नुबूवत के बारे में अक़ीदा

नुबूवत के बारे में अक़ीदा

0
1800

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

मुसलमान के लिए जिस तरह अल्लाह की ज़ात और सिफ़ात का जानना ज़रूरी है इसी तरह यह जानना भी ज़रूरी है कि नबी के लिए क्या जाइज़ है, क्या वाजिब और क्या मुहाल है क्योंकि वाजिब का इन्कार करना और मुहाल का इक़रार करना कुफ़्र की वजह है। ऐसा न हो कि आदमी नादानी से कोई ऐसी बात ज़ुबान से निकाल दे और ईमान से बाहर हो जाए।

  • नबी उस बशर (इंसान) को कहते हैं जिसे अल्लाह तआला लोगों की हिदायत के लिए भेजता है और उन पर अपने पैग़ाम भेजता है, यह पैग़ाम कभी तो फ़रिश्तों के ज़रिये और कभी बग़ैर ज़रिये के भेजता है जिसको वही कहते हैं।
  • रसूल बशर ही नहीं होते बल्कि फ़रिश्ते भी रसूल होते हैं।
  • अंम्बिया सब बशर थे और मर्द थे। कोई औरत कभी नबी नहीं हुई और न ही कोई जिन्न।
  • नबियों का भेजना अल्लाह तआला पर लाज़िम नहीं लेकिन उसने अपने करम से लोगों की हिदायत के लिए नबी भेजे।
  • नबी होने के लिए उस पर वही होना ज़़रूरी है यह वही चाहे फ़रिश्ते के ज़रिए हो या बिना किसी वास्ते और ज़रिए के हो।
  • वही” अल्लाह तआला के वह ख़ास पैग़ाम होते हैं जो सिर्फ़ नबियों के लिये होते हैं। नबी के अलावा किसी और के लिये वही” का मानना कुफ़्र है। नबियों को ख़्वाब में भी जो चीज़ बताई जाए वह वही’ है। नबी का ख़्वाब कभी झूठा नही हो सकता ऐसा गुमान करना भी जाइज़ नही।
  • नुबूवत को इबादत या मेहनत के ज़रिए से हासिल नहीं किया जा सकता बल्कि अल्लाह तआला जिसे चाहता है अपने करम से चुन लेता है लेकिन चुनता उसी को है कि जिसको इस अज़ीम और बुलन्द मरतबे के लायक़ बनाता है। नबी यह मरतबा हासिल करने से पहले भी तमाम बुरे अख़लाक और आदतों से पाक और साफ़ होता है। वह विलायत के तमाम दर्जे तय कर चुका होता है। वह अपने ख़ानदान, आदतों अख़लाक, जिस्म, बातों और अपने सारे कामों में हर ऐसी बात से पाक होता है जिनसे लोगों को नफ़रत हो। उन्हें अक़्ल और इल्म भी सब से ज़्यादा दिया जाता है।

अल्लाह तआला क़ुरआन में फ़रमाता है।

اَللّٰہُ اَعْلَمُ حَیۡثُ یَجْعَلُ رِسَالَتَہٗ

(अल्लाह ख़ूब जानता है जहाँ अपनी रिसालत रखे)

(सूरह अलअनाम आयत 124)

ذٰلِکَ فَضْلُ اللّٰہِ یُؤْتِیۡہِ مَنۡ یَّشَآءُ ؕ وَاللّٰہُ ذُوالْفَضْلِ الْعَظِیۡمِ

(यह अल्लाह का फ़ज़्ल है जिसे चाहे दे और अल्लाह बड़े फ़ज़्ल वाला है।)

(सूरह अलहदीद आयत 21)

  • अगर कोई यह माने कि आदमी अपनी कोशिश और मेहनत से नुबूवत तक पहुँच सकता है या यह समझे कि नबी से नुबूवत का ज़वाल यानि ख़त्म होना जाइज़ है वह काफ़िर है।
  • नबी का मासूम होना ज़रूरी है इसी तरह फ़रिश्ते भी मासूम हैं। नबियों और फ़रिश्तों के सिवा कोई मासूम नहीं। मासूम वह हैं जिनकी अल्लाह तआला गुनाहों से हिफ़ाज़त करता है। शरीयत का फ़ैसला है कि उनसे गुनाह का होना मुहाल और नामुमकिन है। अल्लाह तआला इमामों और बड़े बड़े वलियों को भी गुनाहों से बचाता है मगर शरीयत की रौशनी में उनसे गुनाह का हो जाना नामुमकिन नहीं।
  • अंम्बिया ے शिर्क से, कुफ़्र से और हर ऐसी चीज़ से पाक हैं जिससे लोगों को नफ़रत हो जैसे झूठ, धोखेबाज़ी और जहालत वग़ैरा बुरी आदतों और कबीरा व सग़ीरा गुनाहों के इरादे से भी। ऐसी बीमारियाँ जिनसे नफ़रत होती है जैसे कोढ़, चरक, और बर्स वग़ैरा से भी नबी के जिस्म महफ़ूज़ रहते हैं।
  • अल्लाह तआला ने नबियों को ग़ैब की ख़बरें दी। यहाँ तक कि ज़मीन और आसमान का हर ज़र्रा हर नबी के सामने है। अल्लाह तआला ने अपने नबियों को कितना इल्म दिया होगा यह अल्लाह और उसके नबी बेहतर जानते हैं, हमारी यह हैसियत या मजाल नहीं कि इस पर अपनी ज़ुबान खोलें । एक बात और ध्यान में रखनी ज़रूरी है कि इल्मे ग़ैब ज़ाती सिर्फ़ अल्लाह ही को है और नबियों का इल्मे ग़ैब अताई यानि अल्लाह तआला के देने से हासिल होता हैं।
  • अंम्बिया ے ग़ैब की ख़बरें देने के लिए ही आते हैं क्योंकि दोज़ख़, जन्नत, क़यामत, हश्र, नश्र और अज़ाब, सवाब सब ग़ैब हैं। नबियों का तो मनसब ही यह है कि वह, वो बातें बतायें कि जिन तक अक़्ल और हवास की भी पहुँच न हो सके और इसी का नाम ग़ैब है।
  • अंम्बिया-ए- किराम तमाम मख़लूक़, यहाँ तक कि मलाइका से भी अफ़ज़ल हैं और “वली” कितना ही बड़े मरतबे और दर्जे वाला हो किसी नबी के बराबर नहीं हो सकता।
  • जो कोई अल्लाह की मख़लूक़ में से ग़ैर-ए-नबी को नबी से ऊँचा या नबी के बराबर बताये वह काफ़िर है।
  • नबी की ताज़ीम फ़र्ज़ है बल्कि तमाम फ़र्जों की अस्ल है। यहाँ तक कि अगर कोई नबी की थोड़ी सी भी तौहीन करे वह काफ़िर है।
  • हज़रत आदम ے को अल्लाह तआला ने बिना माँ बाप के मिट्टी से पैदा किया और अपना ख़लीफ़ा बनाया और तमाम चीज़ों का इल्म दिया। फ़रिश्तों को अल्लाह ने हुक्म दिया कि हज़रत आदम ے को सजदा करें। सभी ने सजदे किए लेकिन शैतान जो जिन्नात में से था और बहुत बड़ा आबिद और ज़ाहिद होने की वजह से उसकी गिनती फ़रिश्तों में होती थी उसने सजदा करने से इन्कार कर दिया इसीलिए वह हमेशा के लिए मरदूद हो गया।
  • हज़रत आदमے से हमारे हुज़ूर सय्यदे आलम हज़रत मुह़म्मद گ तक अल्लाह तआला ने बहुत से नबी भेजे, कुछ नबियों का ज़िक्र क़ुरआन शरीफ़़ में खुले तौर पर आया है और कुछ का नहीं।
  • हज़रत आदम ے  से पहले कोई इन्सान नहीं था बल्कि सब इन्सान हज़रत आदम ے की ही औलाद हैं। इसीलिए इन्सान को “आदमी” कहते हैं।
  • नबियों की तादाद मुक़र्रर करना जाइज़ नहीं क्योंकि उसके बारे में लोगों की राय अलग-अलग है। तादाद मुक़र्रर करके उस तादाद पर ईमान रखने से यह ख़राबी लाज़िम आएगी कि अगर जितने नबी आए उनसे हमारी गिनती कम हुई तो जो नबी थे उनको हमने नुबूवत से ख़ारिज कर दिया और अगर जितने नबी आए उनसे हमारी गिनती ज़्यादा हुई तो जो नबी नहीं थे उनको हमने नबी मान लिया। यह दोनों बातें इसलिए ठीक नहीं क्योंकि नबी का नबी न मानना या ऐसे को नबी मान लेना जो नबी न हो कुफ़्र है। इसलिए यह अक़ीदा रखना चाहिए कि हर नबी पर हमारा ईमान है।
  • नबियों के अलग अलग दर्जे हैं, कुछ नबी कुछ से फ़ज़ीलत रखते हैं। सब से अफ़ज़ल हमारे हुज़ूर सय्यदे आलम हज़रत मुह़म्मद گ हैं। हमारे हुज़ूर گ के बाद सबसे बड़ा मरतबा हज़रत इब्राहीम ख़लीलुल्लाह ے का है फिर हज़रत मूसा ے फिर हज़रत ईसा ے और फिर हज़रत नूह ے का दर्जा है। इन पाँच नबियों को मुरसलीन उलुल अज़्म” कहते हैं और यह नबी बाक़ी तमाम नबियों रसूलों, इन्सान, फ़रिश्ते, जिन्न और अल्लाह की तमाम मख़लूक़ से अफ़ज़ल हैं।
  • जिस तरह हुज़ूरگ तमाम रसूलों के सरदार और सबसे अफ़ज़ल हैं इसी तरह उनकी उम्मत भी उन्हीं के सदक़े और तुफ़ैल में तमाम उम्मतों से अफ़ज़ल है।
  • सारे नबी अल्लाह तआला की बारगाह में इज़्ज़त वाले हैं। उनके बारे में कोई तौहीन वाली या बेअदबी की बात कहना कुफ़्र है।
  • मोजिज़ा” नबी के लिए ख़ास है। किसी नबी से अगर उसे नुबूवत मिलने के बाद आदत के ख़िलाफ़ कोई काम ज़ाहिर हो तो उसे “मोजिज़ा” कहते हैं।
  • अंम्बिया ے अपनी-अपनी क़ब्रों में उसी तरह हक़ीक़ी ज़िन्दगी के साथ ज़िन्दा हैं जैसे दुनिया में थे। अल्लाह तआला का फ़रमान है हर नफ़्स को मौत का मज़ा चखना है” (क़ुरआन)। इसके मुताबिक़ नबियों पर एक आन के लिए मौत आई, फिर उसी तरह ज़िन्दा हो गए जैसे पहले थे। मिसाल से इस तरह समझें जैसे चाँद पर बादल का दुकड़ा आया और चाँद छिप गया फिर जब वह टुकड़ा हटा चाँद पहले की तरह चमकने लगा।
  • अंम्बिया ے से जो लग़ज़िशें हुईं उनका ज़िक्र क़ुरआन शरीफ़़ और हदीस शरीफ़़ की रिवायत के अलावा बहुत सख़्त हराम है हमारी क्या मजाल कि हम उनके बारे में ज़ुबान खोलें। उनके वह काम जिनको लग़ज़िश कहा गया है उसमें अल्लाह तआला की हिकमतें और मसलेहतें शामिल हैं और उनसे बहुत से फ़ायदे और बरकते हासिल होती हैं। हज़रत आदम ے की एक लग़ज़िश को देखिए कि उससे कितने फ़ायदे हैं। अगर वह जन्नत से न उतरते तो दुनिया आबाद न होती, किताबें न उतरतीं, नबी और रसूल न आते, आदमी न पैदा होते, आदमियों की ज़रूरत की लाखों चीज़ें न पैदा की जातीं, जिहाद न होते और करोड़ो फ़ायदे की वह चीज़ें जो हज़रत आदम की लग़ज़िश के नतीजे में पैदा की गई, उनका दरवाज़ा बन्द रहता।

हमारे नबी हज़रत मुह़म्मद گ के बारे में कुछ ख़ास बातें

  • सारे नबियों को किसी एक ख़ास क़ौम या जगह के लिए भेजा गया लेकिन हमारे नबी हज़रत मुह़म्मद گ को तमाम आलम और मख़लूक़ यानि इन्सान, जिन्न, फ़रिश्ते और हैवानात (जानवर) वग़ैरा सब के लिए भेजा गया। जिस तरह हर इन्सान पर हुज़ूर की इताअत (हुक्म मानना) फ़र्ज़ है इसी तरह हर मख़लूक़ पर फ़र्ज़ है।
  • हमारे नबी हज़रत मुह़म्मद گ सारे आलम के लिए रहमत हैं और मुसलमानों पर तो बहुत ही मेहरबान हैं।
  • हमारे नबी हज़रत मुह़म्मद گख़ातिमुन नबीयीन” हैं। अल्लाह तआला ने नुबूवत का सिलसिला हुज़ूर گ पर ख़त्म कर दिया यानि आपके ऐलाने नुबूवत के बाद से कोई नबी नहीं हो सकता।
  • हमारे नबी हज़रत मुह़म्मद گ जैसा कोई दूसरा नामुमकिन है। किसी दूसरे को आप گ जैसा बताना गुमराही है।
  • आपگ के आने के बाद सिर्फ़ आपकी शरीयत को मानना लाज़िम क़रार दिया गया और पिछली सब शरियतों को ख़त्म कर दिया गया।
  • अल्लाह तआला ने ईमान के मुकम्मल होने के लिए यह लाज़िम किया कि उसके नाम के साथ हज़रत मुह़म्मद گ का नाम भी लिया जाए कलमा लाइलाहा इल्लल्लाह” जब तक पूरा नहीं होता जब तक उसमें मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” की गवाही न मिलाई जाए।
  • हमारे नबी हज़रत मुह़म्मद گ को अल्लाह तआला ने अपना महबूब बनाया यहाँ तक कि तमाम मख़लूक़ अल्लाह की रज़ा (ख़ुशी) चाहती है और अल्लाह, हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा گ की रज़ा (ख़ुशी) चाहता है।

ख़ुदा की रज़ा चाहते हैं दो आलम।
ख़ुदा चाहता है रज़ा-ए-मुहम्मद گ ।।

  • हज़रत मुह़म्मद گ की ख़ास बातों में यह भी है कि आपको मेराज हुई यानि आप گ अपने ज़ाहिरी जिस्म के साथ मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़सा और वहाँ से सातों आसमानों कुर्सी और अ़र्श तक बल्कि अ़र्श से भी ऊपर रात के एक थोड़े से हिस्से में तशरीफ़़ ले गए और अल्लाह का जमाल अपनी आँखों से देखा और अल्लाह से बिना किसी ज़रिए के बात की।
  • क़यामत के दिन महशर में आप گ सबसे पहले शफ़ाअत करेंगे और आपको ख़ास मुक़ाम “मुक़ामे महमूद” अता किया जायेगा।
  • हमारे नबी हज़रत मुह़म्मदگ की मुहब्बत अस्ल ईमान है। जब तक हुज़ूर की मुहब्बत माँ, बाप, औलाद और सारी दुनिया की दौलत से ज़्यादा न हो आदमी मुसलमान हो ही नहीं सकता। आपकी इताअत ही अल्लाह तआला की इताअत है।
  • आप گ की ताज़ीम फ़र्ज़े ऐन है। जब आपका ज़िक्र आए तो नामे पाक सुनते ही दुरूद शरीफ़़ पढ़ना वाजिब (ज़रूरी) है।
  • आप گ से मुहब्बत की पहचान यह भी है कि आपके आल व असहाब से मुहब्बत रखी जाए और अगर किसी का बाप, बेटा, भाई या कोई क़रीबी रिश्तेदार अगर आप گ से किसी तरह की दुश्मनी या बुग़्ज़ रखे हो तो उससे भी अदावत और दूरी रखी जाए अगर कोई ऐसा न करे तो वह आप گ से मुहब्बत के दावे में झूठा है। इसीलिये सिहाबा-ए-किराम ने आप گ की मुहब्बत में अपने रिश्तेदारों क़रीबी लोगों बाप भाईयों और वतन को छोड़ा क्योंकि यह कैसे हो सकता है कि अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत भी हो और उनके दुश्मनों से भी मुहब्बत बाक़ी रहे। यह दोनों अलग-अलग रास्ते हैं, एक जन्नत तक पहुँचाता है तो दूसरा जहन्नम तक।
  • आप گ से मुहब्बत की निशानी यह भी है कि हुज़ूर की शान में जो अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए जायें वह अदब में डूबे हुए हों।
  • अगर मदीना शरीफ़़ की हाजि़री नसीब हो और रौज़ा-ए-मुबारक की ज़ियारत की दौलत मिल जाए तो रौज़े के सामने चार हाथ के फ़ासले से अदब से हाथ बाँध कर खड़े होकर सिर झुकाए हुए सलात-ओ-सलाम अर्ज़ करें। बहुत क़रीब न जायें और न इधर उधर देखें और ख़बरदार बिल्कुल शोर न करना क्योंकि उम्र भर का सारा किया धरा अकारत (बेकार) हो जाएगा।
  • आप گ से मुहब्बत की निशानी यह भी है कि आप की सुन्नतों पर ज़्यादा से ज़्यादा अमल करें और किसी भी सुन्नत को हल्का न जाने और आप گ की किसी भी बात या सुन्नत को अगर कोई हिक़ारत की नज़र से देखे वह काफ़िर है।
  • सबसे पहले नुबूवत का मरतबा हमारे नबी हज़रत मुह़म्मद گ को मिला और ‘मीसाक़ के दिन’ तमाम नबियों से आप گ पर ईमान लाने और आपकी मदद करने का वायदा लिया गया और इसी शर्त पर उन नबियों को यह बड़ा मनसब दिया गया। ‘मीसाक़’ का मतलब यह है कि एक रोज़ अल्लाह तआला ने सब रूहों को जमा करके यह पूछा कि ‘‘क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूँ’’ तो जवाब में सबसे पहले हमारे नबी हज़रत मुहम्मद گ ने “बला”  यानि क्यों नहीं कहा था तो अल्लाह तआला ने सबको और सारे नबियों को हुज़ूरگ पर ईमान लाने और उनकी मदद करने का वादा लिया था। यही ‘मीसाक़’ का मतलब है।

NO COMMENTS