नमाज़ में वुज़ू टूट जाये तो क्या करें

नमाज़ में वुज़ू टूट जाये तो क्या करें

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

नमाज़ में जिस का वुज़ू टूट जाये चाहे क़ादा-ए-आख़ीरा में तशह्हुद के बाद सलाम फेरने से पहले हो तो वुज़ू करके जहाँ से बाक़ी है वहीं से पढ़ सकता है इसको “बिना” कहते हैं, मगर अफ़ज़ल यह है कि दोबारा से पढ़ें इसे “इस्तिनाफ़” कहते हैं इसमें औरत, मर्द दोनों का एक ही हुक्म है।

बिना” यानि जिस रुक्न में वुज़ू टूटा वहीं से लौटाने के बारे में ज़रूरी मसाइल

  • नमाज़ के जिस रुक्न में हदस हुआ हो यानि वुज़ू टूटा हो उसका इआदा करें यानि वहीं से लौटाएं।
  • बिना” के लिये तेरह(13) शर्तें हैं अगर उन में एक शर्त भी नहीं पाई जाए तो “बिना” जाइज़ नहीं।
    • हदस से सिर्फ़ वुज़ू टूटे यानि अगर ऐसा हदस हुआ जिससे ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाये तो “बिना” जाइज़ नहीं।
    • उस हदस वुज़ू टूटा हो जो आम हो, अगर ऐसा हदस जो कभी-कभी पाया जाता हो यानि ज़ोर से हँसने से, बेहोशी से, जुनून और पागलपन की वजह से वुज़ू टूटा तो “बिना” नहीं कर सकते
    • वह हदस-ए-समावी हो यानि न वह बन्दे के इख़्तियार से हो न बन्दा उसका सबब हो।
    • वह हदस उसके बदन से हो|
    • उस हदस के साथ कोई रुक्न अदा न किया हो। मिसाल के तौर पर सजदे में जाते हुए वुज़ू टूटा लेकिन सजदा पूरा करने के बाद वुज़ू करने गया तो अब “बिना” नहीं हो सकता और नमाज़ दुबारा पढ़ी जायेगी।
    • बग़ैर किसी मजबूरी के रुक्न के पूरा होने तक न ठहरा हो।
    • चलते में रुक्न अदा न किया हो।
    • कोई काम नमाज़ के ख़िलाफ़ जिसकी उसे इजाज़त न थी, न किया हो।
    • कोई ऐसा काम किया हो जिसकी इजाज़त थी तो बग़ैर ज़रूरत बक़दे्र मनाफ़ी ज़ाइद न किया हो।
    • उस हदस-ए-समावी के बाद कोई पहले का हदस ज़ाहिर न हुआ हो।
    • हदस के बाद साहिबे तरतीब को क़ज़ा न याद आई हो।
    • मुक़तदी हो तो इमाम के फ़ारिग़ होने से पहले दूसरी जगह अदा न की हो।
    • इमाम था तो ऐसे को ख़लीफ़ा न बनाया हो जो इमामत के लायक़ न हो।
  • हदस समावी न हो तो चाहे नमाज़ी की तरफ़ से हो कि जानबूझ कर उसने अपना वुज़ू तोड़ा हो या किसी बाहरी वजह से टूटा हो तो इन सब सूरतों “बिना” नहीं कर सकते, वुज़ू करके नमाज़ दोबारा पढ़े जैसे-
    • मुँह भर क़ै (उल्टी) कर दी,
    • नकसीर फोड़ ली,
    • फोड़ा-फुंसी दबाने या सजदे में ज़ोर देने से मवाद बहने लगा।
    • दूसरे की तरफ़ से कुछ ऐसा हुआ हो जैसे किसी ने नमाज़ी के पत्थर मारा जिससे ख़ून बहने लगा।
    • किसी ने फोड़ा-फुंसी दबा दी जिससे ख़ून बहने लगा।
    • छत से कोई पत्थर या पेड़ से कोई फल गिरा और बदन से ख़ून बहने लगा।
    • पाँव में या सजदा करते में पेशानी में कांटा चुभा जिससे ख़ून बहा।
    • भिड़ वग़ैरा के काटने से ख़ून बहा।
  • बिना इख़्तियार मुँह भर क़ै हुई तो “बिना” कर सकता है और जानबूझ कर की तो “बिना” नहीं कर सकता।

  • छींक या खांसी से रीह यानि हवा ख़ारिज हो गई या पेशाब का क़तरा आ गया तो “बिना” नहीं कर सकता।
  • किसी ने उस के बदन पर निजासत डाल दी या लग गई जिससे उसका बदन या कपड़ा एक दिरहम से ज़्यादा नजिस (नापाक) हो गया तो उसे पाक करने के बाद “बिना” नहीं कर सकता और अगर उसी हदस के सबब नजिस हुआ तो “बिना” कर सकता है।
  • रुकू या सजदे में हदस हुआ और रुक्न अदा करने की नीयत से सर उठाया यानि रुकू से ‘‘समिअल्लाह हुलिमन हमिदह’’ और सजदा से ‘‘अल्लाहु अकबर’’ कहते हुए उठा या वुज़ू के लिये जाने या वापसी में क़िरात की तो नमाज़ फ़ासिद हो गई “बिना” नहीं कर सकता।
  • हदस हुआ और क़रीब में वुज़ू के लायक़ पानी होने के बावजूद दूर जगह गया “बिना” नहीं कर सकता। वुज़ू के लिये कुएँ से पानी भरना पड़ा तो “बिना” जाइज़ है, बग़ैर ज़रूरत हो तो नहीं।
  • हदस के बाद बात-चीत की या कुछ खाया-पिया तो “बिना” नहीं कर सकते।
  • वुज़ू करने में सत्र खुल गया या ज़रूरत से सत्र खोला जैसे औरत ने वुज़ू के लिये कलाई खोली तो नमाज़ फ़ासिद नहीं होगी और बिना ज़रूरत सत्र खोला तो नमाज़ फ़ासिद हो गई जैसे औरत ने वुज़ू के लिये एक साथ दोनों कलाइयाँ खोल दी तो नमाज़ गई।
  • वुज़ू करने में सुनन व मुस्तहिब्बात के साथ वुज़ू करे लेकिन अगर तीन-तीन बार की जगह चार-चार बार धोया तो “बिना” नहीं कर सकता दोबारा पढ़े।
  • बेवुज़ू हो जाने का गुमान करके मस्जिद से निकल गया बाद में मालूम हुआ कि वुज़ू नहीं टूटा था तो दोबारा पढ़े और मस्जिद से बाहर नहीं हुआ था तो बाक़ी पढ़े यानि “बिना” करे लेकिन औरत को ऐसा गुमान हुआ तो मुसल्ले से हटते ही नमाज़ फ़ासिद हो गई।
  • रुकू या सजदे में हदस हुआ अगर अदा के इरादे से सिर उठाया नमाज़ बातिल हो गई उस पर “बिना” नहीं कर सकते।

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