जिन वक़्तों में नमाज़ पढ़ना मना है

जिन वक़्तों में नमाज़ पढ़ना मना है

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

  • ख़ास सूरज निकलने, डूबने और निस्फुन्नहार के वक़्त कोई नमाज़ जाइज़ नहीं। न फ़र्ज़, न वाजिब, न नफ़्ल, न अदा, न क़ज़ा और न ही सजदा-ए-तिलावत वग़ैरा लेकिन उस दिन की अस्र की नमाज़ सूरज डूबते वक़्त पढ़ सकते हैं लेकिन नमाज़ में इतनी देर करना हराम है। हदीस में इसको मुनाफ़िक़ की नमाज़ फ़रमाया।
  • सूरज निकलने से मुराद सूरज का किनारा निकलने से लेकर उस वक़्त तक है कि उस पर निगाह चौंधियाने लगे। यह लगभग बीस (20) मिनट का वक़्त है इस वक़्त में कोई भी नमाज़ पढ़ना नाजाइज़ है।
  • कोई शख़्स अगर फ़ज्र की नमाज़ सूरज निकलने के वक़्त पढ़ें तो मना नहीं करना चाहिये बल्कि नमाज़ के बाद बता देना चाहिये की नमाज़ नहीं हुई सूरज चढ़ने के बाद दोबारा पढ़लें।
  • जिन वक़्तों में नमाज़ मना है उस वक़्त अगर जनाज़ा लाया जाए तो उसी वक़्त नमाज़ पढने में कोई कराहत नहीं। कराहत उस सूरत में है कि पहले से जनाज़ा तैयार था और इतनी देर की कि कराहत का वक़्त आ गया।
  • मकरूह वक़्तों में कज़ा नमाज़ भी नाजाइज़ है और अगर क़ज़ा शुरू कर ली तो वाजिब है कि नीयत तोड़ दे और अगर तोड़ी नहीं तो फ़र्ज़ ज़िम्मे से उतर जायेगा मगर गुनाहगार होगा।
  • इन वक़्तों मे क़ुरआन की तिलावत करना भी ठीक नहीं बेहतर यह है कि ज़िक्र व दुरूद शरीफ़ पढ़ते रहे।
  • फ़ज्र का वक़्त शुरू होने से सूरज निकलने के वक़्त तक दो रकअत सुन्नते फ़ज्र के अलावा कोई नफ़्ल नमाज़ जाइज़ नहीं।
  • फ़ज्र के फ़र्ज़ पढ़ने के बाद भी बचे वक़्त में फ़ज्र की सुन्नत पढ़ना जाइज़ नहीं।
  • जमाअत की इक़ामत से जमाअत के ख़त्म होने तक नफ़्ल व सुन्नत पढ़ना मकरूह-ए-तहरीमी है। लेकिन फ़ज्र की नमाज़ की जमाअत खड़ी होने के बाद भी अगर यह अंदाज़ा है कि सुन्नत पढ़ने के बाद भी जमाअत मिल जायेगी तो हुक्म है कि जमाअत से अलग और दूर फ़ज्र की सुन्नते पढ़कर जमाअत में शरीक हो। और अगर अंदाज़ा हो कि सुन्नत पढ़ने से जमाअत छूट जायेगी तो जमाअत नहीं छोड़नी चाहिये यह नाजाइज़ व गुनाह है और बाक़ी नमाज़ों में चाहे जमाअत मिलना मालूम हो तब भी सुन्नतें पढ़ना जाइज़ नहीं।
  • अस्र का वक़्त शुरू होने से मग़रिब तक नफ़्ल नमाज़ मना है।
  • सूरज डूबने से मग़रिब के फ़र्ज़ों तक कोई भी नमाज़ नफ़्ल या क़ज़ा मना है।
  • जब इमाम अपनी जगह से जुमे के ख़ुतबे के लिये खड़ा हो जाये उस वक़्त से जुमे के फ़र्ज़ ख़त्म होने तक नफ़्ल पढ़ना मकरूह हैं यहाँ तक कि जुमे की सुन्नतें भी। दोनों ईदों के ख़ुतबे के लिये भी यही हुक्म है।
  • ख़ास ख़ुतबा होते वक़्त चाहे जुमे का हो या ईदैन का सूरज ग्रहण की नमाज़ और बारिश के लिये पढ़ी जाने वाली नमाज़ का हज या निकाह का हो उस दौरान हर नमाज़ चाहे अदा हो या क़ज़ा पढ़ना नाजाइज़ है मगर साहिब-ए-तरतीब के लिये जुमे के ख़ुतबे के वक़्त कज़ा की इजाज़त है। साहिब-ए-तरतीब वह है जिसकी पूरी ज़िन्दगी की छः (6) नमाज़ों से कम क़ज़ा बाक़ी हों।
  • अगर जुमे की सुन्नतें पढ़ना शुरू कर दी, अब अगर इमाम ख़ुतबे के लिये अपनी जगह से उठे तो चारों रकअतें पूरी करें, नीयत नहीं तोड़नी चाहिये।
  • ईद की नमाज़ से पहले नफ़्ल मकरूह हैं चाहे घर में पढ़ें या मस्जिद में।
  • ईद की नमाज़ के बाद ईदगाह या मस्जिद में नफ़्ल मकरूह हैं लेकिन घर में पढ़ना मकरूह नहीं।
  • जिस बात की वजह से दिल भटके और नमाज़ के लिये ज़रूरी ख़ुशू व ख़ुज़ू हासिल न हो सके और उसे दूर कर सकता हो तो पहले उसे दूर करना ज़रूरी है। इसको दूर किये बिना हर नमाज़ मकरूह है जैसे पाख़ाने, पेशाब या रियाह का ग़लबा हो या बहुत तेज़ भूक लगी हो या कोई ऐसी बात जिसकी वजह से दिल परेशान हो। मगर जब वक़्त ख़त्म हो रहा हो तो नमाज़ पढ़ ले और बाद में दोहरा लें।

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