सफ़र में नमाज़ पढ़ने का बयान

सफ़र में नमाज़ पढ़ने का बयान

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

अल्लाह तआला फ़रमाता है:-

وَ اِذَا ضَرَبْتُمْ فِی الۡاَرْضِ فَلَیۡسَ عَلَیۡکُمْ جُنَاحٌ اَنۡ تَقْصُرُوۡا مِنَ الصَّلٰوۃِ ٭ۖ
اِنْ خِفْتُمْ اَنۡ یَّفْتِنَکُمُ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا ؕ

(जब तुम ज़मीन में सफ़र करो तो तुम पर इसका गुनाह नहीं कि नमाज़ में क़स्र करो अगर ख़ौफ़ हो कि काफ़िर तुम्हें फ़ितने में डालेंगे।)

(अन निसा आयत-101)

सफर में क़स्र के बारे में चन्द अहादीस

  • सही मुस्लिम शरीफ़ में है- याला इब्ने उमय्याک कहते हैं अमीरुल मोमिनीन फ़ारूक़े आज़मکसे मैंने अर्ज़ की कि अल्लाह तआला ने तो क़ुरआन पाक में यह फ़रमाया है कि – क़स्र करो नमाज़ का अगर तुम लोग डरते हो कि फ़ितने में डाल देंगे तुम लोगों को काफ़िर लोग। और अब तो लोग अमन में हैं (यानि अमन की हालत में क़स्र नहीं होना चाहिए) फ़रमाया इसका मुझे भी ताज्जुब हुआ था मैंने रसूलुल्लाहگ से सवाल किया। इरशाद फ़रमाया यह एक सदक़ा है कि अल्लाह तआला ने तुम पर तसद्दुक़ फ़रमाया उसका सदक़ा क़ुबूल करो।
  • अब्दुल्लाह इब्ने उमरک से रिवायत है कि रसूलुल्लाहگ नमाज़े सफ़र की दो रकअतें मुक़र्रर फ़रमाईं और कहा यह पूरी हैं कम नहीं यानि अगर्चे बज़ाहिर दो रकअतें कम हो गईं मगर सवाब में यह दो ही चार के बराबर हैं।

(इब्ने माजा)

सफ़र में नमाज़ पढ़ने के बारे में ज़रूरी मसाइल

  • शरीयत के मुताबिक़ मुसाफ़िर वह शख़्स है जो तीन दिन की राह तक जाने के इरादे से बस्ती से बाहर हुआ।
  • ज़मीन पर चलने के हिसाब से इसकी दूरी साड़े सत्तावन मील (57½) यानि लगभग (92.5 KM) किलो मीटर है।
  • किसी जगह जाने के दो रास्ते हैं एक रास्ते से जाए तो दूरी (92.5 KM) किलो मीटर या उससे ज़्यादा हो जाती है और दूसरे से जाये तो नहीं, तो जिस रास्ते से यह जाएगा उस का ऐतबार है नज़दीक वाले रास्ते से गया तो मुसाफ़िर का हुक्म नहीं लगेगा और दूर वाले से गया तो मुसाफ़िर के हुक्म में आयेगा।
  • सिर्फ़ सफ़र की नीयत कर लेने से मुसाफ़िर नहीं होगा बल्कि मुसाफ़िर का हुक्म उस वक़्त से है कि बस्ती की आबादी से बाहर हो जाए शहर में है तो शहर से गाँव में है तो गाँव से, और शहर वाले के लिए यह भी ज़रूरी है कि शहर के आस-पास जो आबादी शहर से मिली हुई है उससे भी बाहर हो जाए।
  • स्टेशन जहाँ आबादी से बाहर हों तो स्टेशन पर पहुँचने से मुसाफ़िर हो जाएगा जबकि लगभग (92.5 KM) किलो मीटर तक सफ़र का इरादा हो।
  • मुसाफ़िर पर वाजिब है कि नमाज़ में क़स्र करे यानि चार रकअत वाले फ़र्ज़ को दो पढ़े। जानबूझ कर चार रकअत पढ़ीं तो गुनाहगार हुआ क्योंकि उसके हक़ में दो ही रकअतें पूरी नमाज़ है।
  • जानबूझ कर चार पढ़ीं और दो पर क़ादा किया तो फ़र्ज़ अदा हो गये और पिछली दो रकअतें नफ़्ल हुईं मगर गुनाहगार व अज़ाब का हक़दार हुआ कि वाजिब को तर्क किया।
  • नमाज़ मे यह छूट हर मुसाफ़िर के लिये है चाहे जिस काम के लिए सफ़र करे सिर्फ़ सफ़र करना काफ़ी है।
  • सुन्नतों में क़स्र नहीं बल्कि पूरी पढ़ी जायेंगी लेकिन अगर ख़ौफ़ की हालत में हो या जल्दी में तो माफ़ हैं | अमन की हालत में पढ़ी जायें।
  • मुसाफ़िर उस वक़्त तक मुसाफ़िर है जब तक अपनी बस्ती में पहुँच न जाए या जिस आबादी में गया है वहाँ पूरे पन्द्रह दिन ठहरने की नीयत न करे।
  • एक जगह पर पन्द्रह दिन या उससे ज़यादा ठहरने का इरादा कर लिया तो अब मुसाफिर के हुक्म में नहीं रहा बल्कि मुक़ीम हो गया और अब नमाज़ क़स्र नही बल्कि पूरी पढ़ेगा।
  • ठहरने की नीयत सही होने के लिए छः शर्तें हैं-
  1. चलना ख़त्म करे अगर चलने की हालत में ठहरने की नीयत की तो मुक़ीम नहीं।
  2. वह जगह ठहरने के क़ाबिल हो। जंगल या दरिया या ग़ैर आबाद टापू में ठहरने की नीयत की तो मुक़ीम न हुआ।
  3. पन्द्रह दिन ठहरने की नीयत हो इससे कम ठहरने की नीयत से मुक़ीम न होगा।
  4. यह नीयत एक ही जगह ठहरने की हो अगर दो शहरों में पन्द्रह दिन ठहरने का इरादा हो मसलन एक में दस दिन दूसरे में पाँच दिन का तो मुक़ीम नहीं होगा।
  5. अपना इरादा मुस्तक़िल रखता हो यानि किसी के बस में न हो।
  6. उसकी हालत उसके इरादे के ख़िलाफ़ न हो।
  • मुसाफ़िर जा रहा है और अभी शहर या गाँव में पहुँचा नहीं और ठहरने की नीयत कर ली तो मुक़ीम न हुआ और पहुँचने के बाद नीयत की तो हो गया चाहे अभी मकान वग़ैरा की तलाश में फिर रहा हो।
  • मुसाफ़िर किसी काम के लिए या साथियों के इंतज़ार में दो-चार रोज़ या तेरह-चैदह दिन की नीयत से ठहरा या यह इरादा है कि काम हो जाएगा तो चला जाएगा और दोनों सूरतों में अगर आजकल-आजकल करते बरसों गुज़र जायें जब भी मुसाफ़िर ही है नमाज़ क़स्र पढ़े।
  • अदा व क़ज़ा दोनों में मुक़ीम मुसाफ़िर के पीछे नमाज़ पढ़ सकता है और इमाम के सलाम के बाद अपनी बाक़ी दो रकअतें पढ़ ले और इन रकअतों में क़िरात बिल्कुल न करे बल्कि सूरह फ़ातिहा पढ़ने के बराबर चुप खड़ा रहे।
  • वतन दो क़िस्म है वतने असली और वतने इक़ामत (जिसमें ठहरा हो) । वतने असली वह जगह है जहाँ उसकी पैदाइश है या उसके घर के लोग वहाँ रहते हैं या वहाँ सुकूनत कर ली और यह इरादा है कि यहाँ से न जाएगा। वतने इक़ामत वह जगह है कि मुसाफ़िर ने पन्द्रह दिन या इससे ज़्यादा ठहरने का वहाँ इरादा किया हो।
  • मुसाफ़िर ने कहीं शादी कर ली तो चाहे वहाँ पन्द्रह दिन ठहरने का इरादा न हो मुक़ीम हो गया और दो शहरों में इसकी दो बीवियाँ रहती हों तो दोनों जगह पहुँचते ही मुक़ीम हो जाएगा।
  • एक जगह आदमी का वतने असली है अब उसने दूसरी जगह वतने असली बनाया अगर पहली जगह बाल-बच्चे मौजूद हों तो दोनों असली हैं वरना पहला असली न रहा ख़्वाह इन दोनों जगहों के सफ़र की दूरी हो या न हो।
  • अगर अपने घर के लोगों को लेकर दूसरी जगह चला गया और पहली जगह मकान व सामान वग़ैरा बाक़ी हैं तो वह भी वतने असली है।
  • बालिग़ के वालिदैन किसी शहर में रहते हैं और वह शहर इसकी पैदाइश की जगह नहीं न इसके घर वाले वहाँ हों तो वह जगह इसके लिए वतन नहीं।
  • मुसाफ़िर जब वतने असली में पहुँच गया सफ़र ख़त्म हो गया चाहे ठहरने की नीयत न की हो।
  • औरत ब्याह कर सुसराल गई और यहीं रहने-सहने लगी तो मायका इसके लिए वतने असली न रहा यानि अगर सुसराल तीन मंज़िल पर है वहाँ से मायके आई और पन्द्रह दिन ठहरने की नीयत न की तो क़स्र पढ़े और अगर मायका रहना नहीं छोड़ा बल्कि सुसराल आरज़ी तौर पर गई तो मायका आते ही सफ़र ख़त्म हो गया नमाज़ पूरी पढ़े।
  • औरत को बग़ैर महरम के तीन दिन या ज़्यादा राह जाना नाजाइज़ है बल्कि एक दिन की राह जाना भी। नाबालिग़ बच्चे या कम अक़्ल के साथ भी सफ़र नहीं कर सकती, साथ में बालिग़ महरम या शौहर का होना ज़रूरी है। महरम के लिए ज़रूर है कि सख़्त फ़ासिक़ बेबाक गै़र मामून यानि बेहया या ग़लत हरकतें करने वाला न हो।

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