एतिकाफ़

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بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

मस्जिद में इस नीयत के साथ ठहरना कि अल्लाह के लिए ठहरा है एतिकाफ़ है।एतिकाफ़ के लिए मुसलमान, आक़िल यानि  समझदार होना और पाक व साफ़  होना शर्त है ।

एतिकाफ़ की तीन क़िस्मे हैं

  • वाजिब – एतिकाफ़ की मन्नत मानने से एतिकाफ़ वाजिब हो जाता है इसके लिये दिल के इरादे के साथ-साथ ज़ुबान से भी कहना ज़रूरी है सिर्फ़ दिल में इरादे से वाजिब नहीं होगा।
  • सुन्नते मुअक्कदा – रमज़ान के आख़िर के दस दिन में एतिकाफ़ करना सुन्नते मुअक्कदा है । यह एतिकाफ़ सुन्नते किफ़ाया है यानि अगर सब छोड़ दें तो सबसे इसके बारे में मुतालबा होगा और शहर में एक ने कर लिया तो सब इस ज़िम्मेदारी से आज़ाद हो गये । इस एतिकाफ़ में बीस रमज़ान को सूरज डूबते वक़्त से ईद का चाँद होने तक एतिकाफ़ की नीयत से दिन-रात मस्जिद में रहना ज़रूरी है।
  • मुस्तहब/सुन्नते ग़ैर मुअक्कदा – इन दोनों के अलावा अगर एतिकाफ़ किया जाये वह मुस्तहब या सुन्नते ग़ैर मुअक्कदा है।

 

एतिकाफ़ के मुताल्लिक़ कुछ अहादीस

  • रसूलुल्लाहگ रमज़ान के आख़िर अशरा (यानि रमज़ान के आख़िरी दस दिन) का एतिकाफ़ फ़रमाया करते थे।

(सहीहैन में उम्मुल मोमिनीन सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा से मरवी)

  • एतिकाफ़ करने वाले पर सुन्नत यह है कि न मरीज़ की इयादत को जाये, न जनाज़े में हाज़िर हो, न औरत को हाथ लगाये और न उससे मुबाशरत करे और न कुछ ख़ास ज़रूरतों के अलावा किसी दूसरी ज़रूरत के लिए मस्जिद के बाहर जाये मगर उस हाजत के लिए जा सकता है जो ज़रूरी है और एतिकाफ़ बग़ैर रोज़े के नहीं और एतिकाफ़ जमाअत वाली मस्जिद में करे।

(अबू दाऊद उन्हीं से रिवायत)

  • रसूलुल्लाह گ ने एतिकाफ़ करने वाले  के बारे में फ़रमाया कि वह गुनाहों से बाहर रहता है और नेकियों से उसे इस क़द्र सवाब मिलता है जैसे उसने तमाम नेकियाँ कीं।

(इब्ने माजा इब्ने अब्बास ک से रावी )

  • हुज़ूर अक़दस گने फ़रमाया जिसने रमज़ान में दस दिनों का एतिकाफ़ कर लिया तो ऐसा है जैसे दो हज और दो उमरे किये।

(बैहक़ी इमाम हुसैन ک से रावी)

एतिकाफ़ के लिये ज़रूरी मसाइल

  • एतिकाफ़ के लिए जामा मस्जिद होना शर्त नहीं बल्कि मस्जिद-ए-जमाअत में भी हो सकता है। मस्जिदे जमाअत वह है जिसमें इमाम व मुअज़्ज़िन मुक़र्रर हों, चाहे उसमें पाँचों वक़्त की नमाज़ नहीं होती । वैसे आसानी के तौर पर हर मस्जिद में एतिकाफ़ सही है चाहे वह मस्जिद-ए-जमाअत न भी हो।
  • सबसे ज़्यादा अफ़ज़ल एतिकाफ़ मस्जिद हरम शरीफ़ में है, फिर मस्जिद नबवी शरीफ़ में, फिर मस्जिद अक़सा में, फिर उस मस्जिद में जहाँ बड़ी जमाअत होती हो।
  • औरत को मस्जिद में एतिकाफ़ मकरूह है बल्कि वह घर में ही एतिकाफ़ करे मगर उस जगह करे जो उसने नमाज़ पढ़ने के लिए मुक़र्रर कर रखी हो।
  • अगर औरत ने नमाज़ के लिए कोई जगह मुक़र्रर नहीं कर रखी है तो घर में एतिकाफ़ नहीं कर सकती अलबत्ता अगर उस वक़्त यानि जबकि एतिकाफ़ का इरादा किया किसी जगह को नमाज़ के लिए ख़ास कर लिया तो उस जगह एतिकाफ़ कर सकती है।
  • एतिकाफ़-ए-मुस्तहब के लिए न रोज़ा शर्त है न उसके लिए कोई ख़ास वक़्त मुक़र्रर बल्कि जब मस्जिद में एतिकाफ़ की नीयत की जब तक मस्जिद में है एतिकाफ़ से है, मस्जिद के बाहर चला गया तो एतिकाफ़ ख़त्म हो गया।

नोट: जब भी मस्जिद में जाए एतिकाफ़ की नीयत कर लें। नीयत करते वक़्त यह कहे ‘‘नवैतु सुन्नतल एतिकाफ़’’ — और उसके बाद थोड़ी देर कुछ इबादत भी ज़रूर करे और इसके बाद जितनी देर मस्जिद में रहेगा उतनी देर इबादत का सवाब पाएगा।

  • एतिकाफ़-ए-सुन्नत यानि वह एतिकाफ़ जो रमज़ान की आख़िरी दस तारीख़ों में किया जाता है उसमें रोज़ा शर्त है। लिहाज़ा अगर किसी मरीज़ या मुसाफ़िर ने एतिकाफ़ तो किया मगर रोज़ा न रखा तो सुन्नत अदा न हुई बल्कि नफ़्ल हुआ।
  • मन्नत के एतिकाफ़ में भी रोज़ा शर्त है यहाँ तक कि अगर एक महीने के एतिकाफ़ की मन्नत मानी और यह कहा कि रोज़ा नहीं रखेगा जब भी रोज़ा रखना वाजिब है।
  • अगर रात के एतिकाफ़ की मन्नत मानी तो यह मन्नत सही नहीं कि रात में रोज़ा नहीं हो सकता और अगर इस तरहकहा कि “एक दिन रात का मुझ पर एतिकाफ़ है” तो यह मन्नत सही है और अगर आज के एतिकाफ़ की मन्नत मानी और खाना खा चुका है तो मन्नत सही नहीं।
  • एतिकाफ़-ए-वाजिब और एतिकाफ़-ए-सुन्नत में मस्जिद से बग़ैर उज़्र निकलना हराम है, निकले तो एतिकाफ़ टूट जायेगा चाहे भूलकर ही निकला हो। इसी तरह औरत ने मस्जिद-ए-बैत (घर में जो जगह  नमाज़ के लिए ख़ास कर ली हो) में एतिकाफ़े वाजिब या सुन्नत किया तो बग़ैर उज़्र वहाँ से नहीं निकल सकती अगर वहाँ से निकली चाहे घर ही में रही एतिकाफ़ जाता रहा।
  • एतिकाफ़ करने वाले के लिये मस्जिद से निकलने के दो उज़्र हैं एक हाजित-ए-तबई जो मस्जिद में पूरी नहीं हो सकती जैसे पाख़ाना, पेशाब, इस्तिन्जा, वुज़ू और ग़ुस्ल।
  • ग़ुस्ल/वुज़ू के लिये बाहर जाने की यह शर्त है कि मस्जिद में इनका इन्तिज़ाम न हो। मस्जिद में वुज़ू/ग़ुस्ल कर सकते हों तो बाहर जाने की इजाज़त नहीं।
  • दूसरा उज़्र हाजित-ए-शरई है जैसे जुमा की नमाज़ के लिए या अज़ान कहने के लिए मीनार पर जाना।
  • क़ज़ा-ए-हाजित यानि पेशाब-पाख़ाने को गया तो पाक होकर फ़ौरन चला आये ठहरने की इजाज़त नहीं और अगर मोतकिफ़ के दो मकान हैं एक पास दूसरा दूर तो पासवाले मकान में जाये बाज़ मशाइख़ फ़रमाते हैं दूर वाले में जायेगा तो एतिकाफ़ फ़ासिद हो जायेगा।
  • दिन में भूल कर खा लेने से एतिकाफ़ फ़ासिद नहीं होता।
  • एतिकाफ़ के दौरान डूबने या जलने वाले को बचाने के लिये , गवाही देने के लिये , जिहाद में जाने के लिये,  मरीज़ की इयादत या नमाजे़ जनाज़ा के लिए मस्जिद से बाहर गया तो इन सब सूरतों में एतिकाफ़ फ़ासिद हो गया।
  • अगर मन्नत मानते वक़्त यह शर्त कर ली कि मरीज़ की इयादत,जनाज़े की नमाज़ या इल्म की मजलिस में हाज़िर होगा तो अब इनके लिए जाने से एतिकाफ़ फ़ासिद नहीं होगा। मगर ख़ाली दिल में नीयत करना काफ़ी नहीं, ज़ुबान से कहना ज़रूरी है।
  • पाख़ाना, पेशाब के लिए गया था क़र्ज़ा माँगने वाले ने रोक लिया एतिकाफ़ फ़ासिद हो गया।
  • एतिकाफ़ करने वाले को जिमा करना, औरत का बोसा लेना, छूना या गले लगाना हराम है इससे एतिकाफ़ फ़ासिद हो जायेगा।
  • गाली-गलौच, झगड़ा करने से एतिकाफ़ फ़ासिद नहीं होता मगर बे-नूर व बे-बरकत हो जाता है।
  • एतिकाफ़ करने वाले को मस्जिद में ही खाना, पीना और सोना चाहिये इन कामों के लिए मस्जिद से बाहर गये तो एतिकाफ़ ख़त्म, मगर खाने, पीने में यह एहतियात लाज़िम है कि मस्जिद में खाना या पानी गिरने से गंदगी न हो।
  • एतिकाफ़ के अलावा किसी को मस्जिद में खाने, पीने, सोने की इजाज़त नहीं, अगर ऐसा करना चाहे तो एतिकाफ़ की नीयत करके मस्जिद में जाये और नमाज़ पढ़े या ज़िक्रे इलाही करे फिर यह काम कर सकता है। इस पर ज़रा ध्यान दें आजकल लोगों में मस्जिद का एहतराम बिल्कुल ख़त्म होता जा रहा है। मस्जिद में बैठकर इधर-उधर की बातें करते रहते हैं, बेधड़क आकर सो जाते हैं यह सब ग़लत है। इससे बचें।
  • एतिकाफ़ करने वाले न तो चुप ही रहें और न कोई बुरी बात मुँह से निकाले, इबादत की नीयत से या सवाब समझकर चुप रहना मकरूहे तहरीमी है।
  • एतिकाफ़ करने वाले को चाहिये कि चुप रहने या बात करने के बजाय ज़्यादा वक़्त क़ुरआन मजीद की तिलावत, हदीस शरीफ़ की क़िरात, दुरूद शरीफ़ की कसरत, इल्मे दीन की किताबें वग़ैरा पढ़ने या पढ़ाने में लगाए।

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