नमाज़ तोड़ना कब जाइज़ है

नमाज़ तोड़ना कब जाइज़ है

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1898

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

  • कोई मुसीबत में फंसा हुआ शख़्स मदद के लिये पुकार रहा हो या कोई डूब रहा हो, कोई आग में जल रहा हो या अंधा राहगीर जा रहा है और सामने कुँआ है अगर यह नमाज़ी उस अंधे को न पकड़ेगा तो कुँए में गिर जायेगा, इन सब सूरतों में नमाज़ तोड़ देना वाजिब है जबकि यह उसको बचा सकता हो।
  • साँप वगै़रा के मारने के लिए जबकि नुक़सान का अन्देशा सही हो या कोई जानवर भाग गया उसको पकड़ने के लिए या बकरियों पर भेड़िये के हमले करने के ख़ौफ़ से नमाज़ तोड़ देना जाइज़ है।
  • अपने या पराए के एक दिरहम के नुक़सान का ख़ौफ़ हो जैसे दूध उबल जाएगा या गोश्त तरकारी रोटी वग़ैरा जल जाने का ख़ौफ़ हो या एक दिरहम की कोई चीज़ चोर उचक्का ले भागा इन सूरतों में नमाज़ तोड़ देने की इजाज़त है।
  • पाख़ाना या पेशाब मालूम हुआ या कपड़े या बदन में इतनी निजासत लगी देखी कि नमाज़ दुरुस्त होने में रुकावट न हो या किसी अजनबी औरत ने छू दिया तो नमाज़ तोड़ देना मुस्तहब है बशर्ते कि वक़्ते जमाअत न फ़ौत हो।
  • माँ-बाप, दादा-दादी वग़ैरा के सिर्फ़ बुलाने से नमाज़ तोड़ना जाइज़ नहीं। लेकिन अगर उनका पुकारना भी किसी बड़ी मुसीबत के लिए हो जैसे ऊपर ज़िक्र हुआ तो तोड़ दे। यह हुक्म फ़र्ज़ का है। अगर नफ़्ल नमाज़ है और उनको मालूम है कि नमाज़ पढ़ता है तो उनके मामूली पुकारने से नमाज़ न तोड़े और इसका नमाज़ पढ़ना उन्हें मालूम न हो और पुकारा तो तोड़ दे और जवाब दे चाहे मामूली तौर से बुलायें।

 

नोट: नफ़्ल नमाज़ की नीयत बाँध कर अगर किसी वजह से तोड़ दिया तो दोबारा उस नफ़्ल को पढ़ना लाज़िम है।

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