देखें तो उन्हें अच्छी तरह मालूम हो जाएगा कि शरीयते मुत्तहरा ने किसी हालत में भी कुछ ख़ास हालतों के अलावा नमाज़ माफ़ नहीं की बल्कि यह हुक्म दिया कि जिस तरह मुमकिन हो पढ़े। आजकल जो बड़े नमाज़ी कहलाते हैं उनकी यह हालत देखी जा रही है कि बुख़ार थोड़ा ज़्यादा हुआ नमाज़ छोड़ दी, तेज़ दर्द हुआ नमाज़ छोड़ दी। कोई फुन्सी या ज़ख़्म हो गया नमाज़ छोड़ दी यहाँ तक कि सिर के दर्द और ज़ुकाम में भी नमाज़ छोड़ बैठते हैं हालांकि जब तक इशारे से भी पढ़ सकता हो और न पढ़े तो उन्हीं अज़ाब का मुस्तहिक़ है जो नमाज़ छोड़ने वाले के लिए अहादीस में बयान हुए हैं। अल्लाह तआला हमें अपनी पनाह में रखे।

दुआः-
ऐ अल्लाह तू हम को नमाज़ क़ाइम करने वालों में और ज़िन्दगी और मरने के बाद अच्छे नमाज़ वालों में कर और अपने हबीबे करीम की शरीयत की पैरवी रोज़ी कर उन पर बेहतर दुरूद व सलाम नाज़िल फ़रमा।
आमीन!

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